Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library
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[११२] प्रेम ॥ ३६ ॥ इम महा भाग्य अनेक ॥ श्रावक ते सकल विवेक ॥ किया गिरिनारे उधार ॥ कुग कहि जाणे तस पार ॥
॥ कलश ॥ (राग धन्यासरी) त्रुठो ठोरे मुने साहेब जगनो त्रुओ
जगदिश मलो जगदिश मलोरे ॥ ए टेक.)
श्री गिरनार विभुषण स्वामि ॥ जादव कुल शणगारजो ॥ राजुलबर रंगे जइ वंदु ॥ निरुपम नेमकुमारजी ॥ ज०.१ ॥ अम आंगण सुरतरु फ. लीयोरे ॥ ज० ॥श्री यदुवंश विभुषण मोहन ॥ समुद्र विजय धनतातजी ॥.धन्य शिवा देवी माता जेणे जायो । जिनजी जगत विख्यातजी ॥ज० २॥ अंबड संभड दोये भाइ ।। सुत साथे अंबाइजी ॥ श्री नेमिनाथ पद पंकज भमरी ।। पूजो परम सखाइजो ३ ॥ आरती कष्ट हरो सा देवी ॥ श्री संघ वंछित पूरोजी ॥ चिंतित सिद्धि करो वलि मुरवर ॥ सिध वणायक सरोजी ॥ ज० ४ ॥ आज अपूरव दिवस
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