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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'महाराष्ट्र' नो अर्थ संकुचित न करतां 'जेनी बधी बाजुनी सीमा
. विशाळ छे एवो मोटो राष्ट्र'-एवो व्यापक अर्थ महाराष्ट्र प्राकृत करे छे अने ते मोटा देशमां व्यापेली भाषाने नो अर्थ
'महाराष्ट्री' कहे छे. मारी नम्र कल्पना 'महाराष्ट्र'ना आ व्यापक अर्थ तरफ ढळे छे. चंड अने हेमचंद्र पोताना व्याकरणमां 'प्राकृत'ने 'महाराष्ट्री' नुं विशेषण नथी आपता, तेमने अनुसरीने हुं पण साधारण प्राकृतभाषा माटे · महाराष्ट्री प्राकृत' शब्दनो प्रयोग न करतां तेने बदले केवळ 'साधारण प्राकृत' नो प्रयोग करूं छं. आज सुधीमां भाषानी चर्चाने लगता त्रण लेखो लख्या छे तेमां सर्वत्र में बे अर्थमां 'प्राकृत' शब्दोनो उपयोग कर्यो छे : आर्षप्राकृत अने साधारणप्राकृत. जैनसूत्रोना प्राचीन प्राकृत माटे आर्षप्राकृत अने ते पछीना प्राकृत माटे साधारण प्राकृत के जेनुं व्याकरण विद्यमान छे. मारा कोई पण लेखमां में 'महाराष्ट्री प्राकृत' जेवा वर्तमान संकुचित अर्थ माटे 'प्राकृत' शब्दने वापर्यो ज नथी. आर्षप्राकृत अने साधारणप्राकृतमां जे विशेषता छे ते आगळ
. आवी गई छे परंतु साधारणप्राकृत पण बधुं एक साधारण प्राकृतनी कृतना सरखं नथी. चंडनुं व्याकरण जोईए अने हेमचंद्रनुं
की पण विधविधता
- व्याकरण जोईए तो ते बन्नेमा विशेष भेद छे, तेनुं एक ज उदाहरण बस छे : आचार्य हेमचंद्र ‘कृत्वा' अर्थे वपराता 'कट्ट' शब्दने आर्षप्राकृत कहे छे, त्यारे चै तेने एवा भेदमां न लेतां पोते
साधी बतावेला सामान्य प्रयोगोमां मूके छे. चंडमां चंड अने हेमचंद्र
आर्षप्राकृतनो भेद ज नथी. 'पिशाची'ने बदले १०२ “क्त्वः तुं-अतू-तूण-तुआणाः"-८।२।१४६ “कटु इति तु आर्षे"। १०३ “तु-ता-चा-टु-तुं-तूण-तुवाण-ओ-प्पि-वि पूर्वकालेऽर्थे " -सूत्र-१९ । तु, त्ता, च्चा, हु, तुं, तूण, तुवाण, ओ, प्पि, वि, प्पिणु पूर्वकालार्थे भवति ।
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