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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
वैयाकरणोनुं उक्त कथन भाषाना कार्यकारणभावनी दृष्टिए समझवानुं नथी. परंतु तुलनात्मक पद्धतिए भाषानो अभ्यास करवा माटे एक भाषाने समझवा बीजी निकटनी भाषाने वाहनरूपे राखवानी अपेक्षाए घटाववानुं छे. शब्दविज्ञाननी दृष्टिए एवो कार्यकारणभाव घटमान ज नथी ए वात ऊपर चर्चाई गई छे.
वर्णविकारोनी दृष्टि भाषानो क्रम गोठववो होय तो सर्वथी प्रथम बौद्ध मागधी - पालि के आर्षप्राकृत आवे, पछी पैशाची, पछी अशोकनी लिपिओ, खारवेलनो शिलालेख, पछी मागधी, शौरसेनी अने छेले साधारण प्राकृत. उत्तरोत्तर वर्णोंनो फेरफार अने घसारो वधतां वधतां
साधारण प्राकृतमां ते वधारे जणाय हे.
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वर्णविकारोनी दृष्टिए भाषाओनो क्रम
७० अपभ्रंश - भ्रंश एटले पडवुं पोताना मूळ स्थानथी च्युत थ. अपभ्रंश एटले वधारे नीचे पडवुं. अपभ्रंशनो शब्दार्थ एवो छे. प्राकृत शब्द जेम अमुक देशनी
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अपभ्रंशनो परिचय
वा अमुक काळनी भाषा माटे नथी परंतु स्वाभाविक भाषानो सूचक छे, तेम ' अपभ्रंश ' शब्द पण तेना व्युत्पत्यर्थनी अपेक्षाए अमुक देशनी वा अमुक काळनी भाषाने बदले भ्रंश पामेली गमे ते भाषानो सूचक छे.
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१४७ — भ्रंशूच् अधःपतने' अर्थात् ' अधःपतन अर्थवाळा भ्रंश ' धातु ऊपरथी 'भ्रष्ट' शब्द बन्यो छे. अप' साधे तेनो प्रयोग · अपभ्रष्ट थाय. अप' उपसर्ग, अधिक अधःपतननो द्योतक छे एथी 'अपभ्रंश ' नो साधारण अर्थ :- घणुं नीचे पडेलुं - घणुं ज भ्रष्ट. ज्यारे भाषा माटे से शब्द वपराय त्यारे तेनो अर्थ :- घणी नीच भाषा - घणी हलकी भाषा एवो थाय. जे स्वरो अने व्यंजनोनो प्रयोग वैदिक संस्कृत अने पाणिनीय संस्कृतमां छे ते ज स्वरो अने व्यंजनोनो प्रयोग प्राकृत भाषाओमां- पालि, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंश
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