Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library

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Page 13
________________ 11:2 [ २ ] स्तिक लोगोंका ही है । आस्तिक किसी देश जनपद या - जाति विशेषका नाम नहीं है । आस्तिक वह ही कहे जासक्त हैं कि जो जीव- अजीव - पुय- पाप - आश्रय-संवर- निर्जरा-बंध - मोक्ष- जन्म - जन्मान्तर - स्वर्ग नरक के साथ ईश्वर परमात्माका होना कबूल करते है. ईश्वरको सर्वज्ञ - सर्वदर्शी - दयालु - मायालु - नीरज - परोपकारी - अनंत चतुष्टय धारक निरीह - निर निमानी - अक्रूर - ऋजु - अमायी - सत्यमार्ग देशक - धर्मचक्रवर्त्ती - धर्मसारथी - त्रिलोकी त्राता आदि यथार्थ गुणे के सागर मानकर उनके वचपका आराधन करते हैं । उनके बतलाये राहो रास्ते पर चलना यह भी ईश्वरकी भक्ति पूजा - सेवा-सुश्रूषा कहलाती है, जैसे प्रभु पुष्पादि पूजे जाने पर श्रद्वालुके मोक्षदाता होते हैं. वैसे उनकी आज्ञा पालकको भो वह परमपद देते हैं, धूप-दीप - जल - चंदन आदि विविध प्रकारकी पूजा करने वाले कों पहले उस जगवत्सल के आज्ञा वचनोंपर यकीन रखनेकी खास जरूरत है । "आस्था मूलाहि धर्माः " - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Sorratagyanbhandar.com

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