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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
पामइं–पामे छे
पन्वयमाहि-पर्वतमाही ठामि ठाभि-ठाम ठाम
तेम-तेम ठविय-ठव्या-स्थाप्या
तित्थमाही-तीर्थमांही ते-ते
रमइ-रमे नर-नर
जो-जे धन-धन्य
रासु-रास जे-जे
तूसइ-तूसे-तुष्ट थाय कलिकालि-कलिकाले
पूरइ-पूरे मल-मयलिया-मलमेला–मलवडे मेला रली-रळीयात-इच्छा-होश-उत्कंठा पामेइ–पामे छे
| कडव-कडपलो-समूह-कडव समय–समेतशिखर (पहाडनु नाम)
१२१ तेरमा सैकाना सोमप्रभ, धर्मसूरि अने विजयसेनसूरिनी कृतिओमाथी लईने ऊपर जे जे शब्दो आप्या छे ते बधा पोतानी रचनाद्वारा कही आपे छे के अमे बधा गुजराती भाषाना छिए. आ बाबत विशेष चर्चा करतां पहेलां उक्त त्रणे ग्रंथकारोनो थोडो परिचय आपी दउं:सोमप्रभ-आ आचार्ये 'कुमारपालप्रतिबोध' नामनो कथाग्रंथ विक्रम
__ संवत् १२४१ मां बनावेलो. अर्थात् कुमारपाळना सोमप्रभनो समय
4 स्वर्गवास पछी अगीयार वर्षे ज तेमणे उक्त ग्रंथनी रचना करेली. आ आचार्ये "कल्याणसारसवितानहरेक्षमोह" इत्यादि एक आखा श्लोकना सो अर्थ करी बतावेला तेथी तेमनी ख्याति 'शता
२९५ ए आखो श्लोक आ प्रमाणे छ :
"कल्याणसारसवितानहरेक्षमोह कान्तारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयवीरधीर सोमप्रभावपरमागमसिद्धसूरे ॥”
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