________________
[ १२० " नस्मानशिवासूनु-रुज्जयन्तेनमस्कृतः । " तेन श्रद्धावतानून-मुपयेमे शिवेंदिरा ।। _ अर्थ-पासनसे विराजित-श्याममूर्ति-दिशाही है वस्त्र जिसके-शिवाराणीके पुत्र होनेसे जो शिव कहलाते है-अथवा-वामनावतार विभुने जिनको शिव नामसे बुलाया है, जो-महाघोर क. लियुगमे सर्वपापोका नाश करनेवाले है । उनके दर्शनसे-चरणस्पर्शनसे कोटियज्ञ जितना फल प्राप्त होता है.
इस लिये जिस पुण्यात्माने गिरनार तीर्थपर श्री नेमिनाथ प्रभुको वंदन नमस्कार किया, उस श्रद्धालुने निश्चय मुक्ति वनिताकी वरमाला पहनली !!!
इस बातको सुनकर परम श्रद्धालु रत्न श्राव. कको तीर्थाधिराजपर अपूर्व भक्ति भाव जागा । उ. सने सभा-समक्ष खडे होकर प्रतिज्ञाकीकि गुरु म. हाराजके मुखसे जिस तीर्थ राजकी प्रशंसा सुनी है चतुर्विध-संघ सहित ६ री पालता हुआ उस तीथकी यात्रा करुं तबही मै दूसरी क्मिय वाउंगा.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Soratagyanbhandar.com