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आमुख
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अने राष्ट्रिय साहित्यने केटलं बधुं नुकसान कर्यु छ ? ए अवश्य विचार जोईए.
५८ आपणे नागरिक लोको अने आपणने पोषनारा लाखो करोडो 'प्राकतना गामडिया भाईओ ए बे वच्चे जे अन्तर वध्युं छे अभ्यास विना भाई तेनुं कारण आपणा देशना स्नातकोए अने भाई वञ्चे पडेलु अध्यापकोए प्राकृतभाषाने उवेखी छे ए पण मने
अतर लागे छे. एक समयनी सर्वव्यापक भाषाने नीचोनी भाषा समझशुं तो वर्तमानमा व्यापक एवी मराठी, हिंदी, बंगाळी, गुजराती वा सर्वव्यापी जेवी अंग्रेजी ए बधी नीचोनी भाषा छे के ऊंचोनी ? आपणी युनिवर्सिटिओने अने तेमना जेवी बीजी मातबर संस्थाओने मारी नम्र विनंती छे के तेमणे व्यापक प्राकृतभाषाना साहित्यने शब्दविज्ञाननी नवी दृष्टिथी संशोधित करावी, तेना अभ्यास माटे अभ्यापकोने अने विद्यार्थिओने उत्तेजित करी राष्ट्रहितनुं अपूर्व पुण्य उपार्जी तेमनी साची शोभा सिद्ध करवी जोईए.
५९ वेदोनी भाषा साथे विशेष सरखामणी होवाने लीधे ते समयनी
. वेदवारानी-बोलचालनी भाषा साथे जेनो संबंध व्यापक प्राकृतमांस
" सिद्ध करी बताव्यो छे, संस्कृत भाषा ऊपर पण समाती भाषाओ
" जेनी प्रबल असर छे एवी उपर्युक्त व्यापक प्राकृत भाषामां पालि, अर्धमागधी के आर्षप्राकृत, धर्मलिपिओनी भाषा, चक्रवर्ती खारवेल वगैरेना प्राकृत शिलालेखोनी भाषा, साधारण प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची अने अपभ्रंश-ए बधी भाषाओनो समावेश छे.
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