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आमुख
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आमुखनी शरूआतमां (पृ० १४-- ) भाषाभेदना निमित्तोनी चर्चा
____ विशेष विस्तारथी करी छे. पछी वैदिक वाणी साये ज आमुखनो
___व्यापक प्राकृतनो गाढ संबंध छे, ए हकीकत अनेक उपसंहार
उदाहरणो अने युक्तिओ द्वारा स्थापित करी बतावी छे. अने साथे साथे 'प्रकृतिः संस्कृतम्' एटले लौकिक संस्कृत तथा प्राकृत वचेना कार्यकारणभाववाळा, मतने उपेक्षापात्र ठराव्यो छे अने ते मतने संगत करवानी दृष्टि पण सूचवी छे. व्यापक प्राकृतनुं प्रभव स्थान वैदिक युगनुं आदिम प्राकृत छे—नहीं के लौकिक संस्कृत-ए अहीं प्रधान सिद्धांत छे.
संस्कृत ऊपर व्यापक प्राकृतनी केवी प्रबळ असर थयेली छे ए बताक्वा माटे प्राचीन अने अर्वाचीन अनेक उदाहरणो बतावी व्यापक प्राकृतनुं प्रभुत्व सूचित कयु छे. अने प्राकृतनी साथे संस्कृतनो संबंध एक बहेन जेवो वर्णवी बताव्यो छे. पछी व्यापक प्राकृतना अवान्तर भेदो-पालि वगैरेनुं साधारण स्वरूप, देश्यप्राकृतनुं स्वरूप अने छेक छेल्ले साहित्यिक अपभ्रंशना समय विशे पण ऊहापोह करी लीधो छे.
७४ आगळ कह्या प्रमाणे अहीं मारे बारमा सैकाथी अढारमा सैका सुधीनी गुजराती भाषानी उत्क्रांति विशे प्रधानपणे कहेवानुं छे अने ते हेमचंद्रे घडेला अपभ्रंशना गजने मापे मापी बताववानुं छे, एथी हवे पछी प्रचलित गुजरातीनी माता अपभ्रंशना स्वरूपनी चर्चा क्रमप्राप्त छे.
भाषानु स्वरूप साहित्यद्वारा अने व्याकरणद्वारा पण जाणी शकाय हेमचंदना समयी छ. व्याकरणनुं साधन उपलब्ध छे, तेथी साहित्यने लोकभाषानी डोळवानी अपेक्षा नथी. व्याकरणतुं संपूर्ण साधन
हेमचंद्रे , पण फक्त एक हेमचंद्रकृत अपभ्रंश प्रक्रिया ज छे. आपेली समझूती हेमचंद्रे जे अपभ्रंशप्रक्रिया बतावी छे तेने हुं तेमना समयनी प्रचलित लोकभाषानी अथवा ऊगती गुजरातीनी प्रक्रिया समझुं
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