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आमुख
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प्राकृत भाषा एटले प्राचीनतम आर्यभाषा साथे जेनुं कोई प्रकारनुं साम्य नथी एवी प्राकृतभाषा. आचार्योए रचेलां बीजां अनेक देशीशास्त्रो हता, ते बधान परिशीलन करीने तेमणे आ संग्रह रच्यो छे. (जुओ देशीना० गा० २) एटले तेमणे बांधेलु देशीनुं आ लक्षण विशेष प्राचीन छे. तेनो अर्थ मारी धारणा प्रमाणे आ नीचे जणावेली रीते करवामां आवे तो इतिहासनी दृष्टिए उपयोगी थाय : अनादिप्राकृते प्रवृत्तो यो भाषाविशेषः स देशी अर्थात् जे प्राकृत अनादि काळथी चाल्युं आवे छे तेमां प्रवृत्ति पामेलो-प्रवेश पामेलो जे खास भाषाना शब्दोनो जत्थो ते देशी. आर्य भाषा अनेअनार्यभाषा एम बे भेद तो सुप्रतीत छे. अनार्यो अहींना मूळ वतनी हताअने आर्यो तो फरता फरता अहीं आवी विजयी थया. एरीते जोतां अनार्यो देशी-तळपदा-कहेवाय. आर्योनी जे अनादिप्राकृत भाषा हती तेमां आ देशीरूप अनार्योनी भाषानो प्रवेश थयो अने ते 'देशी' नामथी जाणीती थई. आ अर्थनी अपेक्षाए अनार्यशब्दोने 'देशी' कहेवाय. आर्योनी भाषामां पण रूढ, यौगिक वगेरे त्रणे प्रकारना शब्दो हता परंतु तेमनुं सामूहिक नाम 'अनादिप्राकृत' अने तेमां जे अनार्य शब्दोनुं मिश्रण थयुं तेओ 'देशी' नामथी कहेवाया. आ रीते हेमचंद्रे बतावेला लक्षण वाक्यमां आर्य अने अनार्य शब्दोना मिश्रणनो भाव घटमान लागे छे.
बीजो पण अर्थ आ प्रमाणे छ : अनादिप्राकृतप्रवृत्तभाषाविश्लेषकः अर्थात् जे प्राकृत अनादिकालथी चाल्युं आवे छे-आर्योनी जे मूलभाषा छ वा आर्योनो जे मौलिक शब्दसंग्रह छ तेनाथी जे शब्दसंग्रह विश्लिष्ट-विभिन्न छे-पोतानी जातने जुदी रीते तारवी राखे छे-तेनाथी जे शब्दसंग्रह स्वभावे विश्लेषरूप छे तेनुं नाम देशी. आ भावमां पण आर्य अने अनार्य शब्दोना मिश्रणनो भाव छे. आर्य शब्दो करतां रचनानी दृष्टिए, व्युत्पत्तिनी दृष्टिए अनार्य शब्दो विश्लिष्ट छे तेथी ज तेओ आर्यशब्दो करतां जुदा प्रकारना भासे छे. आर्य अने अनार्यजातिना मिश्रणनो प्रसंग ऐतिहासिक छे ते ऊपरथी आ अर्थ सूझ्यो छे. ए सिवाय आ अर्थ माटे बीजो कोई विशेष आधार मळ्यो नथी. सुज्ञ विद्वानो 'देशी' शब्दना स्वरूपविशे गंभीर विचार करी खास प्रकाश नाखशे एवी विनंती छे. विशेष माटे जुओ'देश्य प्राकृत अने तेना शब्दोनां मूल'
(बुद्धिप्रकाश १९४१ मार्च-जून पृ० १०० टिप्पण २२)
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