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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति __ आपणी भाषामा प्रचलित षष्ठी विभक्तिवाळां (रामतणो के रामनो बगेरे ) रूपो विशेषण जेवां छे. एटले तेमनी विशेषणरूपता टकाववा विशेषणरूप 'चिरंतन' ना 'तन' ऊपरथी 'तण' आवे तो विशेष सुगमता थाय एम छे.
'आत्मन :'-'अत्तनो'-'अत्तणो' रूपना 'तणो' अंश ऊपस्थी 'तण' ने नीपजावीए तो तेमां नीचेनी आपत्तिओ छे :
१. 'आत्मनः' रूप फक्त षष्ठी-विभक्तिवाळू ज नथी, द्वितीया अने पंचमीमां पण ए ज रूप वपराय छे एथी प्रस्तुतमां षष्टीना चोक्कस अर्थनी असंगति थशे.
२. 'त्तनो' अंशमां 'त्तन्' एटलो अंश 'आत्मन्' ना 'मन्' मुं रूपांतर छे अने मात्र ‘अस्' षष्ठीसूचक प्रत्यय छे एथी 'त्तनो' ऊपरथी आणेलो 'तण' षष्टीने केम सूचवी शकशे ? वळी ‘त्तनो' ना 'त्त' अने 'ओ' ने कोई पण सबळ आधार विना बदली पण केम शकाय ?
३. उक्त 'त्तनो' अंशमां विशेष्य प्रमाणे परिवर्तन पामवानुं सामर्थ्य ज नथी तो ए ऊपरथी ऊपजेला 'तण' मां ए सामर्थ्य शी रीते आवे ?
उक्त ‘चिरंतन' मां आवेलो 'तन' संबंधसूचक प्रत्यय छे एथी ए ऊपरथी 'तण' ने लावीए तो उक्त एक पण आपत्तिनो संभव नथी. चालु गुजरातीना षष्ठी विभक्तिना 'नो' 'नी' 'न' प्रत्ययोना मूळमां पण आ 'तन' प्रत्यय छे.
९३ उक्त त्रणे कृतिओमां पंचमीनो प्रयोग विरल छे. हेमचंद्रना पंचमी विभक्ति
“वच्छहे गृण्हइ फलई" ए वाक्यमां 'हे' प्रत्यय
पंचमीनो सूचक छे. तृतीया अने पंचमी विभक्तिनो अर्थ लगभग सरखा जेवो छे. तृतीयाना बहुवचनमां वैदिक-भाषामां
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