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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
सरखामणीमां 'आ' प्रत्यय सचवायो नथी. 'जुग्गया' ने बदले जुग्गय, 'संखा' ने बदले ' संख' 'गंगा' ने बदले 'गंग' अने ' जत्ता' ने बदले ' जत्त' एवां जे अनेक रूपो उपलब्ध छे ते नारीजातिसूचक उक्त 'आ' प्रत्ययनी वपराशनी अल्पता सूचवे छे. अने ए ज रीते
(सं० ) निष्फला प्रार्थना - ( प्रा० ) निष्फला पत्थणा । (अभय ० ) निष्फल पत्थण ।
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(सं०) मदीया यात्रा – (प्रा० ) मईया जत्ता - ( अभय ० ) महारिय जत्त । वगैरे प्रयोगोमां जेम संस्कृत अने प्राकृतमां विशेष्य अने विशेषण बन्नेमां नारीत्वसूचक ' आ ' प्रत्यय जळवायो छे तेम अभयदेव वगैरेनी गुजरातीमां ते बन्ने स्थळे ए आ' प्रत्यय टक्यो नथी ते पण उक्त हकीकतनुं ज समर्थन छे.
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खरी बात तो ए छे के विशेषण अने विशेष्यमां लिंग अने संख्या समान होय तो ज विशेषण - विशेष्यभावनुं धोरण जळवाई रहे छे. संस्कृत अने प्राकृतमां समासमां नहीं वपरायेलां विशेषण मात्र विकारी छे एटले विशेष्यनी जातिने अनुसरनारां छे. सं० " 'एका यात्रा' प्रा० एगा जत्ता' आने बदले भाषामा ' एक जात्रा' नो प्रयोग सुप्रतीत छे. ए प्रयोगमां 'जात्रा' विशेष्य छे अने ' एक ' तेनुं विशेषण छे. विशेष्य नारीजातिमां छे तेथी विशेषण पण खरी रीते नारीजातिमां ज होवुं जोईए एटले 'एक' ने बदले 'एका' प्रयोग थवो जोईए; पण लोकभाषानी खासियत प्रमाणे एवा प्रयोगोमां स्त्रीसूचक 'आ' टकतो नथी; परंतु तेनुं पद्धतिने वैदिक हस्व उच्चारण थाय छे. अहीं ए ख्यालमा रहे के
भाषामा विशेष्य प्रमाणे विशेषणमां
प्रत्यय न होवानी
भाषानी एवी पद्धतिनो टेको
' एक जात्रा' प्रयोगनो ' एक ' शब्द स्त्रीलिंगी
S
ज छे. L फक्त 'एका' ने बदले एक उच्चारण थयुं छे. चालु गुजरातीनी पेठे आ रीत उक्त त्रणे कृतिओमां बराबर उप
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