Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી યશોવિજયજી Ibllebic be દાદાસાહેબ, ભાવનગર, ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ 5A2A૦૦૪ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Burratagyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री न्यायाम्भोनिधि - श्रीमद्विजयानन्दसूरिभ्योनमः || ग्रंथमाला. नं. १६ २९४६३ Exp ॥ अर्हम् ॥ ॥ गिरनार गल्प ॥ प्रेरक शान्तमूर्ति मुनिमहाराज १०८ श्री हंस विजयजी महाराज. योजक - जनाचार्य श्रीमद्विजयानन्दमूरि शिष्य - मुनि महाराज श्री लक्ष्मी विजयजी शिष्यमुनिमहाराज श्री हर्ष विजयजी शिष्यमुनिमहाराज श्री वल्लभविजयजी शिष्य- पंन्यास श्री ललित विजयजी ॥ प्रकाशक श्री हंस विजयजी फ्री जैन लायब्रेरी श्रीवीर निर्वाण २४४८ श्री आत्म संवत् २६ विक्रम संवत् १९७८ इसवीसन १९२१ मूल्य आठ आना. BOS Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Hierk EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE में अमदावाद-श्री अंबीकाविजय प्रिन्टींग प्रेसमा पटेल लक्षमीबंद हीराचंदे टाइटल छाप्यु. चोपडी जैन विचाविजय प्रेसमा छापी. EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaray.Burratagyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमन् पंन्यासजी मणिविजयजी महा ___ राजनुं जीवनचरित्र. गुजरात मातना खेडा जील्लापां कपडवंज तालुकाना कपडवंज नामना अहेरयां शाह मगनलाल भाइचंद नामे के जे प्रस्तुत जीवनचरित्रना नायकश्री. पंन्यास मणिविजयजी महाराजना संसारीपणामां पिता उत्तम श्रावक अने घरना मुखी गृहस्थ हता, दुकाननो धंधो प्रमाणिकपणे करता, अने धर्मअनुष्ठान प्रत्ये पण अतिरुचीवाला हता, एमनां धर्मपत्नी एटले श्री मणिविजः यजी महाराजना संसारीपणानां मातुश्री नामे जमना बाइ पण पतिव्रत धर्मने अनुसरी चालनारां हता. म हाराजश्रीनां मातापिता धर्मनीष्ठ साधुसाध्वीनी भक्तिबाळां, अने गुणानुरागी हता. . संबत. १९२४ नी शालमां मुनिमहाराजश्री झचेर सागरजी महाराजे कपडयांचोमासंकयु. श्री अवेर सागरजी महाराज विद्वान बने उत्तम उपदेशक हता, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Sorratagyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) जेथी चतुर्मासमां मह्मराजश्रीना रसमस : वाणीवीला धर्मापदेशवडे सेंकडो जीवो प्रतिबोध पाम्या, तेमां पण मगनभाइ.प्तो प्रथमीज अमिभक्तिवाला अने धर्मीष्ट होवाथी महाराजश्रीना उपदेशथी मगनभाइने एवी दैराग्य वृत्ति जाग्रत थइ के आ संसारना क्षणमंगुर हरखको त्याग करवौ श्रेष्ठ ... 'अगनभाइने बे पुत्र हिता, मोटी पुत्र नाम मणिलाल अने माना पुत्र नाम हेमचंद हेतुं हमद चार वर्षे न्हाला हत्ता बन्ने सरकारी निशाना सारी अभ्यास कर्यो हतो अने बन्नेमा विवाह पण यया हता. धर्मीष्ट पिताश्रीना परिचयथी बन्ने पुत्र निरंतर नव कारमंत्रनु स्मरण करती, पतिक्रमणना भूत्र अने देहरासरमा कहिनामा दूहा विगैरे धार्मिक अभ्यास पर करता, मूळथी बन्ने पुत्र अदिशाली अने पिताश्री धर्मनौष्ठ, तेथी वाफ वा धेटा" ए कहेवर्तने अनुसार धीरे धीरे धर्मरेमो थवार्थी घणीवार मुनिनु व्याख्यान श्रवण करवा जत्न स्मारकाध ज्ञाम उपर मेम थ.. गथी जीव विचार नवस्वामिरे गांव पीकरणाम नो अभ्यास को. मातपिकाए. सूने भाइयो फरणात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जातो पण पूर्व पून्यनी उर्दये वेन्नै भाइ नौ ज्ञानाभ्यात वृद्धि पामया लाग्यो अने"मापिदेशिका-अमरकोष विमेरे संस्कृत अभ्यास कर्यो. पूर्वभवमा" ज्ञान प्राप्त थयु होय तो आ भवी पण ज्ञान संस्कार चालु रहेवार्थी अल्पप्रयास ज्ञानाभ्यास धनी शके छ तेमे बने. भाइओए अल्पपयांसे। संसृत ज्ञान प्राप्त कयु. पितांत्री शाह नाविक पिताश्रीज हिता जैथी बन्न पुत्री ज्ञानशाली होकायों पत्तिबोध पानी चारित्र अंगीकार करे तो हम ना आत्मन अने पर पंग कल्याण करी महा उपकार करनार थायें एम इच्छता.... . माना जमना बाई पोतानी पुत्रीने भाग्यशाली, ज्ञानशाळोजागी आनंदयग्न रहेता घरमा समदि, अनुकूळ अने भाग्यशाली धुओं अने रुपवाम गुणीयल बहुआना मरखा संयोगथी माता जर्मनाबाई धर्मनो अतुल्य प्रभाव मानी विशेष धनीष्टपणे वर्तता हता. · वळी काळनो गनि विचित्र होवायों मुखनिमग्न जीर। नी इयर्या करमार काळे मैणिलाल रो" वहु मागे आलोक मुम्ब हरों लोधु अर्थात् माणेकचाइ देवगत थयां: आवरखने मंगिलालने परण्ये३ वर्षथयां 'हता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) अने हेमचंदने परण्ये १ वर्ष थयुं हतुं मणीलालने बीजा विवाहनी बात चालती हती परन्तु मगनभाइना विचार ए हतो के पुत्रोने चारित्र अपारी मारे पण चारित्र ले. जेथी बीजीवार विगह स्वीकार्यो नहि. . पूर्व भवना पूण्यथो बन्ने पुत्रो ज्ञानाभ्यास सहित वैराग्यवृत्तिवाला पण थया. जेथी पिताए बन्ने पुत्रनो चारित्र उपर प्रेम थयो जाणी अमदावाद पासे कासंद्रा गाममा मुनिमहाराजश्री नीतिविजयजी पामे मोकल्या. तेमां मणिलाल पुख्तवयना अने विधुर होवाथी मणिलालने दीक्षा आपो, अने हेमचंद तुरत परणेला अने काची बयना होवाथी तेमने दीक्षा लेवा माटे काळ विलंबनी सूचना करी. मणिलालनु नाम श्री मणिविजयजो पाइयुं के जेमनुं आ चरित्र लखवा हुं भाग्यशाळो थयो . मणिलालनी दीक्षा लीधानी वात सांभळी माता जमनावाइने पुत्रपणाना स्नेहथी दीलगीरी थाय ए स्वाभाविक छ, परन्तु हेमचंदे दीक्षा नहिं लीधेली होवाथी अने पोताना पतिए पवित्र बोध आप्याथी पुनः चित्त विश्रान्ति प्राप्त श्रीमणिविजयजी महा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Soratagyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) राजे पोताना उत्कृष्ट भारथी अने पितानी पूर्ण सम्मतिया दीक्षा लोधेली होवायो एमनुं चारित्र निर्वीनपणे सरळ थयुं, अने रुमहाराजनी साथे विहार करवा लाग्या हेमचंद दीक्षा लीग विना पितानी साये घेर आव्या, परन्तु चित्त तो वैराग्य वृत्तिवालुंज हतुं. पुनः पितानो विचार हेमचंदने दीक्षा आपवानो थतां वर्तमानकाळमां विचरता श्रीमद् विजयसिद्धिसूरि पासे मोकल्या. श्रीविजयसिद्धिसूरीजीए दीक्षा आपी. अने श्रोकनकविजयनो नाम राख्यु. दीक्षा लीधा बाद अखतर वीरमगाम तरफ विहार को __ हेमचंदनो माताने अने सासरीयांने दीक्षानी वातनी खबर पड़ी के तुर्त सासरीयाए अने माता जमना बाइए अमदावाद जइ सरकारमा अरजी करी. सगीर (काची) वयना होबाथी केओने भोळव्या छे एम जाणी कोरटे घेर मोकली देवा फरमाव्युं. लोकमां अपवाद न बनाना कारणयी हेमचंद घेर आव्या खारथी ससार तेपने पोताने घेरज राख्या. तोपण स्वाभाविक बैराम्बरति म बदलाइ पिताश्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Suratagyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) मगनलालने दोसी बालीभाइ दैवचं, वालाभाइ दल.. मुख, अने शंकर लाल विगैरे धर्मो गृहस्थोनी मदद' हती जेथों पिताश्रीएं हाईकोर्टमां अपील करौ, सालीमीटर तरीके वासुदेव जगनाथ तथा बॅरीस्टर तरीके मेकर्सनने रोकी, कोर्ट कादो आप्यो के काइप माणसने पोताना आमहोताटे धर्म आरा धने करता कोइ रोकी शक न है। एमाणे चुकादों। थवाथी हेमच लावधी प्रसिं लाली सास गार्ममा मॉटों धाम, पूर्वक श्री झारसागरजी महाराज पास पवित्र दोक्षा अंगीकार करो स्यारवाद अनुक्रमें औ.. गानो उद्धार करनारा अमें मषिपद संयुक्त थया: नाम श्री सागरीनद सूरीश्वर प्रसिद्ध थयु.. शा" भगनभाइएं पाताी बन्ने बुत्रोंने दोला अपाध्या वाद संवते र १५छ नी शीलमा पोते पण दीक्षा लीधी अमे नाम श्री जोवधिजयनी खचापो आयु. तेषीश्री चारित्रपाले १९ नोसालमा पेटेलादमाममा काळिधर्ष पाया त्यारवादः जगन्म-कर वाईए घों परवत पालीतगाली-रो श्री आदीपा भगवाननी यात्राको लाम मेन्यो तीर्थयात्रा मुनि-. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Soratagyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मक्ति. आंश्यक क्रिया विशेरे:- अनेक धर्मकार्य की न.नीराइए पवित्र तीर्थस्थल : पालीतापमान देद त्यात को -FFA महाराज श्री मोघविजयजोनी भक्ति निमिचे हो पण ओनो काळधर्मनों लिकि माने त्या जा गिरथी देवभक्ति करवामां आवे केबाद, (श्री सागररानंद सही करना संसारीपणाला धर्मपानको सामना टुंबपी हीला श्री सासदा मुवीश्वर अले महोत हातरछेर - ITER . EF: श्री मणिविजयनी महाजे संत आहे मात्र व्याकरणाचल सारी जीते संपादन का - साम्रा रहो शेठ क्रोलामाइ करमकली सहायधी श्रीमंता सस्कार मामबाड मनराजना शास्त्री काशी विासी-समामाभाइ वामे यायचासतो; अभ्यास कर्यो, तेमज अंग्रेजी भाषाको पण अभ्यास कर्यो. संकामा पो मासा पल्याम पट्टी मळी, - तेश्रोएलान, अमदावादाणी, कालोझा काली सीपीवदाग हा पेटला, सुभात, गार वन्दरा, अनेतना विमेरे सामो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaxay.Soratagyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) चौमासां को. छेल्लुं चोमासु पाल ताणा पासे ताजा गाममा रह्या. ते गाममा प्लेगनो उपद्रव होवायी अने मुनिए धर्मक्रियाना निर्वाह माटे रोगादिक उपद्रव वाळा स्थाननी त्याग करबो एबो विधिमा होबायो माराजश्री तलाजाथो विहार करो त्रापन गाम पधार्या, त्यां शरोरे व्याधि थवाथो संवत १९७८ नो सालमां कारतग शुदी ३ ने रोज काळधर्म पाम्या. एवा मुनि महाराननु गुणकीर्तन करवायी हुं मारा आत्माने कृतार्थ थयो मार्नुछु. अने था अल्प जीवनवृत्तांत वांचनार बोना महाशयो पग शानादि गुग प्राप्त । करी पोताना प्रात्माने कृतार्थ करे ए हैतुथी महाराजश्रोनुं टुंक जीवनचरित्र मारी अल्पमति प्रमाणे लखेलं . छे, तेमां जे कंइ भूल चूक अविनय अने अनादर ययो होय तो हुं अंतःकरवपूर्वक क्षमा मागुंडं. -इत्यलं. ___ ता. क. आ चुकोनो तमाम सर्व लुणसावाडावाला रा. रा. मामलतदार उपाभाइ जेठाभाइए आपेलो के अने उपरतुं चरित्र को पलायोल पतिदिया मुकबामा मान्य के प्रसिद्ध कर्ता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CARE ॥ वन्दे वीरमानन्दम् ॥ ॥श्री गिरनार गल्प ॥ चरम तीर्थकर श्रीमन्महाबीर देवके समयमे -क्रिया-अक्रिया-अज्ञान-विनय-आदि पक्षांकोस्वीकारने वाले ( ३६३ ) मतावलंबी कहेनाते थे, परंतु-हाल के वर्तमान युगमें उस संख्या की भी सीमा नही रही । समयको गतिके साथ धों की गतिका भी परिवर्तन होता है, आज भारत वर्ष के अन्यान्यलभ्य और दृश्य अनुमान (३१) क्रोड़ के जनसमुदित वस्तिपत्रकमें, बावन लाख साधु और-तीन हजार पंथ मुने जाते हैं । धर्म और धर्मियोंकी इस विशाल संख्या ज्यादा हिस्सा आ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnamay. Burratagyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11:2 [ २ ] स्तिक लोगोंका ही है । आस्तिक किसी देश जनपद या - जाति विशेषका नाम नहीं है । आस्तिक वह ही कहे जासक्त हैं कि जो जीव- अजीव - पुय- पाप - आश्रय-संवर- निर्जरा-बंध - मोक्ष- जन्म - जन्मान्तर - स्वर्ग नरक के साथ ईश्वर परमात्माका होना कबूल करते है. ईश्वरको सर्वज्ञ - सर्वदर्शी - दयालु - मायालु - नीरज - परोपकारी - अनंत चतुष्टय धारक निरीह - निर निमानी - अक्रूर - ऋजु - अमायी - सत्यमार्ग देशक - धर्मचक्रवर्त्ती - धर्मसारथी - त्रिलोकी त्राता आदि यथार्थ गुणे के सागर मानकर उनके वचपका आराधन करते हैं । उनके बतलाये राहो रास्ते पर चलना यह भी ईश्वरकी भक्ति पूजा - सेवा-सुश्रूषा कहलाती है, जैसे प्रभु पुष्पादि पूजे जाने पर श्रद्वालुके मोक्षदाता होते हैं. वैसे उनकी आज्ञा पालकको भो वह परमपद देते हैं, धूप-दीप - जल - चंदन आदि विविध प्रकारकी पूजा करने वाले कों पहले उस जगवत्सल के आज्ञा वचनोंपर यकीन रखनेकी खास जरूरत है । "आस्था मूलाहि धर्माः " - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Sorratagyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] यहां एक बात और कहनी राजी है. कि जिसका उल्लेख करना खास आवयक और प्रासंगिक है. 'ईश्वर संसारमें एक उत्तमोत्तम पड़ी है कि जिसको हर एक भव्य जंतु अपने सात परिशीलितनिशुद्ध आचरणां से हासिल कर सकता है। 'धनसार्थवाई' के भदमें वीजारोपण करके जीवा. नंदके जन्ममें उसको विशेष सींचकर और वज्रनाभके भवमें उसके मूलको खूब परिदृढ करके अर्थात् चौद लाख पूर्व-वर्ष के विशुद्ध चारित्र पर्याय और विनितान-निराकांश-तपसे निकाचित कर जो गुणरू: सुरशाखी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवजीके जीवने अपने आत्माराममें लगाया था प्रतिबंधक कमीको क्षयकर जो सहा -सर्वदर्शित्व-गुरुगुण नाभिराना के अंगनने प्राप्त किया था वहही आतावल-वहही शक्ति-सामर्थ्य-वह कारण कलाप-उनके पौत्र मरीवि भी था. वह ऋषभनाथ प्रभुके आत्मगत केवलज्ञान केवल दर्शनादि क्षायिक भावोपगत-आविर्भूत थे. और मरीचिके भाविभद्रात्मामें वह सर्व गुण खनिस्थ मणों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Soratagyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की तरह तिरोभावमें थे. मरीचिने भी “ नयसार ग्रामचिंतक" की अवस्थामें उस मंदार तरुके वीज तो बीजे ही हुए थे सिर्फ आगेका क्रिया संदर्भ ही अवशिष्ट था, उसको भी " नंदनकुमार" के भवमें विशुद्धात्मवीर्यसे आचरणागोचर कर वह ही भी "वीर" के भवमें श्री ऋषभदेवके समान हो गये । जैनदर्शनमें "ईश्वर" पदके अधिकारी जो लोकोत्तर सामर्थ्यशाली-उत्तमोत्तम जीवात्मा होते हैं उनको “ सामान्य केवली " "और : तीर्थकर" इन दो नामसे उच्चारा जाता है. सामाः न्य केवली हरएक जातिमें-हर एक कुलमें-नर नारी आदि हर एक लिंगमें केवल ज्ञान केवलदर्शनकी संपत् प्राप्त कर सक्ते हैं। तीर्थकर-देव फक्त राजवंशी क्षत्रीयकुलोत्पन्न ही और बह भी पुरुषोतम ही होते हैं । पूर्वभवोपार्जित पुण्ययोगसे माताको चतुर्दश स्वप्नांसे अपने भावि महोदयकी सूचना दिलाते हुए जात मात्रही देवदेवेन्द्रोके पू. जनीय, वंदनीय, अर्चानमस्याके पात्र होते है । उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके छ छ आरोका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Buratagyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५ ] एक कालचक्र कहलता है. अवसर्पिणी का पहला आरा चार कोटाकोटि सागरोपमका होता है. दूसरा आरा तीन कोटाकोटि- तीसरा दोका, चौथा ४२ हजार वर्ष कमी एक कोटाकोटि सागरोपम का, पांचवां (२१) हजार वर्षका और छठा भी (२१) इक्कीस हजार बर्षका माना गया है. सब मि लकर (१०) कोटाकोटि सागरोपमकी अवसर्पिणी और (१०) कीही उत्सर्पिणी मानी गई है । उत्सर्पिनीमें पहला २१ हजार वर्षका दूसरा भी २१ ह जार वर्षका तीसरा ४२ हजार वर्ष न्यून एक कोटाकोटि सागरोपमका, चौथा दो, पांचमा ३और छठा ४ कोटाकोटि सागरोपमकी स्थितिवाला गिना जाता है || अवसर्पिणीके तीसरे आरेकी आखीर में पहला तीर्थकर और चौथे आरेमें २३ तीर्थकर होते हैंउत्सर्पिणीके तीसरे आरेमें २३ और चौथे आरे के प्रारंभ में अंतिम चौवीसवें तीर्थंकरदेवका होना माना गया है । इस वर्तमान अवसरपिंणीकाल मे - श्रीऋषभदेव १ श्री अजितनाथ २ श्री संभवनाथ ३ श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sorratagyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IFY अभिनंदनरवामी ४ श्री सुमतिनाथ ५ श्री पद्मप्रभ स्वामी ६ श्री सुपार्श्वनाथ ७ श्री चंद्रप्रभस्वामी ८ श्री मुविधिनाथ ९ श्रीशीतलनाथ १० श्रीश्रेयांसनाथ ११ श्री वासुपूज्यस्वामी १२ श्रीनिमलनाथ १३ श्री अनंतनाय ४ श्रीधर्मनाप १५ श्रीशांतिनाथ १६ श्री कुन्थुनाथ ७ श्री अरनाथ १८ श्री मल्लीनाथ १९ श्रीमुनिसुव्रतकामी २५ श्री नमिनाथ २१ श्री ने मिनाथ २२ श्रीपार्श्वनाथ २३ श्री महावीस्वामी २४ येह चौवीस तीर्थकर महाराज हुए हैं। इन महापभावशाली तीर्थकर देवांकी पांच अवस्थाका नाम "कल्याणक" है. च्यवनकल्याणक । जन्मकल्याणक । दीक्षा कल्याणक । केवलज्ञान कल्याणक । और निर्वाण कल्याणक । किसी तीर्थकर देवका कोइ कल्याणक कहीं होता है और कोई कहीं होताहै। जहां जहां उन परमेश्वरों के कल्याणक होते हैं उन क्षेत्रोंका-कल्याणोंके योगसे कल्याणक भूमि नाम प्रख्यात हो जाता है। वर्तमान चौवीसीके बावीसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथजीके दीक्षा, केवल और निर्वाण येह तीन कल्याणक " श्री गिरनार " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Soratagyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ ] ( रैवताचल ) पर्वतपर हुए हैं । " उज्जितसेलसिंहरे दिख्खा नाणं निसिहिआ जस्स" इत्यार्ष वचनात् । श्री नेमिनाथजी के विषयमें लोकोक्तियें" श्री नेमिनाथ स्वामीके नाम में 'नाथ' शब्दको देखकर और उधर अपने धर्ममें- गोरल-मच्छन्दरआदि नामों के साथभी नाथ शब्दको देखकर दर्शना न्तरीय लोग और और कल्पना करलें यहतो संतव्य है, परंतु किसी प्रसिद्ध इतिहास बेताने यदि ऐसी भूल करदी हो तो वह अक्षतव्य है. | " टोड राजस्थान के अनुवादक पंडित ज्वालादत्त शर्मा लिखते हैं " टोड साहिब के मतानुसार चार बुध " माने गये हैं । साहिब कहते है कि यह चारों बुध एकेश्वरवादी थे । और उक्त धर्मका एशि" यासे लाकर भारतवर्षमें प्रचार किया था । उ" नके समस्त धर्मशास्त्र एक प्रकारकी शंकुशीर्षाकार “ वर्णमाला में लिखे हुए है । सौराष्ट्र- जैसलमेर " और विशाल राज्यस्थानके जिस जिस स्थानमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८ ] “ पहले बुध और जैनलोग बास करते थे. टोड " साहिब उन सब देशोमें जाकर उनके धर्मकी “ अनेकशिलालिपी और ताम्र शासन लायेथे । उन " चारों बुधोंका नाम नीचे लिखते हैं. 66 प्रथम बुध - ( चंद्रवंशकी प्रतिष्ठा करनेवाला) अनुमान इसबी से पहिले २५५० बर्षमें उत्पन्न हुआ “ द्वितीय - नेमिनाथ - ( जैनियों के मत बाइसवां ) इसासें १२० वर्ष पहले हुआ । “ तृतीय- पार्श्वनाथ - ( तेईसवां ) ईसासे ६५० वर्ष पहले हुआ । " चतुर्थ - महावीर - ( चैावीसबां) ईसासे ५३३ वर्ष पहले उत्पन्न हुआ " सोचना चाहियेकि, जिस जैन शासनकी आज्ञा को मायः आधा संसार शिरोधार्य मानताथा, जिस जैन धर्मको अशोकके पूर्वज श्रेणिक प्रभृति राजा प्रेम पूर्वक पालते थे, जिस जैनधर्मने उखडती हुई गुर्जरराजधानीको फिरसे वद्ध मूल करदियाथा, जिस धर्मका सिद्धराज जैसे नरेश मानकरते थे, और चौल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्य चिन्तामणि कुमारपाल तो जिसमें गृहस्थ दीक्षा पाकर पूर्ण कृतकृत्य हुएथे। जिस पवित्र धर्ममें-एक तुच्छ मानव जीवनमें-तीस अवज तिहोत्तर क्रोड सात लाख बहत्तर हजार जितनी संपत्ति खर्च करके जगत्का कल्याण करने वाले वस्तुपाल तेजपाल जैसे मंत्री हुए हैं, जिस दयालु-विशाल-धर्ममें जगडशाह जैसे महापुरुषोंने क्रोडो रुपये खर्च कर भूखे मरते हजारों नहीं बलकि लाखों करोडों मनुष्योंकी जान बचाइ हैं, जिस उदार शासनक परम भक्त भाग्यवान् भामाशाहने अस्ताचलपर पहुंचे हुए मेवाड क्षत्रियों के प्रतापसूर्यको किर तपाकर छ.ये हुए अनी. ति अंधकारको देश निकाला दिया और दिलवाया है। आज उस धर्मकी शोचनीय दशा हो रही है। मनमाने आक्षेप, मनमानी मित्थ्या कल्पनाएँ होती चली जा रही हैं परंतु कोइ किसिके सामने माथा ऊंचा नहीं कर सकता !!! ____ अफसोस है कि-आज संसारमें भगवान् “हरिभद्र सूरि" और भगवान् श्री हेमचंद्रमूरि नहीं हैं कि जिनकी वाचा और लेखिनी के डरे हुए वादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Soratagyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] वृन्द परास्त हो कर इस उद्घोषणाको सत्य मानते थे कि “ न वीतरागात्परमस्ति दैवतं न चाप्यनेकान्तमृते नयस्थितिः " जिस हरिभद्र सूरिके " नास्माकं सुगतः पिता न रिपवस्तीर्थ्या धनं नैव तै- दत्तं नैव तथा जिनेन न हृतं किञ्चित्कणादादिभिः । किन्त्वेकान्तजगद्धितः स भगवान् वीरों यतचामलं, वाक्यं सर्व मलोपहर्तृ च यतस्तद्भक्ति मन्तो वयम् ||१||" तथा " पक्षपाती न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः || २ ||" ऐसे - मध्यस्थ भाव भरे - औदार्य गुणपूर्ण- उद्गारों को सुन सुन आज भी निष्पक्षवादी संसार उन्हें शिर झुकाकर पूज्यपाद - सदा स्मरणीयसंसारके उद्धारक पुरुष - ऐसे २ पवित्र नाम से बुला रहा है । आजके प्रायः साधनप्रचुर संसार में पवित्र धर्म के सिद्धान्तको प्रकट कर दिखाने के लिये ऐसे पुरुषोत्तमावतारकी और " न रागमात्रा त्वयि पक्षपातो, न द्वेषमत्रावरुचिः परेषु । यथाव दासत्वपरीक्षया तु त्वामेव वीरमभुमाश्रयामः ऐसे विश्वजनीन सत्यनादकी गर्जना के करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Smartagyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] वाले-चौलुक्य वंश तिलकायमान-परमाईत-कुमारपाल भूपति के धर्मगुरु कलिकाल केवलिकल्प प्रभु श्री हेमचंद्रकी भी उतनी ही आवश्यकता थीकि जितनी १४४४ ग्रंथांके निर्माता गुरु श्री हरिभद्रजी की थी । आजकी सांपतकालीन जनता-बडी खुशी से झुकती है परं कोई सत्य कह कर झुकाने वाला चाहिये. आजकी सृष्टि संसार के तखते परके किसीभी धर्मको मान देती है-कोई दिलानेवाला चाहिये । ऐसा न होता तो "पूज्यपाद-प्रातःस्मरणीय-न्यायाम्मोनिधि-श्रीमद्विजयानंद सरि (आत्मारामजी) महाराजने दिल्लीसे टेकर पंजाबके पश्चिम तट तक के भूले हुए लोगेांको कैसे सन्मार्गगामी बनाया होता ? श्री लक्ष्मीविजयजी (विश्नु. चंदजी ) जैसे अखर्व पांडित्य पूर्ण साधुओंको अपने सच्चे अनुयायी क्योंकर बनाया होता? ___ मनुष्य अपने आत्मावलंबनसे दूसरेका अनुकरणीय बन सकता है । संसारमें सदाचारी मनुष्य देवदेवेंद्र और सार्वभौम राजाको भी मान्य होता है। सृष्टिके सदाचारोंमें “वृद्धानुगामिता" एक बड़े में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnanay. Suratagyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२ बडा सदाचार है लोकोक्ति है । कि-"बद न सोचे जेमगर दूगर कोइ मेरी सुने। है यह गुम्मजकी सदा जैसी कहे वैसी सुने " कलिकाल सर्वज्ञ-इतने दर्जे तक पहुंचनेपर भी अपने गुरु महाराज के परमभक्त थे. इसी लियेही-कर्णाटक से हिमाचल के वीचकी २२ राजधानियांपर हकूमत करनेवाला सिद्धराज जयसिंह, और तुरक देश-गंगातट-विन्ध्याचल-और समुद्र किनारे तक भूमिके एक छत्रराज्यको करनेवाला कुमारपालभी उनकी आज्ञाको देव निर्माल्य की तरह शिरोधार्य करते थे। - - स्वामित्व-और-स्वीकार. जैसे वैश्नव संप्रदायों द्वारिकापुरी जगन्नाथपुरी आदि स्थानोंको पवित्र तीर्थ स्थान रूपसे स्वीकारा गया है । शैवोने जैसे सोमेश्वर,अंकलेश्वर-तडकेश्वर जगदीश्वर, नगेश्वर-इकलिङ्ग भीडभंजन प्रभृति स्थान नगर गतमंदिर मूर्तियोंको पूज्य माना है । इस्लामवालोंने जैसे मका, मदीना, ख्वाजापीर, ताजबीवी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Sorratagyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] जुमामस्जिद वगैरह जागाको अपने मान्य और पवित्र पाक समझा है । पंजाबमें सिक्ख महाशयोंने जैसे अमृतसरके दरबार साहिबको, तरनतारनको, भदैनी साहिब और रोड़ी साहिवको । गुसाँइ समाजने बद्दोकी के मंदिरको । रामचंद्रजीके उपासकांने सेतुबंध रामेश्वरको, वैदिक पौराणिकांने काशीबाणारसीको । नदियोंके भक्तोंने जैसे गंगा यमुना त्रिवेणी सरस्वती वगैरहको अपने पुण्यक्षेत्र माने और स्वीकारे है, ऐसे जैन संप्रदायमें-शत्रुनय-गिरिनार-आबु-अष्टापद-सम्मेतशिखर-कुलपाक,जी. रावला-अंतरिक्ष-मांडवगढ, अवंती, केसरियानी, कांगडा, कावी, भेरा, हस्तिनापुर, पावापुरी, चंपापुरी, राणकपुर, वरकाणा, शंखेश्वर, भोयणी, नाडोल, नाडलाइ, मुछाला महावीर, पानसर, मित्राणा, झगडिया, महुवा, डाठा, फलौधो पार्श्वनाथ, कापरडाजी, ओसिया आदिको पावन तीर्थ स्थल माने गये हैं । उनमेंभी तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय और गिरिनारको अत्युत्कृष्ट तीर्थोत्तम सदा स्मरणीय सदा वंदनीय पूजनीय माना है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] तीसरे आरे के अवसान समय में पहले तीर्थंकर श्री " ऋषभदेव स्वामी " हुए हैं, उनके चौरासी गणधरों में से “ पुंडरीक स्वामी " जो मुख्य शिप्यथे, उन्होने खुद श्री ऋषभदेव स्वामीके मुखा विन्दसे श्री शत्रुंजय महातीर्थ का माहात्म्य सुन कर सवा लाख श्लोक प्रमाण श्री शत्रुंजय मा हात्म्य नामक ग्रंथका निर्माण कियाथा. ऐदयुगीन मानवको अल्पायु और अल्पमेधावी जानकर श्रीवीके पट्टधर पंचम गणधर श्री स्वामीजीने उस महान ग्रंथको घटाकर २४००० श्लो कर्मे रचाथा, आगामी काळके मनुष्यकी स्थितिका पर्यालोचन करते हुए श्री " धनेश्वरपूरि " जीने श्री गणधर प्रणीत ग्रंथको भी १०००० श्लोके मे संक्षिप्त किया है । फिलहाल श्री आदि नाथ - भगवान् के तीर्थसे लेकर आज तक यह के ही सर्वथा माने गये हैं रहे हैं । हां कोई ऐसा भी समय आजाता है कि- उन उन देशोंके या नगरों के नरेश जब प्रबळ तीर्थ-जैन प्रजा और माने जा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्षपाती होज़ाते हैं तब वह उन तीर्थोपर अपनी अपनी श्रद्धा के मुताबिक मनमाने अधिकार जमानेका उधम करते हैं । ग्यारवीं शताब्दिमें जब संडेर गच्छ नायक-श्रीयुत्-ईश्वर मुरिजीके पट्टधर-श्री 'यशोभद्र मूरिजी आहड के रहनेवाले मंत्री के संघके साथ श्री शत्रुञ्जय और गिरिनार तीर्थकी यात्रा १. आचार्य श्री यशोभद्र मूरिजीका-जन्म विक्रम संवत् ९५७ में आचार्य पद्वी संवत् ९६८ में । और १०३९ स्वर्गवास । जन्मसे १३ वर्ष सूरिपद और उसी दिन से यावज्जीवतक आंबिलकी तपस्या । आंबिलमें भी फक्त ८ कदल प्रमाण ही आहार । विशेष वर्गन मेरे लिखे श्री यशोभद्र मूरि चरित्रसे, या श्री विजयधर्म मरि संपादित ऐतिहासिक रास संग्रह भाग दूसरे से जानो। ___* आहड-का प्राचीन नाम आघाट है, प्राचीन तीर्थोकी नामावलीमें-"आघाटे मेदपाटे" ऐसा जो उल्लेख है यह इसी हि नगरके लिये है. यहां आज भी जैनके विशाल-और उत्तुंग मंदिर हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvanay. Suratagyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] करने गये थे उस वक्त जूनागढका राजा रावखेंमार जूनागढकी गादी पर था. उसने मूरिजीका बडा सत्कार किया. और उन्ही आचार्यश्रीजीके शिष्य " बलिभद्र " मुनि जब किसी संघपति के बुलानेपर वहां गये तब वह ही रादखेंगार बुद्धधर्मका पूर्ण पक्षपाती हो गया था. - -- ।यह वृतान्त संक्षेपसे नीचे लिखा जाता है। किसी पुण्यात्मा कल्याणार्थी जीवने गुरूपदेश को श्रवण करके लक्ष्मीके सदुपयोगका उत्तम मार्ग समझ कर श्री सिद्धगिरि और रैवताचलका संघ निकाला. श्री संघ जगती तिलक श्रीशत्रुजय तीर्थकी "यह आहडा ग्राम-उदयपुरसें १ मील पूर्वकी ओर रेल्वेस्टेशनके पास है. आजकल राणा वंशका दग्ध स्थान यही है । यह गाम तीर्थभी माना जाता है। २-राव खंगार वि.सं. ९१६ में गादीपर बैठा था. इसके बापका नाम नवपन था। .... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnanay.Soratagyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] यात्रा करके जब गिरिनार पहुंचा तव वहां के राजा रावखेंगारने उन्हे ऊपर जाने से रोका और कहा " यह तीर्थ बुद्ध धर्मका स्थान है, इसपर तुमारा किसी किसमका दखल नहीं, अगर तुम इस तीर्थकी यात्रा करना चाहते हो तो तुमको पहले बौद्ध धर्मको मानना जरूरी है, सिवाय इस शरतके तुम इस तीर्थ पर किसी तरहभी पूजा सेवाका लाभ नही ले सकते ! ! उसवक्त वहां औरभी ८३ गाम नगरों के संघ आये हुएथे. उन सर्व संघपतिओंने खंगारको अनेक रीतिस समझाया प्रलोभन तक भी दिया परंतु वह अपने हठसे न फिरा । संघवियोंने अपने सहचारियोंको पूछा कि अब क्या करना चाहिये ? संघके साथ जो वृद्ध विश्वसनीय मनुष्य थे, उन्होंने • कहा इसवक्त किसी प्रभावक पुरुषकी आवश्यकता है। इतने में "अंबिका" माताने किसी मनुष्य के • शरीरमें प्रवेश करके कहा, किती दुष्ट व्यन्तरने बौद्ध धर्मपर अपनापना होनेसे इस तीर्थको बौद्ध तीर्थ ठहराया है, और राजा उस धर्मको मान देता है । जाओ फलानी पर्वत गुफामेंसें बलभद्र मुनिको ला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Soratagyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १८ ] ओ वह हरतरहसे समर्थ है । संघवियोंके बुलानेपर मुनिने वहां आकर राजाको समझाया. परंतु जब देखाकि यह सामसाध्यतो नहीं तब अपनी मंत्रशक्तिसे उसे वशवर्ती करके श्रीतीर्थाधिराज गिरिनारको जैन संप्रदायके हस्तगत किया (विशेष के लिये देखो ऐतिहासिक राससंग्रह भाग दूसरा और उपदेश रत्नाकर संस्कृत, पत्र ९३ । ९४ । - Cसज्जनकी विचार पटुता-और सिद्ध . __ राजाका-औदार्यअसर करके इतिहास ग्रंथोंमें प्रसिद्ध है कि " वनराज चावडे " ने विक्रम संवत् ८०२ में राज्य सिंहासनपर बैठकर जांबको अपना प्रधान मंत्री बनाया था. जांब जैन का पक्का उपासक था । वनराज के पाट पर हुए २ योगरान ? क्षेमराज २ भूवड ३ वैरिसिंह ४ रत्नादित्य ५ सामंतसिंह ६।। यह सात राजा ( चावडा वंशीय )-और वृद्ध मूलराज १ चामुंडराज २ वल्लभराज ३ दुर्लभराज ४ भीमराज ५ कर्णराज ६ जयसिंहदेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Sorratagyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १९ ] ७ कुमारपाल ८ अजयपाल ९ लघु मूलरान १० लघुभीमराज ११ राजा ( चौलुक्य वंशीय)-और वीरधवल १ वीसल देव र अर्जुन देव ३ सारंग देव ४ घेला कर्ण देव ५ ( वाघेला वंशोय ) ___ इन गुर्जर राजाओंकी राज्य सत्तामें मंत्री, महामंत्री-दंडनायक-सेनापति-वगैरहजो जो होते रहे हैं वह सभी के सभी प्रायः जैनधर्मानुयायो ही होते रहे हैं । और अपनी अपनी शक्ति के अनुसार 'शत्रुजय गिरिनार आदि तीर्थोका उद्धार करते ही रहे हैं । महाराजा सिद्धराज के समय सज्जन नामक दंडपति जो कि काठियावाडका अधिकारो था. उसने सोरठ देश को तीन वर्षको आमदनी खर्च करके श्री गिरिनार तीर्थ की मुरम्मत कराई । जब वह पाटण आया तब राजाने उससे रुपया मांगा। उसने थोडे दिनोंके लिये फिर सौराष्ट्र में जाकर जैन शाहुकारोंसे रुपया मांगकर पाटग आकर रा. जाके सामने रख दिया और नम्रभाव से आने को, कि ३ वर्षका वसुल किया हुआ राजद्रव्य मैंने तीर्थोद्धारमें लगा दिया है और यह द्रम शाहुकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmeway.Somatagyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] लोगोंसे मांगकर लाया हूं। आपकी मरजी हो तो आप रुपया लेलेवें और आपकी इच्छा हो तो आप तीर्थोद्धार के पुण्यकी अनुमोदनाका फल प्राप्त करें। ___ राजाने दंडनायककी तारीफ करते हुए कहा "तुमने इस युक्तिसेभी हमको पुण्यके भागी बनाए । इस लिये हम तुमारी सज्जनताकी पुनः पुनः श्लाघा करते हुए उस पुण्यकी श्लाघासे पूर्ण तृप्त हैं । द्रव्य जहां जहांसे लाये हो उनको वापिस लौटा दो धन विनश्वर है और धर्म अविनाशी है ।। धन यहांका यहां रहने वाला है और धर्म भवान्तरमेंभी साथ आकर मनुष्यको हर एक समय सहा. यक होनेवाला है। इस वास्ते हमको पुण्यका स्वीकार सर्वथा इष्ट है और हम इस बिना पूछे किये कामके लिये भी तुमपर पूर्ण खुश हैं." धन्य है ऐसे राजभक्त कर्मचारियोंकों ! और साधुवाद है ऐसे नरेशांकों !! एक समय राजा सिद्धराज खुद गिरनार तीर्थकी यात्रा करने गये । तीर्याधिराजकी पवित्रताममतासे अति प्रसन्न हो कर उन्होंने कुछ गाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Undanay. Suratagyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] भेट किये और आशातना के परिहारके लिये कुछ फरमान जारी कर दिये । जैसे कि इस तीर्थ पर फलाना फलाना काम किसीने नही करना ( इस वर्णन के लिये मेरा लिखा कुमारपाल चरित्र हिन्दी पुस्तक देखो ) दिगंतकीर्त्तिक - महाराज - सिद्धराजका जैन धर्मसे इतना घनिष्ट संबंध था कि - अन्य केई एक इतिहासकारांने तो उन्हें जैनहीके नामसे लिखडाला है । " कर्नल जेम्स टॉड साहेबने अपने बनाये टॉड राजस्थान नामक पुस्तककी फुटनोट में लिखा है कि " सिद्धराज जयसिंहने संवत् १९५० से १२०१ तक राज्य किया, प्रसिद्ध निडवियन भूगोलवेत्ता [एलएड्री] इसकी राजसभा में गयाथा । एल, एडीसीभी कहता है कि - जयसिंह सिद्धराज बौद्ध धर्मावलंबी था । टॉड राजस्थान अध्याय ६ | फिर देखना चाहिये कि - इतिहास लेखक - राजा शिवप्रसाद - सितारे हिन्द क्या ब्यान करते हैं " इदरीस जो ग्यारहवी सदी के आखीर में पैदा हुआ था. लिखता है कि - अणहिलवाड ( अर्थात् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somratagyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२] सिद्धपुर पाटण) का राजा बौद्ध है. सोनेका किरीट सिरपर पहनता है. घोडेपर बहुत सवार होता है, हिन्दुस्तानके आदमी बडे इमानदार है। अगर कोइ किसी अपने कर्जदार के गिर्देहल्का खिंच देता है जब तक वह कर्जदार कर्ज अदा या इजाजत हांसिल नही करता हल्के से बाहिर नहीं निकल सकत । गोशतके लिये कोइ जानवर नहीं मारा जाता गाय बैलांको बुढापेमेंभी खानेको मिलता है। ( बौद्धसे वाचक महाशय जैनही समझें क्यों किग्रंथकर्त्ताने स्वयंही ग्रंथ के ९ वें पृष्टमें लिखा है कि )-"हमने जो जैन न लिख कर गौतमके मतवालोंको बौद्ध लिखा उसका प्रयोजन केवल इतना ही है कि-उनको दूसरे देशवालेांने बौद्धके नामसे ही लिखा है, जो हम जैनके नामसे लिखें तो बडा भ्रम पड जायगा ( इतिहास तिमिरनाशक खंडतीसरा । पृष्ट ५४) * गौतम-श्री महावीरस्वामीके सबसे बड़े शिष्यका नाम था जिसको जैन जाति "गौतम स्वामी" इस नामसे पहचानती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३] -तीर्थनक्ति-और-सुगममार्ग आबुरोड ( खराडी ) से देढ दो माईल पूर्वकी तर्फ कुछ खंडहर पडे हुए दिखाई देते हैं, यहां पहले जमानेमें "चंद्रावतो" नगरी आबादथी । राजा भीमके सेनापति बिमलशाह मंत्री राजा से नाराज होकर यहां आकर द्वादश छत्रपति राजा हुएथे। और-आबुके जैनमंदिर उन्होंने यहां रहकर ही ब. नवाये थे. चौलुक्यकुलतिलक कुमारपाल जब रणथंभोरपर चढाई लेकर गये तब यहां के राजा • सामन्तसिंहने अन्तर्दिष्ट-और मुखेमिष्टवाली कपट जाल फैलाकर सोलंकी राजाका नाश करना चाहा था-परंतु-कुमारपाल अपनी दीर्घदार्शितासे उसके उस प्रपंचको जान गयाथा । आते हुए उसने सामंतसिंहको पुण्यका चमत्कार बतला कर सत्य रूपसे समझा दिया था कि-" यस्य पुण्यं बलं तस्य" । ___इस चंद्रावतीका रहोस उदयन नामक शाहुकार जो घीका व्यापारी धा. फिरता फिरता खंभात चला गया. वहां उसको अछे शकुन हुए । थोडे अरसेमें सिद्धराजकी तर्फसें वह सरकारी नौकर बनाया गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmeway.Somatagyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २४ ] क्रमशः एक समय ऐसा भी आगया कि गुर्जर पति सिद्धराज के वो पूर्ण विश्वासपात्र मंत्री बन गये । सिद्धराजकी मृत्युके पीछे वह, कुमारपालके भी वैसे ही मानीते मंत्री बने रहे । कुमारपालका इनपर | वडा भरुसा था । बल्कि सिद्धराज जयसिंहकी तीव्र इच्छा इनके लडके चाहडको राज्य देनेकी होनेपर भी यह नर रत्न कुमारपालको राज्य दिलाने में और संकट ग्रस्त कुमारपालकी जान बचानेमें पूरे पूरे मददगार थे । सोरठ देशके समर राजासे लडने वास्ते फौज दे कर कुमारपालने इन्हे सौराष्ट्र भेजा था । उसे कथाशेष कर - और उसके लडकेको - उसकी गादीपर बैठाकर उदयन मंत्री पीछे लौट रहे थे कि - रास्ते मे उनकी तबीयत बहुत बिगड गई । अनेक उपाय करनेपर भी उन्हें कुछ आरामन हुआ । उन्होंने जब जाना कि मेरा यह अवसान समय है तब अश्रुपात कर रो पडे! पास के लोगोंने उनको अनेक तरह से आश्वासन दिया । तब वह बोले मैं मरनेके भय से नहीं रोता, मेरे निर्धारित चार काम शेष रह जाते हैं और मेरी जीवनदोरी समाप्त होती है !! परंतु इसमें किसीका भी उपाय नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ ] पासके लोगोंने पूछा आप कृपाकर उन कामोंका नाम बताओ हम राजा से और भट्ट आपके पुत्रोंसे पूर्ण करायेंगे | मंत्रीने कहा- मैं चाहता था कि - आम्रमट्ट ( अंबड ) को दंडनायक की पद्वी दिलाउं । १ । दूसरी मेरी इच्छा थी कि - श्री शत्रुञ्जयतीर्थका उद्धार कराउं ॥ २ ॥ तीसरा मेरा मनोरथ थाकि गिरिनार तीर्थकी पौडियां बनवा || ३ चौथी मेरी उत्कट कल्पना यह थी कि जब कभी मेरा मृत्यु हो उस वक्त मैं अपने अंत्यसमयकी आराधना मुनि महाराजके सामने करूं और उन महात्माओंके सन्मुख आलोचना करके अपने इस भारी आत्माको हलका करूँ || ४ || इन चार कार्यों में से एक कीभी सिद्धि न होने से मैं अपने हताश आत्माको धिक्कार कर रो रहा हूं ! पास बैठे हुए मंत्री लोग बोले आप निश्चिंत रहें पहले ३ कार्य तो आपका सुपुत्र बाहड करेगा । और आलोचना के लिये हम साधु महाराजकी तलाश करते हैं। देखने से ( मालूम हुआ कि इस जंगलमें मुनि राजकी योगवाइ तो मिल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somratagyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६१ नही शकती। उस वक्त उन्होंने साधु धर्म के जानकार और धर्म के रहस्य के भी ज्ञाता किसी नौकरको थोडे अरसे के लिये साधुका वेष पहना कर मंत्री राजके सामने बुलाया, साधुको देख उसे गौ. तमावतार मान कर अशक्तिकी हालतमें भी मंत्रीको इतना हर्ष हुआ कि-वह उठ कर उस कल्पित मुनि के पाओंमें जा गिरा । और सारे जन्मके किये पा. पांकी निन्दा आलोचना कर सद्गतिको प्राप्त हुआ। उस कल्पित साधुने जब देखाकि राज मान्य मंत्री । मेरे पाओंमें पड़ा है तो उसे उस मुनि वेषपर बडा सद्भाव आया । उसने उस वेशका न छोड गिरिनार पर्वतपर जाकर साठ उपवासेका अनशन कर अपना कार्य साध लिया. मंत्रीके अंत्य कार्यको करके पाटन आये हुए उन लोगोंसे पिताकी मृत्यु सुन कर लडकांने अ. सीम दुख मनाया और निज पिताको ऋण मुक्त करने के लिये-वाहडने शत्रुनय उद्धार कराया और अंबडने गिरिनारकी पौडियें बंधाई (देखो मेरा लिखा कु. पा. च. हिन्दी । बाहडने-शत्रुजय और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Burratagyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७ ] समली विहारका उद्धार कराया - इसका वि. व. भी कु. पा. च. सें ज्ञात हो सकता है. ) सुना जाता है कि - कुमारपाल गिरिनार तीर्थ पर गये - परंतु रास्ता विषम होने से वह यात्रा न कर सके । राज सभामें उन्होंने एक समय यह प्रश्न किया कि गिरिनार तीर्थपर पौडियें बनानेका हमारा मनोरथ कौन पूरा कर सकता है ? इस पर किसी कविने आम्रमकी बडी योग्यता-धर्म निष्टाक्रियाकुशलता - संसारविरक्तता - शासनप्रियता आदि गुणों का परिचय कराकर कहा “ धीमानाम्रः स पद्यां रचयतुमचिरादुज्जयंते नदीनः " ( देखो द्रौपदी स्वयंवर नाटक ) उवदेश तरंगिणीमें बाहड मंत्री - जोकि अंबडका भाइ था उसके द्वारा इस कार्यका होना लिखा है... यतः " त्रिपष्टिलक्षद्रम्माणां, गिरिनारगिरौ व्ययात् । भव्या वाहड देवेन. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Somatagyanbhandar.com 66 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] पद्या हर्षेण कारिता ॥१॥ सुना जाता है कि, एक दिन भट्टारक श्री होर विज यसूरिजीको गुरु महाराजकी तर्फसे एक पत्रमिलाउसमें लिखा हुआ था कि इस पत्रको पढकर तुरत विहार करना । उस दिन श्री विजय हीरमूरिजीके बेलेकी तपस्या थी तोभी गुरु महाराजकी आज्ञाको मान देकर फौरन विहार किया और-पारणाभी गामसे बाहिर जाकर किया !! संघने यह भक्ति राग-और गुर्वाज्ञाका सन्मान देखकर एक आवा. जसे श्री जिनशासनकी और शासनाधार मूरिजीकी प्रशंसा की। ___उसी विनयका यह फल था कि वह मुस्ल. मान बादशाह अकबरको अपना परमभक्त बनाकर उससे अहिंसा धर्मकी प्रवृत्ति करा सकेथे । और अपने लगाये दया धर्मके अंकुरोंको महान् सफलताओंके रूपतक पहुंचाने वाले-अर्थात्-अकबर बादशाहके निखिल राज्यमें वर्षभरमें ६ महीने तक जीवदया पलानेवाले विजयसेनसूरि शान्ति चंद्रऔर भानुचंद्र जैसे भक्त और समर्थ शिष्योंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९] तयार कर अपने सर्वांश परमभक्त परिवारकी शोभाको बढा सकेथे । और वादशाहकी तर्फ से आग्रह पूर्वक दिये हुए “जगद् गुरु" विरुदको पाकर जिनशासन मुरतरुकी शीतल छाया नीचे सहस्त्रों नही बल्कि लाखों मनुष्योंको शान्तिपूर्वक बैठा सकेथे । आप अढाई हजार साधु साध्वियोंके मालिक थे। पितातुल्य पुत्र प्रायः संसारके भाग्यवानों के कुटुम्बोंमें देखे जाते हैं। ' आचार्य श्रीविजयसेनमूरिभी बड़े प्रभावक आर समर्थ थे । योगशास्त्रके आध श्लोकके सातसौ 'अर्थ करनेकी प्रतिभा इनकी हीथी । जैसी जगद्गुरु महाराजकी अपने गुरु विजयदानमूरिजीके प्रति भक्ति थी वैसीही विजयसेनसूरिजीकी अपने गुरु श्री विजय हीरमूरिजीके प्रतिथी । पंजाब देश के पाटनगर " लाहोर" में आपके दो चौमासे हुए । दूसरे चउमासेमे आपको समाचार मिलाकि-आपके गुरु महाराज सखत बीमार हैं ! तब आपका मन घबरा उठा । अपने गुरु महाराजके अंतिम दर्शनों के लिये आपने वहांसे विहार किया। बडे शीघ्र प्रयाणसे आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Suratagyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] अमदावाद तक पहुंचे थे कि-जगद्गुरु महारानका ऊनामें स्वर्गवास हो गया । आप ऐसे तो आस्तिक थे कि-दशवैकालिक सूत्रका स्वाध्याय किये विना अन्नपानी नही लेते थे । जाप करनेमें आपका वडा लक्ष्य था । सिर्फ नवकार महामंत्रका ही आपने साढे तीन क्रोड जाप किया था। दो हजार साधु साध्वी आपके आज्ञा वतिथे । त्याग वृत्ति तो आपकी इतनी उत्कृष्ट थी किजैन धर्ममें प्रसिद्ध छ विगइयोंमेंसे दूसरो विगइ आप एक दिनमें कभी नहीं लेतेथे । अर्थात्-प्रतिदिन पांच विगइयांका त्याग कर फक्त एकही विगइसें शरीरयात्रा चलाते थे !!! ___इस आपके विशुद्ध उच्च जीवनका जैन जाति पर तो पडे उसमें आश्चर्य नहों वाले जहांगोर बा. दशाह पर बड़ा प्रभाव पडा या श्री शत्रु ना और गिरनार पर आपको उत्कट भक्ति राग था। वि. वर्गन केलिये देखो ऐतिहासिक ( समायमाला भाग १ ला।) जहां अनेक जिनमंदिर पासपासमे हों उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३१] स्थान (पायःशिखर) को ढूंक शब्दसें बुलाया जाता है। ऐसी टुंके श्री सिद्धाचलजीपर नव प्रसिद्ध हैं। गिरनारजीपर कितनी ढूंके हैं ? किस किस ढूंकपर जिनमंदिर जिनप्रतिमानी है ? इस विषयका पुष्टप्रसिद्ध प्रमाण इसवक्त हमारे पास मौजूद नहो । तथापि-गिरिनार महात्म्यके लेखक ने जिन जिन ढूंकांके नाम लिखें है-उन महान् शासन प्रभावक, और शासनप्रेमियों के नाम हमभी दिङ्मात्र लिख देते हैं । वाचकांकों जहां कहीं गलती मालूम दे स्वयं सुधारकर वांचे, और हमे सुधारनेकी सूचना दें, ताकि किसी अन्य लेखमें उस सूचनाका सुधारा किया जाय। --**ढूंक-वस्तुपाल-तेजपाल मंत्री. गुजरात देशों-वल्लभोपुर-पंचासर-पाटणऔर धौलकामें-वावडा-चौलुक्य (सोलंकी ) और वाघेलावंशीय राजाओंका राज्य करना प्रसिद्ध है। वाघेलावंशके राजा वीरधवलके अमात्य वस्तुपाल-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३३] और उसका छोटा भाई तेजपाल दृढ जैनधर्मी थे। इन्होने १२ दफा बडे समारोह के साथ श्रीशत्रुञ्जय तीर्थकी यात्रा कीथी । तेरवींवार श्री शत्रुञ्जयतीर्थकी यात्रा करनेको जा रहेथे कि-रास्ते काठियावाढ प्रान्तमें लींबडीके पास "अंकेवाली" गाममें वस्तुपाल देवगत होगए । बस्तुपालके बनवाये आबुके जन मंदिरोंको देखनेके लिये सहस्रों कोसांसे लोग आते हैं। अंग्रेज लोग फोटो उतार २ ले जाते हैं । गुजरातके प्रभावशाली राजा भीमके प्रधान मंत्री विमलशाहने अगणित द्रव्य खर्चकर यहां जैन मंदिर बनवायाथा और उस मंदिरमें महाराजा संप्रतिके समयकी मूर्ति पधराकर विक्रम संवत् १०८८ मे प्रतिष्ठा करवाईथी। ___उस मंदिरको देखकर महामंत्री वस्तुपालने शोभन नामक कारीगर (जो कि-उसवक्त सूत्रधा. गेमे आला दरजेका हुश्यार समझा जाताथा ) उसको बैसाही मंदिर बना देनेका फरमान किया शोभनने अपनी मातहदके २००० कारीगरोंकों लगाकर अपनी निगाहवानी रखकर मिलताह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६] शेठके बनवाये मंदिरके ठीक मुकाबलेका मंदिर तामीर कर दिया । मंदिर क्या बनाया ? मानोस्वर्गका विमान नीचे उतारकर रख दिया है। आज भी देखकर दिल खुश खुश हो जाता है। जैसा विमलशाह शेठका बनवाया मंदिर अवर्णनीय शोभाशाली है वैसाही बस्नुपाल तेजपालका मंदिरभी निहायत लायक तारीफ-और-अकलीम है। छत्तोमे-रंगडपमें और-मेहराबोंने ऐसी ऐसी कारीगिरी की है .कि-जिसका बयान जुबानसें नहीं किया जा सकता! जोग वेलबूटे-कमलफूल-पुतलियां-गुलदस्ते •बनाये हैं च्छ अच्छे दीमागवाले कारीगर देख देखकर ताज्जुक होते हैं । वस्तुपालके बनवाये मंदिरकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १२८९ फार न सुदि ८ को हुईथी । यहां असा शाह शेठका बनकाया मंदिर भी संसार भरमें दृष्टान्त भूत है परंतु हमारा मतलब वस्तुपाल के बनवाये मंदिरसे ही है, क्योंकि हम वस्तुपाल के सत्कार्योका वर्णन कर रहे है. ___वस्तपाल तेजपाल चरित्र । कीर्तिकौमुदी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . " मुकृतसंकीर्तनकाव्य । इन ग्रंथामें महामात्यके किये धार्मिक-नैतिक-स्वकल्याण-परकल्याण के कार्योंका सविस्तर वर्णन है. --*-- महाअमात्य-वस्तुपाल तेजपाल के किये शुभ कार्योंका संक्षिप्त वर्णन. (१३१३) नवीन जिन मंदिर कराये। (३३००) जिन चैत्योंका जीर्णोद्धार कराया। (३२००) जैनेतर मंदिर बनवाये । (५५०) ब्रह्मशाला। (५०१) तपस्वि लोगोकी जगह तयार कराई। (५००) दान शालायें कराई। (९८४) धर्मशाला ( उपाश्रय ) बनवाये । (३०) कोट तयार कराये। (८४) सरोवर खोदाये। (४६४) वापी-बौली। (१००) जैन सिद्धान्तोके भंडार किये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३५] देश और धर्मकी रक्षा के लिये ६३ संग्राम किये। (१३) तीर्थ यात्राएँ की। (४०० ) पानी पीने के स्थान बनवाये । __जहां छाण कर पानी पिलाया जाता था स्थंभनपुरमें विचित्र युक्तियुक्त विविध रचना विशिष्ट (९) तोरण करवा ये जिन का निर्माम पाषाणसे हुआ हुआ था। (१०००) तपस्त्रियोंको उनको योग्यताके अनुसार वर्षासन कायम कर दिये । ___ वास्तु कुंभ वगैरह क्रिया के करने वालोंक भी (४०२४) वर्षासन बंधा दिये कि जिससे आनं. दपूर्वक उनका निर्वाह होवे । ____ अन्यान्य ग्रंथों में इनके सत्कार्यों को और तरहसे भी वर्णित किया है अर्थात् किसी किसी वस्तु. का प्रमाण ज्यादा कमती भी लिखा है । [ देखो वस्तुपाल चरित्र श्री जैन प्रसारक सभा द्वारा मुद्रित ] - * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३६] [ विशेष परिचय-वस्तुपाल तेज:पाल ] शहर पाटणमे पोरवाड जातीमें अनेक जगत् मसि. द्ध-उदार-गंभीर परोपकार परायण-नरपुंगव होचुके हैं। इस जातिमें आसराज नामके एक प्रसिद्ध मंत्री थे उनका आबु मंत्रीकी कुमारदेवो नाम कन्यासे व्याह हुआ था. चौलुक्य राजाओंकी ओरसे उन्हे गुर्जरदेशान्तर्गत " मुंहाला" गाम बक्षीस था. आसराज कुछ अरसा पाटणमें रहकर पीछे सुहाले रहने लगे, वहां उनको कितनीक संततिका लाभ हुआ. उन सब संतानोमें वस्तुपाल तेजपाल उनके प्रधान और अति प्रिय लडके थे । मुंहाला गाममें आसराजका स्वर्गारोहन हो गया तब वस्तुपालतेजपाल अपनी पूज्य माताको साथ ले कर वढियार देशकी सीमाके गाम-मांडलमें चले गये । वहां कुछ अरसे तक रहनेसें प्रजाका उनपर बडा प्रेम बढा । परंतु “ अनित्यानि शरीराणि " यह सिद्धान्त तो त्रिलोकी भरमें व्याप्त है । कुछ अरसे के बाद अनेकानेक धर्म क्रियाओं द्वारा अपने मानव जीवनको सफल और समाप्त कर मांडलमें ही कु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Surratagyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७] मार-देवीभी देव गत हो गई । मातापिताके अति असह्य वियोगसे विधुरित मंत्रीरान अल्प नीरस्थ मी. नकी तरह-आकुलव्याकुल हुए हुए दिन गुजार रहे थे कि श्रावण के मेघकी तरह धर्म नीर के वरसानेवाले श्री नयचंद्र मूरिजी ग्रामानुग्राम विचरते हुए मांडल पधारे मंत्री प्रभृति श्रद्धालु लोगोंको मूरि राजका पधारना बड़ा लाभकारी हुआ कुछ दिनो तकके गुरु महाराज के संयोगसें दोनो भाइये का मन स्थिर हो गया । और प्रथम की तरह वोह धर्म क्रिया प्र. वृत्ति करने लगे। • वस्तुपालकी ललिता देवी और तेजःपाल की अनुपमादेवी स्त्री थी जोकि-निहायत सुरूपा एवं सु. शीलाथी. उन दोनोमें-दान देना-देवगुरुकी भक्ति करनी-धर्माराधन करना और त्रिविधयोगसें अपने अपने प्राणनाथ पतिकी भक्तिका करना -यह अनन्य साधारण और लोकप्रिय गुण थे। ___नयचंद्रमूरिजी निमित्तशास्त्रमे बडे ही प्रवीण थे । उन्होने उन भाग्यवानोंका भावि महोदय देखकर श्री सिद्धाचलनीकी यात्रा करनेका-अर्थात् श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Urmeway.Somentagyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३८] शत्रुजय महातीर्थ के संघ काहनेका उपदेश दिया. अमात्य संघ लेकर पालीताणे गये आचार्य महाराजके सतत परिचयसें उनकी धर्म भावना और भी परिपुष्ट हो गई। ___ जब वह लौट कर पीछे आये तब गुर्जर पति वीरधवलने उन्हे अपने मंत्री पदपर प्रतिष्ठित कर लिया। अनेक इतिहासकार लिखते हैं-कि-वनराजके , पिता जयशिखरी के मारनेवाले कनोजके रानाभूवडने गुजरातकी राजधानी-जयशिखरो के मरनेके बाद अपनी लडकी मिल्लण देवीकी शादी के वक्त उसे उसके दायजेमें दे दोथी. मिल्लग देवी या. वज्जीव तक गुजरातकी आमदनी ग्वाती रहो अंत्यमें मर कर उसी अपनी पूर्वभव ..ो इष्ट राजधानोकी अधिष्टायक देवी हुई। उसने भाविकालमें म्लेच्छोंके आक्रमणसें गौर्जर प्रजाको बचाने के लिये वीर धवलको स्वप्नमें आकर-वस्तुपाल तेजपालको अपने अमात्य बनानेका उपदेश किया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvanay. Suratagyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३९ 1 " सुकृतसंकीर्तन" काव्यमें लिखा है किकुमारपाल राजाने अपने राज्य-वंशधरोंकी और पूर्वकालमें पुत्रसम पालनको हुई गुर्जर भूमोकी म्लेच्छोसें स्क्षा कराने के लिये-देव भूमिसें आकर वीरधवलको उपदेश किया कि-राजधानी की रक्षाके लिये इन भाग्यवानों को अपने मंत्री बनायो । मतलब इतना तो उभयतः सिद्ध है कि देवकी सहायतासे वस्तुपाल बंधु सहित मंत्री पदपर प्रतिष्ठित हुए। मंत्रियुग्मने-दानशाला-धर्मशाला पौषत्र शाला-पाठशाला-चांचनशाला गौशाला-स्त्रीपुरुषांकी शिक्षणशाला वगैरह हजारों लाखो धर्मकार्य कर कराकर इस मानव जीवनको सफल किया । मेरे पास " गिरिनार तीर्थीद्धार प्रबंध " नामका एक प्राचीन पुस्तक है, उसमें · रत्न' श्रावक के किये श्री गिरिनारतीर्थ के उद्धारका वर्णन है और प्रसंगसे वस्तुपाल तेजपालके किये सत्कार्योकी नामावली है उसमें और कीर्तिको मुदिसें एवं " फास साहिब" की बनाई रासमालासें वस्तुपालकी बहुत अपूर्व चर्याका अवबोध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] होता है। वस्तुपालने जैसे आबु तीर्थपर मंदिर बनवाये थे ऐसे गिरिनारपर जो जिन मंदिर बनवाये हैं उनको " वस्तुपाल तेजपाल की ढूंक" कहते हैं इस टूकभे मूलनायक श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी प्र. तिमा है और उस प्रतिमाजीकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत्१३०६ में आचार्य श्री प्रद्युम्न सूरिजी के हाथसें हुइ है । वस्तुपाल चरित्रके छठे प्रस्तावमें कितनेक धर्म स्थानोके नाम भी दिये हैं जोकि इन दोनो मंत्रियोंने गिरिनारपर तयार कराये थे-इन भाग्य. . वानोंका यह सिद्धान्त थाकि-" सति विभवे संच. यो न कर्त्तव्यः" किसी फारसी शायरने लिखा है" बराय निहादन च संगोचजर" ] जो दौलत एकठी करके जमीनमें डाली जाती है उसकी अपेक्षा पत्थर अच्छे, क्योंकि-जब जरूरत पडेगी पत्थर तो किसी काम आ जायेंगे, मगर यह दौलत जो जमीनमें गाडरखी है किसी दरकार न आयगी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay.Borratagyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४१ ] वस्तुपाल तेजपालके गिरिनारपर बनवाये धार्मिक स्थानोंको नामावली " वस्तुगल विहार" नामका श्री आदीश्वर भगवानका विशालमंदिर । आदोश्वर प्रभुको प्रति. मा । श्री अजितनाथ श्री वाप्नुपूज्य-स्खामोको पतिमायें । अंबिका माताकी मूर्ति । चंडप नामक अपने प्रपितामह -परदादाकी मूर्ति । श्री वीर परमात्माकी प्रतिमा । वस्तुपाल और तेजपालको दो मूर्तियें । अ. पने पूर्वजोंकी मूर्तियों के साथ श्री सम्मेतशिखरकी रचना । अपनी माता-कुमारदेवी. और अपनी ब. हिनकी मूर्तियों सहित श्री अष्टापदजीकी रचना कराई । तीनही मुख्य मंदिरोंपर तीन कीमती तोरण बंधाये । श्री शजय तीर्थ के रक्षक गोमुख यक्षका मंदिर बनवाया । हाथीकी सवारी सहित माताको मूर्ति । श्री नेमिनाथ स्वामी के चैत्यके तीनही दाजेपर बहुमूल्य तोरण-बंधाये । उसमंदिरकेदक्षिण उत्तर विभागोंमें पिताकी और दादाको मू. र्तियें बैठाई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Sorratagyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने पूज्य माता-पिताके कल्याण के लिये श्रीशा. न्तिनाथ स्वामी-श्री अजितनाथ स्वामीकी कायो. त्सर्गस्थ दो मूत्तिये स्थापन कराई । मंदिरके मंडपमें -भव्य-मनोहर इन्द्र मंडप बनवाया-श्री नेमिनाथ स्वामीकी मुख्य प्रतिमा सहित-अपने पूर्वजांकी मूर्तियांवाला दर्शनीय मुखोद्घाटनक स्थंभ करा. या । अपने पिता आसराज की और दादा सोमराजकी घोडेसबार मूत्तियें करवाई । अपने पूर्वजोंकी प्रतिकृतियोंके स.थ सरस्वती माताकी त्ति . आर देव कुलिकाएँ तयार कराई ।अंबिका माता के मंदिर के आगे विशाल मंडप बनाया। अंबिका माताकी मूर्तिका परिकर तयार कराया। परम तेजस्वी तेजपाल ने अपने कल्याण वास्ते कल्यागत्रितय नामका श्री नेमिनाय प्रभुका चैत्य-संगमरमर को सुफैद फटिक जैसी शिला. ओंसें बंधाया, और उस मंदिर के शिखरपर-सातसा चौसठ गयाणे सुवर्णका कलश चहाया । और भी अनेक मूर्तियें भराई । प्रपाएँ लगवाई । भ. गवत् प्रतिमाओं की पूजा के लिये पुष्प वाटिकाएँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४३] लगवाई इत्यादि सत्कार्य कि जिनका विस्तार करनेमें एक बडा ग्रंथ तयार हो सक्ता है. - - ढूंक-संग्राम सोनीआचार्य बुद्धि सागरजीने " जैनोकी प्राचीनअर्वाचीन स्थिति " नामक पुस्तकमें बनियोंके ८४ गोत्र लिखे हैं. उसमें सोनी गोत्रका भी उल्लेख है. आज भी इस गोत्र के लोग मंदसोर मालवामें गुज रात के कितनेक शहरों में, काठियावाड के जेतल. सर आदि गामोंमें विद्यमान हैं। मुनि विद्याविजयजी संशोधित-ऐतिहासिकसझायमाला नाम ग्रंथमें लिखा है कि-सोम सुंदर मूरि के उपदेशसें मांडवगढ के रहीस संग्राम सोनीने अनेक धर्मकार्य किये थे. आचार्य महाराजको मांडवगढमें चौमासा कराकर उनसे पंचमांग श्री भ. गवती मूत्र सुनना शुरु किया था-जहां जहां गो यमा ! यह पद आता था संग्राम सोनी एक सुवर्ण मुद्रा ( सोनामोहर) भेट किया करता था. छत्रीस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ४४ ] हजार जगह उसने उतनी ही अशरफियें भेट रखार संपूर्ण भगवती सूत्र सुना । अठारां हजार उसकी माताने । नौहजार उसकी स्त्रीने इस प्रकार एक कुटुंबके ३ श्रद्धालुओंने ६३००० मोहरें चढाई थी। उस ज्ञान द्रव्यमें १ लाख ४५००० सोने मोहरे और भी मिला कर वह सब रकम उन्होने सोनहरी अक्षरोंसे कल्यमूत्र-और कालिकाचार्य कथा की प्रतियोंके लिखानेमें लगाई थी। यह महान्-प्रशस्य कार्य उन्होने विक्रम संवत् १४७१ में किया था। और प्रतियों वांचने पढने योग्य बडे बडे ज्ञान भंडारोमे रख दीयो । तपगतछाचार्य श्री सोम सुंदर मूरिजोका जन्म-वि. सं. १४३० माघ वदि १४ के दिन पालगपुर (गु. जरात ) में सज्जन शेठकी माल्हण दे नामक स्त्रीहुआ था. मूरिजीने सिर्फ ७ ही वर्ष की उमरमें श्री 'जयानंदसरिजी के पास दीक्षालो थी । १४५० में वाचक पद-और १४५७ में इनके आचार्य दमिला था। - [इस आचार्य भगवान् के परिवार के परि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४५] चय के लिये मेरे लिखे “दान कल्प द्रुम" के संस्कृत उपोद्घातको देखनेकी जरुरत है) गिरिनार माहात्म्यके लेखक मि. दौलतचंद बी. ए. ने जेम्स बर्जसका प्रमाण लिखकर संग्राम सोनीकों दिल्लीपति बादशाह अकबरका समान कालीन बताने की कोशिश की है और लिखा है कि संग्राम सोनी शहर पाटणका रहनेवाला था बादशाह अक बरका बडा सन्मान पात्र था, इतनाही नही बल्कि • शहनशाह अकबर संग्राम को “चचा" कहकर बुला या करता था। इसमे सत्य गवेषणाके लिये उनके • लिखाये ग्रंथ-और उनकी भराई जिन प्रतिमाओंके लेख ही बस है. देखिये संग्राम सोनीके विषयों पूर्वाचार्य क्या लिखते हैं। श्री उदयवल्लभसूरीश्वरपट्टे श्री ज्ञानसागरमूरिगुरवः कथं भूताः ? सत्यार्थाः, श्री विमलनाथचरित्र प्रमुखानेकनव्यग्रन्थलहरीप्रकटनात् सार्थकाहा येषां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Undanay. Suratagyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ ] श्री ज्ञानसागरसूरीणां मुखात् मंडपदुर्गनिवासो व्य चहाविर्यः पातशाहि श्री खलवी महिम्मद ग्यास दीन सुरत्राण प्रदत्त नगदलमलिक विरुवरः साधु श्री संग्राम सौवर्णिक नामा सवृत्तिकं श्री पंचमांगं श्रुत्वा गोयमेति प्रति परं सौवर्णटंककममुचत् षट्त्रिंशत्सहस्र प्रमाणाः सुवर्णककाः संजाताः । यदुपदेशात्तद् द्रविणव्ययेन मालव के मंडपदुर्गभृति प्रतिनगरं गुर्जरधरायामण हिलपुर पत्तन- राजनगरस्तंभतीर्थ-भृगुकच्छप्रमुखं प्रतिपुरं चित्कोशमकार्षीत् । पुनर्यदुपदेशात्सम्यक्त्व स्वदार संतोषतात तान्तःकरणेन वन्ध्याम्रतरुः सफलीचक्रे । तथाहि एकस्मिन् समये सुरत्राणो वनक्रीडार्थमुयानं जगाम । तत्रैको महाम्रतरुर्हः । श्री शाहिस्तत्र गन्तुमारब्धः । तदा केनचित्प्रोक्तं महाराज नात्र गंतव्यमयं वन्ध्य वृक्षः ! तदा शाहिना प्रोक्तमेवं चेतर्हि मूलादुच्छेदयध्वं । तदा संग्राम सौत्र णिकेनोक्तं, सामिन्नयं वृक्षो विज्ञपयति यययमागामिकवर्षे न फलिष्यति तदा स्वामिने योचते तत्कर्तव्यमिति । पुनः शाहिना मोकपत्रात्रि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४७ ] कारेकः प्रतिभूः ? संग्रामसौवर्णिकेनोक्त महमेव शाहिनोक्तं त्वं प्रतिभूः परं यद्ययं न फलिष्यति तदा तत्र किं कर्तव्यम् ? साधुनोक्तं यदस्य वृक्षस्य क्रियते तन्ममेति श्रुत्वा श्रीशाहिना आत्मीयास्तत्र पंच नराः स्थापिताः । तेषामुक्तं नित्यं विलोक्यमयमात्रस्य किं करोति । अथ संग्राम सौवर्णिकस्तत्रनित्मागत्य स्वपरिधानवस्त्रांचलप्रक्षालन जलेन तमाम्रं सिं. चतिस्म, वक्ति च, अहो आम्रतरो ! यद्यहं सद, संतोषवते दृढचित्तोऽस्मि तदा त्वयाऽन्याप्रेभ्यः प्रथमं फलितव्यं नान्यथेति । एवं षण्मासं यावत् सिक्तः । इतश्व वसन्धर्तुरायातः तदा पूर्वमयमात्रः पुष्पितः फलितश्च । तत् फलानि सौवर्णिकसंग्रामेन श्री शाहेः पुरो दौकितानि । श्री शाहिनोक्तं कानीमानि फलानि ? श्री साधुनोक्तं तद्न्ध्याम्रस्य इति श्रुत्वा श्री शाहिना भृशं नराः पृष्टाः तैर्यथावृत्तं सर्व निगदितं तत् श्रुत्वा परमचमत्कारप्राप्तेन श्री शाहिना अनेकनररत्नभूषितायां सभायां सर्वजन - समक्षं भृशं संग्रामसौवर्णिकः प्रशंसितः सप्तकृत्वः परिधापितश्च । अत्युत्सवपुरःसरं गृहे प्रेषितः । ततः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com • Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | [ ४८ ] सर्वत्र संग्रामसौवर्णिकस्य यशः प्रससार । असौ संग्रामसौवर्णिकः षड्दर्शन कलातभूत्र तथा गु जैरधरा निवासी कश्चिदानन्मदरिद्रो त्रिपः संग्राम सौवर्गिकं दानशीला मंदुर्गमाजगाम तत्र व्यवहारि सभायां स्थितस्त्र संग्राम सौवर्णिकस्य सविधमियाय दत्तास्तत्र स्थितः । सौवर्णिकेनोकं द्विजराज ! कुतः समागतं ? तेनोक्तं क्षीरनिधेर्भृत्योऽस्मि तेन भवन्नामांकितं लेखं दत्वा प्रेषितोऽस्मि । व्यवहारिभिरुक्तं देहि लेखं वाच - यस्वेति च तेनोक्तं- तद्यथा “ स्वस्ति प्राचीदिगन्तात्प्रचुर मणिगगै भूषितः क्षीरसिन्धुः क्षोण्यां संग्रमरामं सुखपति सततं वाग्भिराशीर्युताभिः । लक्ष्मीरस्मत्तनूजा प्रवरगुणयुता रूपनारायणस्त्वं, कीर्त्ता वासक्तिभावात्तृणमिव भवता मन्यते किंव दामन् || २ || इति श्रुत्वा संग्राम सौवर्णिकः सर्वगा भरणयुत लक्षदानं ददौ । ततो विम इतस्ततो विलोकितुं लग्नः । तदा व्यवहारि भिरुक्तं किं बिलो कयसि ? तेनोक्तमाजन्ममित्रं दारिद्रय विलोकयामि, हामित्र क गतोसीति कृत्वा पूच्चकार । पुनरुक्तं हुं ज्ञातं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४९] सभ्याः श्रूयतां-" यो गंगामतरत्तथैव यमुनां यो नर्मदां शर्मदां, का बार्ता सरिदम्बुलंघनविधेयश्चार्ण तोगवान् । पोसाकं चिरचितोपि सहसा श्री रूपनारायण ! त्वदानांबुनिविप्रवाहलहरीमग्नो न संभाव्यते ॥ २ ॥” इति श्रुत्वापि श्री सौवर्णिकः पुनर्लक्षं दापितवान् । [वृद्ध पौशालीय पट्टावलो ] श्री उदय वल्लभ मूरिके पट्ट पर श्री ज्ञान सागर मूरि गुरु हुए, जो कि सत्यार्थ थे और जिन्होंने श्री विमलनाथ चरित्र, आदि अनेक नवीन ग्रन्थ समूह के प्रकट करनेसे अपने नामको सार्थक कियाथा। जिन श्री ज्ञानसागर सूरिके मुख से-बादशाह श्री खिलवी महिम्मद ग्यास दीन सुलतान की दी हुई नगदल मलिक पदवीको धारण करनेवाले, मांडवगढ के निवासी तथा व्यवहारियों में श्रेष्ठ शाह श्री संग्राम सोनीने वृत्ति सहित श्री पञ्चम अङ्ग भ गवती ) को सुनकर " गोयमा " इस प्रत्येक पद पर सुवर्णकी मुद्राएँ रखी थी इस प्रकार स सहस्र सुवर्णकी मुहरें हो गई, और जिनके उपदेशसे ( उन्होंने ) उस द्रव्य के व्ययके द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Sorratagyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५० ] मालवा देशमें मांडवगढ आदि प्रत्येक नगरमें तथा गुजरात भूमिमें अणहिलपुर पाटन अहमदाबाद, खंभात तथा भरुच आदि प्रत्येक नगरमें ज्ञानभंडार करवाये । फिर जिनके उपदेशसे सम्यक्त और स्वस्त्री सन्तोष व्रतसे विशुद्ध मन हो कर जिन्होंने फल न देनेवाले आम्र वृक्षको सफल किया । देखो। किसी समय सुलतान वनक्रीडा के लिये उद्यानमें गये, वहां उन्होंने एक वडे आम के वृक्षको देखा, वादशाह जब वहां जाने लगे तो किसीने उनसे कहा कि महाराज ! वहां मत जाइये, क्योंकि यह वृक्ष निष्फल है, तब बादशाहने कहा कि-यदि यह बात है तो इस (वृक्ष ) को मूलसे ही कटवा डालो, तब संग्राम सोनीने कहा कि-हे स्वामी ! यह वृक्ष सू. चित करता है कि-यह आगामी वर्षमें फल न देवे तो स्वामीको जो अच्छा लगे सो करें, फिर वादशाहने कहा कि इस काम के लिये जमानत देने. वाला कौन है ? तब संग्राम सोनीने कहा कि-मैं ही हूं, बादशाह बोला कि-तुम जुम्मेवार तो हो परन्तु यदि यह वृक्ष फल न देगा तो तुम्हारा क्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ ] किया जावेगा ? शाहने कहा कि जो इस वृक्षका करें वही मेरा भी करें, इस बातको सुन कर बादशाहने वहां अपने मनुष्यों को रखदिया तथा उनसे कह दिया कि तुम लोग प्रतिदिन देखते रहना कि यह ( शाह ) आम्रवृक्षका क्या करता है । इसके बाद संग्राम सोनी प्रतिदिन वहां आकर अपने पहिरनेके वस्त्र के धोने के जलसे उस आम्र वृक्षको सींचने लगा तथा उससे यह भी कहता रहा कि - हे आम्रवृक्ष यदि मैं स्वस्त्री - सन्तोष - व्रतमें दृढ चित्त हूंतो तुमको दूसरे आम्रवृक्षों से पहिले फलना चाहिये, नहीं तो खैर । इस प्रकार उसने उस वृक्षको ६ मास तक सींचा और इतनेमें ही वसन्त ऋतु आ गया, तब यह आम्र वृक्ष ( और वृक्ष की अपेक्षा ) पहिले ही फूला और फला संग्रामसोनोने उसके फलेको वादशाह के सामने उपस्थित - भेट कर दिया, बादशाहने कहाकि - ये किस जागा फल हैं ? तब शाहने कहा कि उस आम्रवृक्षके यह फल हैं, इस बातको सुन कर बादशाहने उन मनुष्योंसे सब बात पूछी, तब उन लो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sumatagyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५२] गांने सब वृत्तान्त यथावस्थित ज्यों कात्यों कह दिया, यह सुन कर श्री बादशाहने अत्यन्त चम. स्कृत हो कर अनेक नर रत्नोसे अलङ्कत सभामें सब लोगों के सामने संग्राम सोनीकी अत्यन्त प्रशं. साकी, सात वार उनका परिधापन किया अर्थात् सात खिल्लतें सिरोपाव दिये तथा अति उत्सव के साथ उन्हें घर भेज दिया, तदनन्तर संग्राम सोनी. का यश सर्वत्र फैला। _ संग्राम सोनी पड् दर्शनोंमें कल्पतरुके समान थे,. जैसे कि-गुर्जर भूमिका निवासी कोई ब्राह्मण जन्मसे ही दरिद्र था वह संग्राम सोनीको दान शूर : सुन कर मांडवगढमें आया और व्यवहारियांकी सभामें बैठे हुए संग्राम सोनीके पास पहुंचा, आशी. र्वाद देकर वहां बैठ गया, सोनीने कहा कि हे विप्रराज । कहांसे आये हो ? वह बोला कि-मैं क्षीर समुद्रका नौकर हूं , उसने आपके नामका एक लेख दे कर मुझे भेजा है, सोनीने कहा कि-बांचो, तब उसने लेखको इस प्रकार पहा स्वस्ति प्राची दिशा के अन्त भागसे बहुत से मणिगणांसे शोभित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unanay. Suratagyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ५३ क्षीर सिन्धु पृथिवी पर आशीर्वादसे युक्त वचनेांसे निरन्तर संग्रामको सुख देता है । उत्तम गुणांसे विभूषित लक्ष्मी हमारी पुत्री है और तुम रूप नारायण हो, परन्तु कीर्तिमें आशक्त होने के कारण आप लक्ष्मीको तृणवत् मानते हैं विशेष क्या कहें॥१॥ यह सुन कर संग्राम सोनीने अङ्कके सब आभूषणों सहित लाख रुपये दिये ब्राह्मण इधर उधर देखने लगा, तब व्यवहारिजनोंने कहाकि-चया देखते हो ?-बोलाकि-मेरा जन्मसे ही जो मित्र दारिद्र था उसे देखता हूं, हा मित्र ! कहां लले गये ? इस प्रकार कह कर पुकारने लगा, फिर बोलाकिहां मैंने जान लिया सज्जनों ! सुनो जोगङ्गा और यमुनाको पार कर गया था तथा जो कल्याणदा. यिनी नर्मदाके भी पार पहुंच गया था, नदियोंके जलके लांधनेकी तो उसकी बात ही क्या है जबकि वह समुद्र के भी पार पहुंच गया था, हे रुप नारायण । वह हमारा चिरसञ्चित भी मित्र आपके दान समुद्र के प्रवाहकी तरङ्गोंमें एकदम इस प्रकार गोता लगा गया है कि मालूम भी नहीं पड़ता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Soratagyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४] इस बातको सुन कर श्री सोनीने फिर उसे लाख रुपये दिलवाये। - -- ट्रॅक-कुमारपाल भूपाल. सभ्य संसारको महाराज कुमारपालका परिचय दिलाना-सूर्यको दीवा दिखानेकी उपमा है. कौन जैसा मनुष्य है जिसने इतिहासका थोडा बहुतभी ज्ञान प्राप्त किया हो । और कुमारपालसें अपरिचित हो ? परंतु हैं सृष्टिमें औसेभी कतिपय मनुष्यकि जिन्होने अपने घरोंकी राम कहानियां सुन सुनही. जीवनको इतिश्री तक पऊंचा दिया है, उन विचारे पायः स्वसांप्रदायिक गोष्ठिप्रिय मनुष्योंकी कर्णग द्वरातक इस कीर्तिकौमुदिक यशस्त्रि राजाधिराजकी कथाका अंशभी उपकारी है, यह समझ कर सोलंकी कुल तिलक "उस त्रिभुवनपालक" महामंडलेश्वर-राजा कुमारपालका स्खला परंतु सर्व जनोपयोगि शब्दोंमे परिचय दिलाया जाता है. प्रबंधचिन्तामणिसे पता मिलता है कि वि.सं.११२८ की चैत्र कृश्न सप्तमी सोमवार हस्तनक्षत्र और नमी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvaway.Buratagyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५५ ] लग्नमे कर्णदेव गुजरातकी गादी पर बैठाया, कर्णदेवकी एक मीनलदेवी नामक राणीथी जोकि कर्णाटकके राजा जयकेशीकी लडकीथी, उसकी कुक्षीसें सिंह स्वमसूचित एक लडका जन्माथा उसका नाम उन्होंने स्वमानुसार जयसिंह रखाथा. जयसिंहकों कर्णदेवने वि. सं. ११५० पौष कृश्न तृतीया-शनिवार श्रवण नक्षत्र और वृष लग्नमें सिंहासन पर बैठायाथा. और खुद कर्णराज कर्णावती नयी नगरी वसाकर रहने लगाथा. राज्यारोहण के समय जयसिंहकी अवस्था ३ वर्षकी थी. कर्णदेवने २९-वर्ष ८ मास-२१ दिन राज्य किया था । सिद्धराज जयसिंहने ११५० में तख्तनशीन होकर ११९९ तक राज्य किया। सिद्धराज जयसिंहके अवसानका साल संवत् प्रबंधचिन्तामणिकारने नहीं लिखा । यहां हमने जो उल्लेख किया है सो " राजावलि कोष्टक और प्रभावक चरित्रके आधारसे किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Burratagyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५६ ] "द्वादशस्वथ वर्षाणां, शतेषु विरतेषु च । एकोनेषु महीनाथे, सिद्धाधीशे दिवंगते ।। ( देखो प्रभावक चरित्र पत्र ३९३. कुमारपालके गुणानुवाद जैन करें यह तो सं. गतही है परन्तु जैनेतर लोगांने भी इस भूपालकी कीर्तिके गायन करने में संकोच नही किया । कुमारपाल चरित्र द्वाश्रय जो महाराजा-गायकवाड सरकारकी ओर से प्रगट हुआ है, उसकी प्रस्तावनामें-सद्गत प्रोफेसर-मणिभाई नभुभाई द्विवेदीने लिखा है कि-"कुमारपाल ने जबसे अमारी घोषणा "-(जीवहिंसाबंद) की तबसे यज्ञयागमें भी मांस " बलि देना बन्द हो गया, और यव तथा शालि " होमनेकी चाल शुरु हो गई । लोगोंकी जीव " उपर अत्यन्त दया बढी । मांसभोजन इतना" निषिद्ध हो गया कि-सारे हिन्दुस्थान ( बंगाल " -पंजाब-इत्यादि एक, या दूसरे प्रकारसे थोडा " बहुत भी मांस हिन्दु कहलानेवाले उपयोगमें " लाते हैं परन्तु गुजरातमें तो उसका गंध भी लग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५७] " जाय तो झट स्नान करने लगजाते हैं । ऐसी " वृत्ति लोगांकी उस समयसें बांधी हुई आज प. "यंत चली जा रही हैं ). (देखो कुमारपाल चरित्र हिन्दीकी-और कुमारपाल द्वाश्रयकी प्रस्तावना ). - राजस्थान के कर्ता-कर्नल-टोड-साहिब को चितौडके किले में राजा लक्ष्मणसिंड के मंदिरमें एक शिलालेख मिला था. जो कि-संवत १२०७ का लि. 'खा हुआ था उसमें महाराज कुमारपालके वियों लिखा है कि-महाराजा कुमारपालने अपने प्रबल प्रतापसे सब शत्रुओंकों दल दिया जिसकी आज्ञाकां पृथ्वीपरके सब राजाओने अपने मस्तकार चढाईथी। जिसने साकंभरी पतिको अपने चरणों में नमाया था । जो खुद हथियार पकडकर सपादलक्ष (देश) तक चला गया था. सब गढ पतियोंको नमाया. था सालपुर ( पंजाब ) को भी वश किया था । ( वेस्टर्न इंडिया टाड कृत) फारवस साहिबने कितनेक कुमार पाल के समयके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unanay. Suratagyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५८ ] लेखों का उतारा लिया है जिसमें एकतो - मारवाड देशमें " बाडमेर " गांव के ताबे 'हाथमोनीनामक गामसे थोडी दूरी पर " केराडु " गाम है, जोकि - बाडमेर - सें थोडेसे कोसके फांसले पर है वहां जीर्ण मंदि - ' रोके और घरों के खंडेरा में से अनेक शिलालेख मिलते हैं मंदिर के एक थंभे पर संवत् १२०९ माघ कृश्न चतुर्दशी - शनिवार का लिखा कुमारपाल के समयका लेख मिला है " उसने कुमारपाल के सत्ता समयमे अभय दान दिलानेका अधिकार है जो किअष्टमी - एकादशी - चतुर्दशी इन ३ दिनोके वास्ते ३ गामेमें अमारी फैलानेका सूचक है लेख लंबा होनेसें यहां अक्षर अक्षरका उतारा न करके सूचना मात्र दी गई है । C जोधपुर के राज्यान्तर्गत ' रत्नपुर ' कोइ कसवा है उस गामकी पश्चिम दिशा में शिव मंदिरके घुमटमें एक शिला लेख है " उसमे " समस्त राजविराजित - महाराजाधिराज - परम भट्टारक - परमे - श्वर निज भुज विक्रम रणांगण विनिर्जित........... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५९ ] पार्वती पति वर लब्ध प्रौढ प्रताप - श्री कुमारपाल देव - कल्याण विजय राज्ये इत्यादि विशेषणोंसें सुशोभित लंबा चौडा लेख है और उसमे अमुक राजाकी राणीकी तर्फ से फरमान है कि अमुक-अमुक तिथियोंकों किसीने जीव हिंसा नही करनी अगर कोई जीव हिंसा करेगा तो उसके ४ द्रम्म - ( अशर्फियें -) दंड किया जावेगा. ..... ..... देखो - फार बस साहिबकी बनाई रासमाला खड पहला पृष्ट - ३०१-३०२. इस भूपालने जैसे शत्रुञ्जयतीर्थपर - तारण दुर्ग ( तारंगाजी ) पर विशाल और उन्नत जिन चैत्य बनवाये थे वैसे प्रस्तुत तीर्थाधिराज श्री गिरिनार तीर्थपर जो चैत्य बनवाये थे उनकों आज अपने कुमार पालकी ट्रंकके नामसें पहचानते हैं, इन चै - त्यांका निर्माण और इनकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् ११९९ से १२३० तक किसी भी सालमे हुई है क्योंकि - प्रस्तुत नरेशका सत्ता समय यह ही है । आपकी राजधानी अनहिलपुर - पाटन, भारतके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somratagyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६०] उस समय के सर्वोत्कृष्ट नगरे में से एक थी । समद्धिके शिखर पहुंची हुईथी । राजा और प्रजाके सुंदर महालयोंसे तथा मेरु पर्वत जैसे ऊंचे और मनोहर देवभुवनांसे अत्यंत अलंकृत थी। हेमचंद्राचार्यने 'द्वाश्रय महाकाव्यमें इस नगरीका बहुत वर्णन किया है, सुना जाता है। कि उस समय इस नगरमें १८०० तो क्रोडाधिपति रहतेथे । इस प्रकार महाराज एक बडे भारी महाराज्य के स्वा. मी थे।" ____ " आप जिस प्रकार नैतिक और सामाजिक विषयोंमें औरोंके लिए आदर्श स्वरुप थे, उसी प्रकार धार्मिक विषयों में भी आप उत्कृष्ट धर्मात्मा थे, जितेन्द्रिय थे और ज्ञानवान् थे । श्रीमान् हेमचंद्राचार्यका जबसे आपको अपूर्व समागम हुआ तभीसे आपकी चित्तति धर्मकी तरफ जुडने लगी। निरंतर उनसे धर्मोपदेश सुनने लगे। दिन प्रतिदिन जैनधर्म प्रति आपकी श्रद्धा बढने तथा दृढ होने लगी । अंतमें संवत् १२१६ के वर्षमें शुद्ध श्रद्धानपूर्वक जैनधर्मकी गृहस्थ दीक्षा स्वीकारकी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Sorratagyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत अंगीकार कर पूर्ण श्रावक वने उस दिनसे निरंतर त्रिकाल जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने लगे। परम गुरु श्री हेमचंद्राचार्यकी विशेष रुपसे उपासवा करने लगे । और परमात्मा महावीर प्रणीत अहिंसा स्वरुप जैन-धर्मका आराधन करने लगे । आप बडे दयालु थे किसी भी जी. वकों कोई प्रकारका कष्ट नहीं देते थे । पूरे सत्यवा. दी थे, कभी भी असत्य भाषण नहीं करते थे। निर्वि. कार दृष्टिवाले थे, निजकी राणीयोंके सिवाय संसार मात्रका स्त्रीसमूह आपको माता, भगिनी और पुत्री तुल्य था । महाराणी भोपल देवीकी मृत्यु के बाद आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत पालन किया था, राज्य लोभसे सर्वथा पराङ्मुखथे । मधपान, तथा मांस और अभक्ष्य पदार्थोका भक्षण कभी नहीं करते थे, दीन दुःखीयोंका और अर्थी जनोंको निरंतर अगणित द्रव्य दान करते थे । गरीब और असमर्थ श्रावकांके निर्वाह के लिए हरसाल लाखों रुपये राज्य के खजानेमसे देतेथे । आपने लाखों रुपयोंको व्यय कर जैनशास्त्रोका उद्धार कराया और अनेक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६२ ] पुस्तक - भंडार स्थापन किये । हजारों पुरातन जिन -मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराकर तथा नये बनवा कर भारत - भूमिको अलंकृतकी । तारंगादि तीर्थ क्षेत्रों पर के, दर्शनीय और भारत वर्षकी शिल्प कलाके अद्वितीय नमूनेरूप, विशाल और अत्युच्च मंदिर आज भी आपकी जैनधर्म प्रियताको जगत् में जाहीर कर रहे हैं । इस प्रकार आपने जैनब के प्रभावको जगत् में बहुत बढाया । संसारको सुखी कर अपने आत्माका उद्धार किया एक अंग्रेज विद्वान् लिखता है कि - " कुमारपालने जैनधर्मका बडी उत्कृष्टतासे पालन किया और सारे गुजरातको एक आदर्श जैन - राज्य बनाया । " आपने अपने गुरु श्री हेमचंद्राचार्यकी मृत्यु से छ महीने बाद १२३० में ८० वर्ष की आयु भोगकर, इस असार संसारको त्याग कर स्वर्ग प्राप्त किया 99 [ कुमारपाल चरित्रकी प्रस्तावनासे उद्धृत ] -- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Somatagyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६३] (टूक संप्रति महाराज) श्री बर्धमान स्वामी के पट्ट प्रभावक प्रथम श्री सुधर्म स्वामी पांचवें गणधर और पहले पट्टधर हुए। पचास वर्ष गृहस्थाश्रममें रह कर तीस वर्ष प्रभुकी सेवामें व्यतीत करके श्री बीरपरमात्माके निर्वाण वाद बारां वर्ष छद्मध और आठ वर्ष केवली अवस्थामें सर्व आयुः सौ १०० वर्षका पूर्ण करके वीर प्रभुके निर्वाणसे वीस २० वर्ष के बाद मोक्षगामी हुवे ॥१॥ उनके पाटपर जंबुस्वामी बैठे । जंबुस्वामीने ९९ कोटि सोनामोहरे छोड अप्सरा जैसी आठ स्त्रियोंका त्याग कर माता पिताकी आज्ञा लेकर सिर्फ सोला १६ वर्षकी छोटी उमरमें बाल ब्रह्मचारी पणे सुधर्म स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की। जंबुस्वामीने १६ वर्ष गृहस्यभावमें-बीस २० वर्ष व्रतपर्यायमें १४ वर्ष युग प्रधान पहनें सफल आयु ८० वर्षका भोगकर श्री महावीरस्वामीके निर्वाणके बाद चौसठवे (६४) वर्ष मोक्ष पाप्त किया । । । श्री जंबुस्वामीके पाटपर श्री प्रभवस्वामी वि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४] राजमान हुए वह तीस वर्ष संसारमें और ४४ वर्ष दीक्षावस्थामें रहकर ११ ग्यारह वर्ष युग प्रधान पदमें रहकर ८५ वर्षका सर्व आयुः पूर्णकर प्रभु श्री महावीरस्समीके निर्वाणसे ७५ वर्ष पीछे मोक्ष पधारे ।३। __प्रभवस्वामी के पदपर श्री शय्यंभवसूरि बैठे और उन्होंने यज्ञकी क्रिया कराते हुवे यज्ञके स्थंभके नी. चेसे श्री जिनराजकी प्रतिमाको प्रकट कराकर आ. स्म श्रद्धासे दर्शन किये. उसीही प्रशस्त योगके ब. लसे उनको जैन दर्शनकी और चारित्र धर्मकी प्राप्ति हुई । प्रभवस्वामीने इन्हे प्रतिबोध कर अपना संयम श्रुत और आचार्य पद दिया पद परंपरासे शय्यंभव मूरिजी भगवानके चौथे पाटपर थे। आपने जब दीक्षाली उसवक्त आपके घर लडकेकी उमेद वारी थी आपके चारित्र लेनेके बाद आपकी सांसारिक धर्मपत्नीसे एक लड़का पैदा हुवाथा जब वह लडका अपने आपको अच्छी तरह समझने लगा तब उसको भी आपनें दीक्षित कर लिया। आपनें जब अ. पनें अपूर्व ज्ञान बलसे लडकेके जीवित तर्फ उपयोग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Sorratagyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६५ ] दिया तो सिर्फ ६ छः मासके बाद उसका काल दिखाई दिया आपने उस स्वतनुजमुनिका शीघ्र कल्याण करनेके लिये “ श्री दशवैकालिक " सूत्र बनाकर उस होनहार बालकको पढाया । लडका उस सूत्र के अनुसार क्रियाको पालकर समाधि पूर्वक अनशन कर देवभूमिमें देव हुवा | दशकालिक सूत्र दिन प्रतिदिन संयमी चारिपात्र साधु साध्वी वर्गको उपकारी होने लगा, और दुष्पसह सूरि पर्यंत शासनको उपकारी होगा | ४ | श्री शय्यंभव सूरिजी के पाटपर श्री यशोभद्रसू-रिजी बैठे यह आचार्य २२ वर्ष सांसारिक अवस्थामें रहके दीक्षित हुवे १४ वर्ष सामान्य पर्याय में रहे ५० वर्ष युगप्रधानपदी पाकर ६२ वर्षकी उमर में श्री मन्महावीर निर्वाण से ९८ वर्ष के बाद स्वर्गारूढ हुए ॥ ५ ॥ इनके बाद श्री संभूतिविजय भद्रबाहु दो पद धर आचार्य हुवे श्री संभूतिविजयजी ४२ वर्ष गृहस्थावस्था चा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sorratagyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६६] लीस ४० वर्ष सामान्य पर्यायमें ८ आठ वर्ष युग प्रशनपनें रहकर ९० वर्षकी आयुः पूर्ण कर देव लोक गये। भद्रबाहु स्वामी ४२ वर्ष संसारमें रहकर १७ सतारां वर्ष सामान्य पर्यायमें १५ वर्ष युगप्रधान पद्वी पालकर ७६ वर्षकी अवस्थामें माहावोर निर्वाण के १७० वर्ष बाद स्वर्गारूढ हुए ॥६॥ ____ इनके पाटपर श्री स्थूलिभद्रजी बैठे स्थूलिभद्र स्वामी ३० वर्ष गृहस्थ रहे २४ वर्ष सामान्य . साधुपनेमें रहै, ४५ वर्ष युग प्रधान पदमें रहे ९९ वर्षकी उमरमें श्रीवीरपरमात्माके निर्वाणसे २१५ वर्षे स्वर्गारूढ हुए ॥ ७॥ ___ स्थूलिभद्रस्वामीके पाटपर आर्यमहागिरि और-आर्यसुहस्ति सूरिजी विराजमान हुए, आर्यमहागिरि बडे त्यागी थे प्रायः जंगलोंमें रहकर आत्मसाधन किया करते थे, जिन कल्प के व्यवछेद होनेपर भी उस कल्पकी तुलना किया करते थे ! ___ आर्यमुहस्तिमरिजो वस्तिमें रहतेथे परंतु बड़े निर्लेप थे. बारांवर्षी दुष्कालमे किसी एक भिक्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६७] चरको भिक्षा देकर आपनें आपना शिष्य बनाया वह भिक्षाचर उत्तम भावसे एकही दिनका संजम पालकर कुणालका लडका संपति हुआ। वह भाविभव्यात्मा संप्रति कुमार जब युवान हुवा तब नगरमें रथयात्राके साथ फिरते हुए आर्यमुहस्ति सूरिजीको देखकर प्रतिबोधको प्राप्त हुआ. जन्मान्तरीय गुरु शिष्य संबंध. उसने जातिस्मर्णसें जान लिया. इसी ही लिये वोह आचार्य महाराजका पक्का उपासक बनगया. आचार्य महाराजनें उसे जैन धर्मका स्वरुप समझाकर गृहस्था वस्थाके उचित धर्मसे विभूषित किया । संपति नरेश वासुदेव न होकर भी त्रिखंडाधि. पति-अर्ध भरतभोक्ता अर्धसम्राट कहलाता था. ॥संप्रतिके किये शुभ कार्योंकी सूचि.॥ १२०५००० बारह लाख पांच हजार जिन प्रासाद बनवाये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Sorratagyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६८] एक क्रोड पचीस लाख नये जिन बिम्ब वनवाये अनार्य देशोंमें जहां कि जैनधर्मको कोई नह जानता था वहां भी अपने निजके आदमियोंको भेज भेज कर धर्मकी प्रवृत्ति कराई।। कुछ अरसा पहले जब चिकागोमें एक सार्वजनिक महासभामें संसार भरके धर्मनेता एकत्र हुए थे तब जैन धर्मके नेता समझ कर श्री मदात्मारामजी महाराज को भी आमंत्रण आयाथा पूक्ति सूरि श्री आत्मारामजी माहाराजने अपने धार्मिक अमूलांकी पाबंदीको मान देकर आप खुद न जाकर बैरिष्टर वीरचंद राघवजी गांधीको भेजाथा वीरचंद राघवजीने श्रीमान के सिद्धान्तको समझाकर और अनादिसिद्ध श्री जैनधर्मके तत्वोको बताकर उस देशके लोगोंको खूब धर्ममिय बना. याथा, गांधीजी जब लेक्चरों द्वारा उस देश को जैनधर्मकी पवित्रता एवं प्राचीनता समझा रहेथे । __इतनेमें वहांके किसी शहरमें से श्री सिद्धचक्र जीका अती प्राचीन यंत्र मिला वो वीरचंद गांधीको दिखलाया गया, और पूछा के यह क्या चीज है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६९ ] खाने नौ ९ मालूम देते है और सब प्रायः घसा हुवा होनेसे समझ में नहीं आता गांधीजीने अपने पाससे सिद्धचक्र नवपदजीका मंण्डल दिखलाकर उन्हें समझाया कि यह अमुक चीज है इसी प्रकार अष्ट्रीयाके " हंगरी" नामक प्रांतके " बुदापेस्त" प्रसिद्ध शहर में किसी अंग्रेजके कुआ खोदते हुए, चरम तीर्थंकर श्रीमन्महावीर स्वामीकी प्रतिमा निकतीथी. जैन इतिहास के अनुसार इन प्रदेशो में संप्रति " नरेशका राज्य और जैनधर्मके सुचिन्ह प्रमाण सिद्ध है. सारे सभ्य संसारका यह विश्वास है कि सन १४९२ ई० में "कोलंबस " ने अमेरिकाका आविष्कार किया । पर यह मत भ्रमात्मक है। वहां हिन्दू और बौद्ध बहुत पुराने चिह्न मिले हैं । दक्षिणी अमेरि काके "पेरु” नामक राज्यमें एक सूर्य मन्दिर है । इसकी मूर्तिका आकार उनाव (दतिया) के सूर्य्य मन्दिरकी मूर्ति से मिलता है । और भी कई एक चिन्ह मिलते हैं । जिनसे बहुत पुराने जमाने में हिन्दुओंका वहां जाना साबित होता है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७० ] प्रोफेसर जान फ्रायर अमेरिका के ' हारपर्स' नामक मासिक पत्रभे एक लेख लिखकर यह बात साबित कर चुके हैं कि कपतान कोलम्बसके सैंकडे वर्ष पहले बौद्ध धर्म प्रचारक गण वहां गयेथे, और उन्होने बौद्धधर्म और एशियाई सभ्यताका प्रचार कियाथा। हम कहते है वो सूर्य मंदिर नहीं परंतु जैनोका धर्मचक्री क्युं न हो ? पूर्वकालमें धर्मचक्र बनाये जाते थे और वोह देवमूर्तियोंकी तरह विधान पूर्वक मंदिरों में स्थापन किये जाते थे । इस लेख के वाचन समम वाचक महोदय- पद्मासनासीन शान्तरस के विश्रोत एक परमयोगीकी प्रतिमा के देखेंगे, यह प्रतिया उस जगत्पिताकी है कि जिसने अपने अशेष दुखका तिलाञ्जलि देकर संसार भर को अपने समान विद्वंद्र बनानेके लिये आत्मा मात्रको कल्याणका मार्ग बतायाथा, और अनादि कालीन अनंत जन्मोके परि दृढ बंधे हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sumatagyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७१] कर्माका नाश करके अपने वीर महावीर जसे यथाथं नामोको सत्य कर बतायाथा. जैनसमाजका मंत. व्य हैकि-चीरमभुके समयमे जैनधर्म बहुत थोडे क्षेत्रमे था. उनके निर्वाणके २३५ वर्ष बाद राजा अशोकके पौत्र संपति नरेशने उस धर्मका बहुत दूर तक फैलाव कियाथा अशोकने जैसे बुद्धधर्मका प्रचार करनेके लिये अपने लड़के और लडकोको सीलोन (लंकामे ) भेज दिया था वैसे इस नृपतिने अपने विश्वासास्पद उपदेशकांको अन्यान्य देशोमे भेजाथा. साथही यहभी जानना जरूरी है 'कि महाराज संपतिकी राज्य सीमासिर्फ भारत के अमुक देशनगरोमेही नही, किन्तु संसारके मायामत्येक खंडमे फैली हुईथी. अब सवाल यहां यह होसकता है कि जैसे दि. ग्विजयी नरेशका जिकर अन्य सांप्रदायिक ग्रथोमे और संसारके लभ्यशिलालेखोमे क्यो नही. पहली शंकाके समाधान के वास्ते हमको राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्दके लिखे वाक्यांका उतारा कर लेना हीका फी होगा उक्त विद्वानने हिन्दु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Undanay. Suratagyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७२] स्थानका वर्णन करते हुए लिखाहै कि-"राज्य इस देशका सदासे सूर्य और चंद्रवंशि राजाओंके घरानेमें रहा. परंतु अगले समयके हिन्दु राजाओंका वृत्तान्त कुछ ठीक ठीक नहीं मिलता. और न उनके साल संवतका कुछ पता लगता है जो किसी कवि. यां भाटने किसी राजाका कुछ हाल लिखाभी है तो उसे उसने अपनी कविताकी शक्ति दिखलाने के लिये असा बढाया है कि अब सचको झूठसे जुदा करना बहूत काठिन होगया. सिवाय इसके ब्राह्मणोने बौधराजाओंको असुर और राक्षस ठहरा कर बहुतेका नाम मात्रभी अपने ग्रंथोमे लिखना छोड दिया. और इसी तरह बौध ग्रंथकारोने इनके राजाओंका वर्णन अपनी पुस्तकोमें लिखना अयोग्य जाना तिसपरभी बहुतसे ग्रंथ अब लोप हो गये, बौधेांने ब्राह्मणोके ग्रंथ नाश किये. और ब्राह्मणोने बौधोके ग्रंथ गारद किये. मुसलमानोने दोनोको मिदीमे मिला दिया." दूसरा सवाल यहभी होसकताहै कि-संपति राजाके नामका कोइ शिलालेख क्यो नही मिलता? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७३] इसका समाधान यह है कि जैसे आज हिन्दुस्थानमे अनेक दानशील मनुष्य हैं बल्कि गिनती कीजाय तो हिन्दुस्थानमे प्रति वर्ष साठक्रोड रुपयेका दान होता है उनमे कितनेक उदार महाशय तो किसीकीभी आंखोके सामने दान नही करते और करके कभी कहतेभी नही. उनका कथन और मं. तव्य है कि___ " यज्ञः क्षरति असत्येन, तपः क्षरति मायया - आयुः पूज्याऽपवादेन. दानं तु परि कीर्तनात् ॥१॥ अर्थ-असत्य बोलनेसे यज्ञका फल नष्ठ होजाता है, याया करनेसे अर्थात् दंभ-कपट-परवंचना करनेसे तपका फल हारा जाता है अपने पूज्य उप. कारी पुरुषोंका अपवाद करनेसे अर्थात् उनको निन्दा करनेसे जिन्दगी घटती है और-दूसरे के पास प्रकाश करनेसे दूसरेके सामने अपनी बडाई करनेसे दानका फल अल्प होजाता है. यह समझकर कितनेक भाग्यवान क्रोडों रुपयोंका दान देते हुए भीनामवरीका लालच नही रखते. इससे मालूम होता है कि संपति महाराजभी औसीही वृत्ति के मनुष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७४ ] थे सुनाजाता है कि नवाङ्गी टीकाकार अभय देवसूरिजी के संप्रदायमे शिलालेख लिखाना अनुचित समझा जाताथा. कर्माशाह शेठ के कराये श्री शत्रुंजय महातीर्थ के उद्धारके कार्य मे सर्व प्रकार के स्वतंत्र अधिकारों के होते हुए भी आचार्यश्री " विद्यामण्ड ण" सूरिजीने अपना नाम किसी शिलालेखमे दर्ज नही करवाया, दूर न जाकर वर्तमान युगकी विचारणा करते हुए मालूम देता है कि आजभी संसार मे जैसे मनुष्य है कि जो कार्य करके भीनामकी परवाह नही करते जोधपुर राज्यान्तर्गत कापरडा तीर्थ के उद्धार मे आचार्य श्री विजय नेमिसूरिजीने जोजो कट सहन किये है; सुनकर अनहद्द अनुमोदना आती है, परंतु उस तीर्थ पर उन्होने अपना नाम किसी प्रशस्ति मे नही लिखवा. अब मुख्य बात यह है संप्रति नरेश के होनेमें क्या प्रमाण है ? उसके उत्तर में इतनाही कहना हो गाकि संपति के अस्तित्वमे जैन इतिहासही प्रमाणभूत हैं ! संसारमे जैसा कोई साहित्यक्षेत्र नही कि जिस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Sorratagyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७५] मे जैनसाहित्यके अंगभूत जैन इतिहासका प्रचार नही हो। यहां प्रसंगसे जैन तिहासिक ग्रंथोका परिचय करा देना उचित समझकर थोडोसे कथा ग्रंथोके नाम लिखे जाते हैं । वाचक महाशय उन्हे पढकर जरुर फायदा उठायेंगे। (१) त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र-इस के कर्ता आचार्य श्री हेमचंद्रसूरि है आपका जन्म विक्रम सं. ११४५-निर्वाण १२३० । (२) याश्रयकाव्य-(प्राकृत) कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमान् हेमचन्द्राचार्यने विक्रम सं. १२०० के करीब इसकी रचना की है. (३) याश्रयकाव्य (संस्कृत) उन्ही कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमान् हेमचन्द्राचार्यकी यह रचना है। इसकी रचना वि सं. १२१७ के आसपास हुई है। (४) परिशिष्ट पर्व-यहकृति भी उपर्युक्त श्रीमान् हेमचन्द्राचार्यजीकीही है. (५) कीर्तिकौमुदी-इस काव्यका रचयिता सोमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७६ ] श्वर भट्ट है- जोकि गुजरात के सोलंकियांका पुरोहित था आपने इसकी रचना वि. सं. १२८२ के करीबकी है। (६) वसन्तविलास - इसको बालचन्द्रमूरिने तेरहवीं शताब्दी में बनाया है इसमें वस्तुपाल तेजपालका वृतान्त है । (७) धर्माभ्युदय महाकाव्य - विजय सेन मूरिके शिष्य श्री उदयप्रभसूरिने तेरहवीं शताब्दीमे इसको बनाया है । १४ सर्गेमे यह काव्य विभक्त है (८) वस्तुपाल तेजपाल प्रशस्ति श्रीमान् जयसिंहसूरिने तेरहवी शताद्वी में इसे बनाया है. • (९) सुकृतसंतीर्तन - वि. सं. १२०५ के करीव लवणसिंह के पुत्र अरिसिंहने इसको बनाया है, इसमें अणहिलवाडेको वसाने वाले राजा वनराजसे लेकरके सुभट सामंतसिंह तकके चावडोंकी वंशावली तथा मूलराज से भीमदेव तक के, अणहिलवाडेके सोलंकियोंका एवं अर्णोराजसे वीरधवल तकके घोलका बाधेका संक्षिप्त वृतान्त और वस्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somatagyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७७] पालका विस्तृत चरित्र है, यांतो जिनहर्षका वस्तुपाल चरित्र सोमेश्वरकी कीर्तिकौमुदी सुकृत संकीर्तनका जर्मन भाषामें भाषान्तर मोफेकर डॉ. बुहलरने किया था और उसका अंग्रेजी अनुवाद, इ. एच. वरगेसने इन्डियनएन्टिवेरीमें भी प्रकाशित करवाया था । (१०) हम्मीरमदमदन-यह एक नाटकका ग्रन्थ है इसकी रचना वीरमरिके शिष्य जयसिंहमूरिने .वि. सं. १२८६ के करीब कीहै। (११) कुमारविहार प्रशस्ति-इस प्रशस्तिके क.र्ता श्रीमान् वर्धमान गणोहैं तेरहवी शताद्वीमें यह बनाई है कुमारपालके बनाए हुए एक मंदिरकी यह प्रशस्ति है. (१२) कुमारविहार शतक-इसके रचयिता रा. मचन्द्राचार्य है इसमें कुमारपालके बनाए हुए मन्दिरका वृत्तान्त है। ___ (१३) कुमारपालचरित्र-सोमेश्वर भने इसको चौदहवीं शाताद्वीमें लिखा है इसमे राजा कुमारपालका चरित्र है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७८ ] (१४) प्रभावकचरित्र-ऐतिहासिक विषयका यह उत्तम ग्रन्थ है, श्रीमान् प्रभाचन्द्र आचार्यने इसको वि. सं. १३३४ में बनाया है। इसमें वज्रस्वामी आदिके २२ प्रबंध है (१५) प्रबन्ध चिन्तामणि-इसके कर्ता हैं मेरु तुंगाचार्य वि. सं. १३६१ में इसको बनाया है. (१६) श्री तीर्थकल्प-इसके कर्ता श्रीमान् जिनप्रभमूरि हैं इस ग्रन्थका दूसरा नाम कल्पप्रदीप है जिनप्रभसूरि वि. सं. १३६५ में हुए हैं इस ग्रन्थमें करीब ५८ कल्प और स्तव हैं.. (१७) विचारश्रेणी-इसके कर्ता मेरु तुंगाचार्य हैं। यह ग्रन्थ अंचलगच्छीय आचार्यने बनाया है इस ग्रन्थसेभी गुजरातके चावडा राजाओंके राजत्व समय पता मिलता है. (१८) स्थविरावली-इसके कर्ताभी अंचलगच्छीय मेरु तुंगाचार्यही हैं इसमें कई आचार्योका वर्णन है। (१९) मच्छपबन्ध-इसके कर्ता हैं ककसूरि वि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७९ ) सं. १३७१ में इसको बनाया है इस ग्रन्थमें समराशाह तथा सहजाशाहके जीवन चरित्र है येह दोनों देशलके पुत्र थे. (२०) महामोह पराजय नाटक-यशः पाल मंत्रीने अजयपाल राज्यमें इसको बनाया है. (२१) कुमुदचन्द्र प्रकरण-इसके कर्ता हैं श्रीमान् यशश्चन्द्र । इसमें वादि देवमूरि और पं. कुमुचन्द्रका संवाद दिया गया है। • (२) प्रबन्धकोश-इसको चतुर्विंशति प्रबन्ध कहते हैं । मलधारी श्रीमान् राज शेखर मूरिने 'वि. सं. १४.५ में इसको बनाया है. _(२३) दुमारपाल चरित्र-इसको श्रीमान् जयसिंहमूरिने वि० सं. १४२२ में बनाया है. . (२४) कुभारपाल चरित्र-इसके कर्ता हैं श्रीमान् सोमतिलकसरिने वि. सं. १४२४ के आसपास इसको रचा है। इसमें भी उन्हीं राजाओंका वृत्तान्त हैं। (२५) कुमारपाल चरित्र-चौदहवी शताद्वी के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Soratagyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८० ] आसपास रत्नसिंहरिके शिष्य चारित्र सुन्दर गणिने इसको बनाया है इसमें भी मूलराजसे लगाकर कुमारपाल तक के सेलकियोंका इतिहास है. (२७) उपदेश सप्ततिका - इस ग्रन्थके कर्ता सोम धर्म गणि हैं यह ग्रन्थ भी उपदेश तरंगिणी की तरह कितनेक अंशा में ऐतिहासिक रीत्या उपयोगी है इस ग्रन्थ की संवत् १४२२ में रचना हुई है । (२८) गुर्वावली - इसके कर्ता हैं मुनि सुन्दरसूरि । यह ग्रन्थ वि.सं. १४६६ में बना है । (२९) कुमारपाल प्रबन्ध - इसके रचयिता है श्रीमान् जिनमंडल उपाध्याय वि. सं. १४९२ में इसको बनाया है. (३०) महावीर प्रशस्ति - वि० सं० १४५ में श्रीमान् चारित्ररत्र गणिने इसको बनाया है । इस ग्रन्थमें चित्रकूट के महावीर स्वामीके मंदिरकी प्रशस्ति है । (३१) पंचाशति प्रबोध संबन्ध श्रीमान् शुभशील गणिने वि० सं. १५२१ में इसको बनाया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sumatagyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १ ] इसमें कई एक निबन्ध हैं जैसे गौतम स्वामीका अटा पद तीर्थ बंदन कानडा महावीर स्थापना, जिन प्रभावार्य संवन्ध जिनप्रभरि अवदात संबन्ध झ as साधु संवन्ध वगैरह । (३२) वस्तुपाल चरिच इसके कर्ता तपाच्छीय श्रीमान् जिन हर्ष गणि हैं सोलहवीं शताब्दीमें यह बना है. (३३) सोम सौभाग्य काव्य - यह काव्य प्रतिष्ठा • सोम गणि विरचित है इसको वि. सं० १५२४ में बनाया है । (३४) गुरु गुण रत्नाकर काव्य - इसके रचयिता श्रीमान् सोम चारित्र गणिने वि० सं० १५४१ में इसको बनाया है । ३५ जगदगुरु काव्य २३३ श्लोक का यह एक छोटासा का है इसके कर्ता विमलसागर गणिके शिष्य श्रीमान् पद्मसागर गणि हैं सं. १६४६ में यह काव्य बना है. (३६) उपदेश तरंगिणी इसके कर्ता श्रीमान् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Stratagyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८२] रत्न मंडणगणि हैं सोलहवी शताब्दी मे आप हुए हैं। ___ (३७) हीर सौभाग्य काव्य-श्रीमान् सिंहविमल गणिके शिष्य श्रीदेवविमल गणिका बनाया हुआ यह एक महाकाव्य है. (३८) श्रीविजयप्रशस्ति काव्य भी एक बड़ा भारी ऐतिहासिक काव्य है इसके कर्ता श्रीमान् हेमविजय गणी तथा श्रीमान् गुण विजय गणी हैं यह भी महाकाव्य का ग्रन्थ है वि० सं० १६८८. में यह काव्य बना है. (३९) श्री भानुचंद्र चरित्र-इस काव्य के रचपिता श्रीमान् सिद्धिचन्द्र उपाध्याय है सतरहवी जवादीमें इसको बनाया है (४०) विजयदेव माहात्म्य. इसके कर्ता श्री. मान् वल्लभोपाध्याय है । रसमें श्रीविजय-देवमूरिजीके जीवनका वर्णन करनेमें आया है। (४१) दिगविजय महाकाव्य-१८ वीशतादीमें श्रीमान् मेघ विजय उपाध्यायने इसको बनाया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay.Burratagyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८३ ] इसमें अधिकतया विजयपभसूरिका ही ऐतिहासिक वृत्तान्त है। (४२) देवानन्दाभ्युदय महाकाव्य-इसको भी मेघ विजय उपाध्यायने बनाया है इसमें विजय देवसूरिका ऐतिहासिक वृत्तान्त है. (४३) झघडु चरित्र-इसके कर्ता श्रीमान् सर्वानंदसरि हैं इसमें झघडु शाहका जीवनचरित्र विस्तारपूर्वक दिया गया है, तथा और भी बहुतसी ऐति• हासिक बातोंका उल्लेख है यह ग्रन्थ छप चुका है। (४४) सुकृतसागर-इसके रचयिता श्री रत्नम' ण्डन गणि हैं इसमें पेथड, झांझण तथा तपागच्छोय धर्म घोघमूरिका जीवन चरित्र है-इन इतिहास संबंधधी ग्रंथो के आधारपर ही ज्यादातर हिन्दु. स्थानका निर्वाह है वरन् अन्य संपदायोंमे ऐतिहा. सिक ग्रंथोकी बहुतही त्रुटि है । पूर्वोक ग्रंथामें किस किस देश यानरेशाका वर्णन है. फिप्स किस समयमे क्या क्या घटना बनी है उसका पता उन उन ग्रंथोसे ही लग सकता है । हां इतना तो जरुर है कि इन ऐतिहासिक ग्रन्थो केविषय विभागका - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८४ ] ल्प परिचय " जैन साहित्य सम्मेलन " नामक विवर्ण पुस्तक के लेखोंसे लगसकता है, उसमे मु. विद्याविजय जी जैसे मुनियोंके और साहित्याचार्य विश्वेश्वरनाथ जैसे परिपक्क अभ्यासियोंके लेखों से बहुतसो वातोंका स्पस्टीकरण हो सकता है. ( उपर्युक्त पुस्तकोके नाम भी वहांसेही उतारे ) सिवाय इनके " वसुदेवहिण्डी " और "पउम चरिय " नामक ग्रंथ उपर लिखे ग्रंथोसे भी अति प्राचीन और इतिहास के भंडार हैं मुशकिल यह है कि उनको आज तक किसीने छपवाकर प्रसिद्ध नही किया । पउमचरिय तो अभी थोडा समय हुआ भावनगरकी श्री जैनधर्मप्रसारकसभा तर्फसे छप गया है अधिक सौभाग्यकी बात यह है कि उस ग्रंथका संशोधन कार्य जर्मन विद्वान डो० हर्मन जे कोबीके हाथ से ही समाप्त हुआ है 1 इस सविस्तर लेखका अशय सिर्फ इतना ही कि यह प्रतिमा (मूर्ति) संप्रति राजा के समय की ही एशिया खंडके हंगरी मान्त वर्त्ति बुदापेस्त शह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८५] रमेसे निकली है। इतना ही हमारा वक्तव्य है। इन टूकोके अलावा-नेमिनाथ ढूंक १ मानसिंह भोजराज ढूंक, अंबिकामाता ढूंक मेरकवशी ४ तीसरी ट्रंक ५ ौथी ट्रंक ६ पांचमी ढूंक ७ का. लिका ट्रंक ८ __इनके अतिरिक्त राजीमती फुफा वगैरह अनेक गुफाओं सहसावन वगैरह अनेक वण, हस्ति कुंड आदि अनेक कुंड । अनेकानेक अपूर्व वृक्ष । अनेकानेक झरणे । अनेकानेक लताओं। अनेकाने खनियें । अनेकानेक तापसाश्रम । ध्यान लगानेकी जगह । योगाभ्यासके स्थान, हवाखानेके कूट । अनेक औषधियां, अनेक रत्र, अनेक मणि, अनेक जडी, अनेक बूटी, अनेक रस कुंपी । अनेक चरणपादुका । अनेकानेक पूर्वपुरुषोंके स्मारक चिन्ह, यहां उपलब्ध हो रहे, हैं अनेक प्रशस्तियां, अनेक शिलालेख अनेक लिपी । अनेक दानपत्र ताम्रपत्र-प्रतिमालेख-यहां इतिहासकी त्रुटि के पूरण करनेवाले विद्यमान है। ____ अनेक जातिके वृक्ष । अनेक तरहके फूल । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८६ ] अनेक तरहके फल, अनेक प्रकारकी लतायें । अनेक तरहकी लकडी । अनेक जातिकी धातुओं । अनेक जातिके मृग । अनेक जातिके पक्षी | अनेक जातिके व्याघ्र अनेक जाति के सर्प -सिंह - शादूल - हकीकफटिक - नीलम - योगनिष्ट योगि- अनेक ध्याना रूढ तपस्वी - अनेक कंदाहारी वनवासी- अनेक मंत्र वादी अनेक दीर्घायु अवधूत अनेकानेक ब्रह्मचारी । इस पर्वतमें रहते थे । । गिरनार तीर्थ के सविस्तर हालके लिये दौल.. तचंदजी वरोडियाका लिखा गिरनार महात्म्य दे खनेकी भलामण करके कल्याणके कारण भूत इस ग्रंथको समाप्त किया जाता है । ॐ शांति ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Sonatagyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ गिरनार रास ॥ श्री सारदायै नमः अथ श्री गिरिनारि गिरिनो उद्धार लिख्यते ॥ वस्तु॥ सयल वासव ॥ वसेपयमूल नमिशुं निरंतर .चित्तभत्तिभर ॥ सांति करण चौविस जीनवर ॥ नेमिनाथ बावीसमाए ॥ सियलरयण भंडार सुई• कर तस पय पाय अनुसरिए । महिमा गढ गिरनार ॥ सहिगुरु आ देश सीर लइ ॥ बोलिस कपि विचार ॥१॥ ढाल १. ॥ देशी बुधरासानि ॥ कैपि विचार कहुं मन रंगा श्रुत देवि आधारजी ॥ वदनकमल ॥ विलशेवर वाणीसा सामणी संभारजी ॥ १ ॥ जंबुद्वीप भरत क्षेत्र माहे ॥ उत्तर दीशे उदारजी ॥ मनोहर काश्मीर मुख्य मंडन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८८] नवफुल पत्तन सारजी ॥२॥ तिहां नवहंस नामे छे नरवर ॥ विजया छे तस राणीजी ॥ चंद्र शेठ तिण पुर अधिकारी विनयवंत बहु प्राणीजी ॥३॥ नंदन त्रने तासनीरुपम ॥ रतन वडो वीवहारीजी॥ बीजो मदनपूरणसिंह बीजो जैनधर्म अधिकारीजी ॥४॥ लक्षमीवंत सुलक्षण सोभित ॥ तेजे रवि परतापीजो ।। दृढ कछ। मुख मीठा बोले । जस किर्ति जग व्यापीजी ॥ ५ ॥ विनय विवेक दान गुण पु. रण ।। राय दीये बहु मानजी ॥ वडो बंधव मुसदा विचक्षणा श्रावक रत्न प्रधानजी ॥ ६ ॥ रतन शेठ निघरणी पदमणी ॥ सिलवंती सुविचारजी । तेइनो सुत बालक बुद्धिवंतो || कोमल नामे कुमारजी ॥ ७ ॥ नेमिनाथ नोरवाण पधारा । वरस साहस हुआ आठजी रतन शेठ तिण अवसर हुओ ग्रंथे एवो पाठजी ॥ ८ ॥ अतीसयज्ञानी प्रोढ माहा. देव ॥ वन पोहोता रिषीराजजी । राजा रतन शेठ सवीवांदे सीधा वंछित काजजी ॥ ९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay.Borratagyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८९ ] ढाल २. || सांभली जीनवर मुखथी साधुं || ए देशी छे ।। सभा सहू आगले सोय मुनिवर || धर्म देशना भासेरे भविक जिवने भव भय हरवा । प्रवचन व . चन प्रकाशेरे || धर्म करोरे धर्मधुरंधर || १ || अर्थ कामने कामेरे || धर्म तथा संबल विण कहो किंम ॥ प्रांणी वांछित पानेरे ॥२॥ सोए धर्म दोइ भेदे भाष्यो ॥ श्री आग्यम जीन राजेजी || सर्व वृत्ति देशवृत्ति अ *धिकारे ||३|| यति श्रावकने काजेरे पंच महाव्रत धारी मुनिवर || ४ || श्रावक वीरता विरतीरे || श्रीजीन आणा दोयने अधकी ॥ दया भाव अनुसरतीरे ।। पेहेलुं समकीत सुध करेवा || श्री जिन भक्ति उदाररे ॥ सोए आराधो चार निषेपे । बोलेते अनुजोग द्वारेरे नामथापना द्रव्य भावजीन || जीन नामा नाम जीनरे || ठवणजीनाते जीनवर प्रतिमा || सोहमसामि वचनरे || ६ || ० || द्रव्य जिना जोन जीव कहीजे || वंदे भरत नरिंदरे || समवसरण बेठाजे स्वामी ॥ ते तो भावि जीनंदरे || || ध० || भाव जिणंदतणो जो विरहे || जीन प्रतिमां जिन सरखिरे । द्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somatagyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९०] भाव पुजा तस सारे ॥ भविजन प्रवचन परखीरे ॥८॥ ३० ॥ भाव पुजा ते कही मुनिवरने ॥ श्रावकने द्रव्यभावरे ॥ वृद्धिवादे बोलीजी पुजा भवजल तरवा नावरे ॥ ९॥ध०॥ श्री जिन अंगे मजन करतां ॥सत उपवासतुं पुन्यरे द्रव्य सुगंध विलेपन करतां ॥ सहस लाभ होय धन्यरे ॥१०॥ ध० ॥ सुरभि कुसम मालाये पूजे । लाभ लक्ष उपवासरे ॥ नाटक गीत करेजिन आगे ॥ लहे अनंत मुख वासरे ॥११॥ ३०॥ श्री जिन भक्ति तणां फल : एहवां ॥ जांणी लाभ धरीजेरे ॥ वलि विषेके शेजें. जय सेवा ।। लाभ पारनलहीजेरे ।। १२ ॥ ध० ॥ . भाग एक शेव॒जय केरो ॥ तीर्थ श्री गिरिनाररे ।। नेमिकल्याणिक त्रण हुआ जिहां ।। महिमा न लहुं पाररे १३॥ ५० ॥ प्रगट श्री प्रभास पुराणे ॥ जो जो मूकी मानरे ॥ रेवतनेमि तणो जे महिमा । उमयाने इशानरे ॥१४॥ ध० ॥ वलि बंधन सामर्य तणे खपे ॥ तपजिहां तप्यो मुरारीरे ॥ अधिकार प्रगट जिहां दिसे ॥ वामनने अवतारेरे १५॥१०॥ यतः॥प्रभास पुरांणना श्लोक ॥ पद्मासन समासीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९१] श्याममूर्तिनिरंजनः नेमिनाथः शिवेत्याख्या, नाम: चक्रेस्प वामनः ॥ १॥ रेवताद्रो जिनोनेमि युगादि विमलाचले ऋषीणामाश्रमा देवा मुक्तिमार्गस्य का. रणं ॥ २॥ कलिकाले महाघोरे, सर्वकलमशनाशनः। दर्शनादस्पर्शना देव कोटी यज्ञ फल प्रदत ॥३॥ उज्जयंत गिरौ रम्या, माधे कृष्ण चतुर्दशी । तस्यां जागरणं कृत्वा संजातो निर्मलो हरिः॥४॥ नत्वा शत्रुजयं तीर्थ, गत्वाचरैवताचलं । स्नात्वा गजपदे • कुंडे पुनर्जन्म न विद्यते ॥ ॥ ढाल ३ पुर्वली॥ रेवत गिरिवर नेमिश्वर मूरति ॥ उतपतिनो अधिकाररे ॥ जीर्ण प्रबंधे जे वलि बोल्यो ॥ ते सुगजो विस्ताररे ॥१॥ ४० ॥ भवियण भाव घणो मन आणि ॥ सांभली श्री गुरु वांणिरे ॥ तिरय जात्रा तणा फल जाणी ॥ जन्म सफल करो पाणिरे ॥२॥ भ० अचंबा आ एण भरते अतित चोविधि ॥ त्रिजा सागर स्वामिरे ॥ उज्जेणि राजा नर वाहन॥ पुछे अवसर पामीरे ॥०॥३॥ कैये मुक्ति होसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] मुझ देवा || जिनवर कहे तिवारेरे || आगामक चोविशि नेमिजिन || बावीसमानें वारेरे ॥ भ० ॥४॥ एम सुणि सागर जिन पासे । सो नृप संजम लेइरे ॥ पंचम कल्प तो पति हूवो || अवधी ज्ञान घरेइरे ॥ भ० ॥ ५ ॥ कीधुं वज्रमय मृतिकानु श्रीनेमिनाथनुं बिंवरे || परम भावसुं पूजे वासव दश सागर अविलंबरे ॥ भ० ६ || नेमिनाथना त्रण कल्पाणक रैवत गिरीवर जाणीरे || सेख आयु आपण पूंलैनेसा प्रतिमा तिहां आणीरे ॥ भ० ॥ ७ ॥ गिरिगंधर्वना चैत्य मनोहरः गर्भ गेहनिपावेरे: सोवन रत्न मणीमय मूर्तिः तिणकार तिहां ठावेरे ॥ भ० ८ || कंचन बलाक नाम निपाव्यु भुवनति आगल साररे ॥ बज्रमय मृतिका सामुरति त्यांथापि मनोहाररेः ॥ भ० ॥ ९ ॥ सोहरि नेमिनाथने वारे हुवो नृप पुण्य साररे नेम मुखे पुरव भव समरी पोतो गढ गिरनाररे ॥ भ ॥ १० ॥ तहां निज कृत्य जीन प्रतिमा पूजी सुतने सांपी राज्यरे नेमिपा से संजम व्रत पाळी साधु संघले काजरे ॥ भ० ॥ ११ ॥ ए रेवत तिरथ मुळ उत्पची पुरब पुरषे भाखीरे ॥ वली शेत्रुंजय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somratagyanbhandar.com : Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मातम मांही वात एसि परदाखीरे ॥ भ० ॥१२॥ श्री शेजुजय उधार कराव्या । भरतादिके जै वारेरे॥ नेमनाधना त्रण कल्याणिक रेवत गिरिये ते वारेरे । भ० ॥ १३ ॥ वर प्रासाद भरावि प्रतिमानब पांडव उद्धाररे थापो लेपतणी प्रभु मूरति तिहां एवो अधिकाररे ।। भ० ॥ १४ ॥ इम गिरिनार तिरथनो महीमा अवधारो भवि लोकरे नेमिनाथनी सेवा सारी लहो अनंत फल थोकरे ॥ भ० ॥१५॥ ढाल चोथी. • भरत नृप भावशु ए ए चाल छे ।। देशि स्तुतिनी ॥ एम सुणी सहिगुरु देसनाए श्रावक सोहे रत्नके ॥ हरख धरे सुणो हे ॥ सभा सहु कोइ देखतां हे ॥ करे अभीग्रह धन्य के ह० ॥१॥ आजथकी प्रभु माय ए पंच विगय परिहार के ह० भोमि शयन ब्रह्मचर्य धरुं हे लेयु एकवार आहार के ॥ह० ॥ २ ॥ संघ सह गिरनार जावा हे जीहां नही भेटु नेमके ह० तिहां लगीमे अंगीकरोरो इह अभिग्रह एम के ॥ ४० ॥ ३॥ माण शरीरे जोधरु हे करु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९४ ] = एक जात्रा सारके || ह० || ४ || सह गुरुने एम बिनबीए || पोचे घर परीवार के ॥ ६० ॥ ४ ॥ राय प्रतेकेरि वीनतिए लीधुं मुरत चंगके ॥ ह० ॥ कंकोतरी तिहां पाठ वेए || थानक थानके मन रंगके || ३० ||५|| नगरी माहे गोखान्युं जेहने जोए जेके || ह० || ६ || तेसविल्पो मुज पासथिए जात्रा करो घरी स्नेहके ॥ ह० || ६ || संघ सबल तिहां मेलिओए || लोकन लाभे पारके || ह० || सहजत्रालानि संख्या नहि हे || गज रथ अश्व उदार के ॥ ६० ॥७॥ पडह अमारि जावियारे || सागे लोक अपारके || ह° ॥ ८ ॥ बंध मुकावी बहु परिए - लोक प्रते सत्कारके ॥ ६० ॥ ८ ॥ करभखचर सोभन भरा है || करे सखायत रायके ॥ ६० ॥९॥ सैन्य सबल साधे लियारे उलट अंग न मायके ॥० ॥ ९ ॥ सेठाणी राणी कनेये ।। करे मोकलामणी काजके ह० || राणी कहे किपण थइए || रखे अ णाबो लाजके इ० || १० || देतां कर चंचो रखे ए लक्ष्मी लियो मुज पासके ह० ॥ तुजो माहारी बेनडीए || जो कहवाइश सावश के ह० ॥। ११ संघ • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९५१ पति तिलक धराविया ए । श्रावक रत्न सुनाण के ॥०॥ कोटी ध्वज व्यवहारियाए ॥ मलीया राणराय के ॥ ह० ॥ १२ ॥ देरासर साथे घणाए । पुजा भक्ति जिनंद के ॥ ० ॥ गंद्धर्व ज्ञान कला करे ए ॥ भाट भटित कहे छंद के ॥ ह० ॥ १३ ॥ जल सुखने का लिया हे ॥ साथे चर्म तलाब के ॥ ह० ॥ सबल साचवणी संघनिरे ।। दीन २ अ. धिको भावके ।। ह०॥१४॥ मार्ग तीरथ वंदता ए ॥ • सहगुरु साथे सुचंदके ।। ह०१५। रेलातो लागिरि आविआए । कुशले सघलो संघके ॥ ह० ॥ डेरा । तंबु खडा किया ए ॥ उतरिया महत उमंग के ॥ १० ॥ १६ ॥ ढाल ५ मो. रोला तोला पर्वतनी घाटी ॥ श्री संग उतरे जामजी पुरुष एक विकराल करुपी ॥ सामो आवी कहे तामजी ॥ १ ॥ सुणजो सुणजोरे भवि लोकाईण थानक थीरथाओजी ॥ मुननेरे समझावा रखे कोइ आगल जाओजी ॥सु०॥२॥ अति कालो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Sorratagyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९६] मश पुंज सरिखो ॥ सुपड सरीखा काननी आयो नर आयो सिंह सरिखो। दंत खरि पास माननी सु०॥३॥ मोटा मुंडल सरिखो मस्तक ॥ विश न. खपावडा शमानजी ॥ अट्टाहास करे अति उचो ॥ लोक प्रते बीहाबेजी ॥ सु० ॥ ४ ॥ अनेक जनने विदारवा लागो ॥ हुवो हाहा रवतानजी ॥ राज पुरख मुभटे सवि आदि । सो बोलाव्यो सामजी ।। सु० ॥५।। कुण तुं देव अछे वादानव ॥ कांजनने संतापेजी ॥ पुजादीक जोइए ते मागो । जीम सं.. घवी तुम आपेणी ॥ सु० ६॥ सो कहे समझावा पाखे पग जो भरसे कोइरे । तो माहा मुख माहे - थइने ॥ जमपुर जासे सोइजी ॥ सु० ॥ ७ ॥ ___ ॥ ढाल छठ।। अहो ओतम कुल माहेरुः ॥ ए देशी ॥ फागणे फाग खेलाविई ॥ वाणि मुणी सोए पुरखनि विलखां थयां सहू मनजी ॥ तेह सुभट सिन आविया ॥संघवी जिहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९७ ] रत्नजी ॥ १॥ तेणे वात आवि कही ।। सुणि वचन कडूआ कानजी ॥ संघ पति सवी परीवार सु, वीलखा थया असमाननी ॥२॥ गीरनार तीरथे. जायतां ।। उपनो विचे अंतरायजी ॥ कहो किणी वीद्ध केलवी ॥ कीजे किस्यो उपायजो ॥ ३ ॥ इहां कोलाहल थयो घणो ॥थांन के थानके वातनो ।। नासतां हिंडे कायरा ॥ मेलो सवी संघानजी ॥४॥ कामनि जन कलिरव करे ।। मन धरे अति अंदोहजी ॥ हाहा वचन तिहां उचरे ॥ सांभरे घरनो मोहजी ।।५।। एक कहे पाछा वलो ॥ जात्रा पोहत्ति जाणजी ॥ जीवतां जो नर होयसे । तो पामशे कल्याणजी ॥ ६ ॥ एक कहे जइ होवे ते खरूं ।। अम भणी श्री जिन पायजो ॥ श्रीनेमिजोन भेटया वीना ॥ पाछा वली कुण जायनी ॥ ७ ।। एक कहे निमितने पुछीइ । होय जे जाणा जोसनो ॥ एक कहे संघ प्रस्तांनमां ।। मुर्त प्रते दिए दोसनो ॥८॥ संघवी साहस आदरी । तेडया जन मध्वस्त नो । जइ पीछवो एह पुरुष नइ, शुभ वचने करीस्वस्तजी ॥९॥ एजे कहे. तइ कीजीई ।। दिजीई मांगे जेहजी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umesesy.Samantagyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९८] मलपरे करीने संतोषीइ ॥रीझवो वेने ते हजी ॥१०॥ सो प्रेतने जइ पुछीउं ।। पोछवी विनय वचनजी ।। सौ कहे साचुं सांभलो ॥ एणै गिरी रहु निस दिनजी ॥ ११ ॥ स्वामि अछू आ भोमिनो ॥ हुं देवरुपी जाणजी ।। तुम संघनो वडो मानवी ।। मुझ आपो एक आणजी ।। १२ ।। पछे संघ सहु निर्भय थइ ।। पंथे पोहचोरे खेमजी ॥ एह कथन जो नहि मानसो । तो भेटसो केम तुमे नेमजी ॥१३॥ संघ पति रत्न ते सांभली ॥ एहवा तीहां समाचारजी ॥ सहु. संघने बइ सारी करी ॥ बोले एम विचारजो॥१४॥ ॥ ढाल ७ मी॥ (नंद्या म करसो कोइनी पारकीरे॥ ए देशी छे ) धवल शेठ लइ भेटणुं आ देशीमां पण छे । रत्नशेठ कहे संघनेरे ॥ वचन एक अवधारोरे ॥ इण थानके अमे रेशुं एकलारे,तुमे जइ नेम जुहारोरे रत्र ॥१॥ अथिर कलेवर आज संघनेरे । काम नो ते नही आवेरे ॥ तो पछे इणे की नीप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९९ ] जे || मुज मन एहवो छे भावरे रत्न ॥ २ ॥ राणिजाया राओत सी ॥ कहे शेठने तामरे | चिरंजीवो रत्न तुं सदा । एह अमारुं कामरे रत्न || ३ | स्वामि आपण केरे कारणे ॥ त्रण जिम तोली लीजेरे || वृति तमारी अमे भोग || ते आंशी - गण केम कीजेरे रत्न || ४ || तब साधर्मो श्रावक कहे || सु संघ पती वातरे ॥ तुं नर रत्न कुखे धरौ ॥ धन्य तुमारी मातरे रत्र || ५|| लक्षोना उदर भरो तुमे ॥ · आशा ते सहूनी पुरोरे || मान दिजे पृथ्वि पति | - ॥ गुणे नही अधुरोरे रत्न || ३ || महिअल भार करवा अमे || अवतरा जगमां जाणोरे || प्रभु अमारां असार कलेवरां || अमने श्री संघने खप आणोरे रत्न || ७|| मदन पूरण बांधव विहुँ ॥ कहे भाइजी सुणो अर्जरे ॥ बड बंधव तमे अमतणा || ठाम पितानें समर्जरे रत्न || ८ || पिताने आघिन जेम बेट डा || तिम अमे दास तमारारे ॥ तुम विजोगे सुनारा सवि || तुमे छो कुटंब सिणगारे रत्र || ९ || आगे. शमने लखमणा ॥ त्रिण जेम तोला चरण रे || काह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०० ] ए अमचे सिरकरो ॥ तुमने होंजो कल्याणरे रत्न ॥ १० ॥ ॥ ढाल ८ मी" ( तिरथ अष्टापद नमिये ।। ए देशी ॥ पीउ राखे प्राण आधार ॥ पदमणि एम भांखेरे । तुम पासे कुण गति नारिनि ॥ अम जीवन कुण राखेरे । पी० १॥ तुम विजोगे एकली अ. बला ॥ किम रहे घर निरधारीरे ॥ कंत विना कानिने सघले ॥सुनो संसार ए भारीरे ॥पी०२॥ वालमतणे विजोगे अबला || जन्म झुरंता जायरे सर्व सोभा ते दिसे कारमि ।। भुवण दुखण थायरे ॥ पी० ३ ॥ पियरने सासरे पनोति ।। पियु विण मान न लहिएरे ॥ अमुकुन जाणि तस मुख वरजे लोके विधवा कहियेरे ॥ पी० ४ ॥ पीउ आधिन सदा कुल नारी ॥ पति जाते परलोकरे ॥ अंते जी. वित ते पण मृत्यु ॥ पुरीत पियुने शोकरे ॥ पो० ॥५॥ ए उपसर्ग सहि सहू स्वामि ॥ तुम होजो . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvakay. Sorratagyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०१ ] कुशल कल्याणरे ॥ तुम अवर भलि सुंदरि वरजो ॥ हुँ छु तुम पग त्राणरे ॥ पा० ६ ॥ कोमल सुन कहे सुणोरे पितानो ॥ अमे सुत रुपे रगि पारे ।। जे सुत अवसरे अर्थ न आवे । उदर किट ते भरियारे ॥ पी० ७ । मुनने इहां इतला दिन राखि ।। संघ लइ तुम पोचोरे ॥ जनक जुभो इण वाते जुगतुं ॥ रखे काइ वाते सोचोरे ॥ पी० ८ ॥ बंधव बिहू प्रते संघवी ॥ नितिनि वाते समझावीरे ॥ संघ . सकल संचरतो कोधो ॥ सघली सीख भलावीरे ॥ पी० ९ ॥ ॥ ढाल ए मी॥ देखो गति दैवनीरे ॥ ए देशी ॥ जुभो जुओ धीरज शेठनुरे ॥ संघ काजे सा. हसीक । आपणे अंगे आगम्पूरे ॥ मन मोहे निर. भीक ॥ पाणी तुमे जोजोरे रत्न श्रावकनो भाव ए टेक ॥ त्रण जणा तिहांकणे रहारे ॥ पति पत्नीने पुत्र ॥ अवर सनेही थया कार मारे ॥ जुवो जुत्रो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०२] वात विचित्र ॥ मा० २॥ संघ सहु को हवे संचरेरे ॥ फरिफरि पार्छ जोय ॥ नयने श्रावण झडि लगीरे ॥ कपि ने चाले कोय ॥ मा० ३ ॥ शरण श्री नेमर्नु आदरीरें।। अणशणकोध सागार ।। संघ पति धीर थइ रयोरे, सहु करे हाहाकार ॥ पा०४ ।। प्रेत गुफा मांहे लइ गयोरे ॥ रहो ते रुंधो द्वार । सिंह नाद अति सुर करेरे ॥ बिहावे ते अपार ॥ मा. ॥ ५॥ कोमल सुत मोया पद्मणोरे ॥ धरे ते काउ सग ध्यान ॥ कंथ जव कष्टथी छुटशेरे ॥ तव लेशां अनपान ॥ मा० ६॥ एहवे रेवतपर्वतेरे ॥ जावे के क्षेत्रपाल सात ॥ मात अंबाने भेटारे ॥ तेणे सुणौ एह उत्पात ॥पा० ७ ।। तेणे जइ अंबाने विनव्युरे ॥ कुरु कुरु शब्दे जेम ॥ पर्वत एक अति घड हडेरे ॥ नवि दिठो आगेरे एम ॥ मा० ८ ॥ कोइक महंत पुरिषने, उपद्रव करे बहु दुष्ट ।। ज्ञाने अंबाए निहालियौरे ।। दीठो संघ पति कष्टापा २॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०३] ॥ ढाल १० मी॥ ॥ चाल चोपाइनी ॥ देवी अंबाए जाणि ए वात ॥ क्षेत्रपाल साथे लह सात ॥ तेणे थानके उछंगे आवे ।। सोय प्रेत रुपीने बोलावे । कोमल सुनने पदममो नारी ॥ काउपा दीठा मुविचारि ॥ ते उपरे कपा सुभगति, उपनो अंबानी शुभमति ॥२॥ सो ए प्रेत रुपी प्रति भाखे। 'दुष्ट कष्ट दे छे श्या पाखे ॥ हू नामे छु देवी अंबाइ। क्षेत्रपाल छे माहारा सखाइ ॥ ३॥ नेमचरणे व 'हु सदाइ ॥ ईह साधर्मी रत्न मुज थाई ॥ संघ पति राख्यो ते अबुझ, होय शक्ति तो अमरों जुझ ॥४॥ तव प्रेत घणुं थरहरियो । जुध मांडो ते कोपे भरियो । चरण झालो उधे मस्तक धरिभो ।। शि. ला साथे आफलवा करीओ ॥ ५ ॥ इतले सो संवरी माया ।। सोवन सम झलकतोरे काया ॥ आभरणे संपरो हेव ॥ ययोप्रगट विमानिक देव ॥६॥ संघ पति सिर उपर ताम ॥ पुष वृष्टि करे अभिराम ॥ कहे धन धन तुं विविहारी ॥धन २ तुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १०४ ] मुतने नारि ॥ ७ ॥ गुरु मुखे ते लीधुं छे नीम ॥ मरणांतिक लगे करि सीम ॥ खमि न सक्यो ते पर सीध ॥ तुज परिक्षा ए मे कोच ॥८॥ तुं तो छे मुधो समकित धारी ॥ तें तो दुर गति दुर निवारी ॥ भलं चित राख्यु निज ठाम ॥ तुने त्रु। नेमो सर शाम ॥ ९ ॥ धन २ ए ताहेरि कलत्र ॥ पुन्य वंत एह ताहारो पुत्र ।। धन धन ते देवो अंआई। नेणे स्वामीनी भगति निराइ ॥ १० ॥ जोहु जुध करु मन शुधे ॥ तोहे कुण नवि चाले बुधे ।। पण क्रीडा मात्रज कीधुं ।। तुज साहस पारखं लिधुं, ।।११।। मणि मोतीनी दृष्टि उदार ।। संघपति उपरे करे सार ! संघ माहे मुकौ तेणि वार ॥ वरता सघले जय २ कार ॥ - C. ॥ ढाल ११ मो॥ (चाल पूर्वली) काज सिद्ध सकल हचे सार ए देशी) सो देव सुर लोके संधावे ॥ अंबांदिक निज गमे भावे ॥ संघ सह रेवत मिरि पावे ॥ सोवन सुल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay.Soratagyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १०५] मोति वधावे ।। १ ॥ मन सुद्धशु भावना भावे ।। उपकरण तलाटिये ठावे ॥ जिन जोवाने उछक थावे । नेम भेटोने पाप समावे ॥ २ ॥ धोती पेहेरे थइ नीर्मल अंग ॥ स्नात्र करवाने थया सुचंग ।। आवे मुल गंभारा माहे ॥ स्नात्र करे जल प्रवर प्रवाहे ॥ ३ ॥ संघमां नहि श्रावकनो पार ॥ तेणे व्यापी पाणी धार ॥ तोहां कणे अवंभम होय ।। लेपमय बिंब गलियुं सोय ॥४॥ संघ सहू तब हुवो ' विछिन । खेद धरे घणुं संघवि रत्न । धिा मैं असातनाकीधी अजाण।। तीरथ कियो भंस ए ठाण ॥५॥ आरोगोस हवे तो जल अन्न, जो ठामे स्थापिश बिंब रत्न ।। मन सुधे एम आखडि किधि । संघ भलामण भाइने दीधि ॥ ६॥ अवर अध्यातम सघलो छांडे || आपण तप करवाने मांडे ।। साठ हुवा उपवास जिवारे ।। अंबाइ आव्यां प्रतक्ष विवारे ॥७॥ कंचन बलाणिक नामे सुचंग ॥ जद निर्मित प्रासाद उतंग ॥तिहां संघवीने अंबा हि आवे || जिनवर बिंबते सघला देखावे ॥ ८॥ श्री नेमिनाथ यदा विधमान | कृश्न निर्मित विच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Sorratagyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०६ ] प्रधान ॥ कंचन बलाणिक प्रासाद माहे ॥ ते सवि वंद्या हरखे रत्न साहे ॥ ९॥ सोवन रत्न रुप्य मणिकेरा । विंब अढार २ भलेरा ॥बोहोतेर विवमा तुज रुचे जेह ।। कहे अंबाइ मुखे लहो तेह ॥१०॥ रयण, विंब लेवा मति कोधी ॥ आपणा नामने क. रवा प्रसिधि ॥ शिष्य सुमति तव दिए अंबाइ । आ. गल कलियुग आवशे भाइ ॥ ११ ॥ लोक होसे अति लोभि विषमा । ते आगल लइ जासे पडिमा ।। पाषाण बिंब लिओ ते माटे ॥ कहे सं.. घवी किम आवशे वाटे ॥ १२ ॥ काचे तांतणे विटी वलावो ॥ मारगे मुरती एणीपरे ल्यायो । पुंठे ' म जोसो ने जो करशो विलंब ।। तिहांकणे रेहस्ये ते निश्चल बिंब ॥ १३ ॥ एम सीखामण चित्त घर. इ ॥ श्याम पाषाण तणो बिंब लेइ । केटलिक भोमिका मेलीने आवे ॥ संघवी मनमे तब विस्मय थावे ॥१४॥ आवे के ना वे ए वाट विचाले॥ एम विमासी तब पार्छ निहाले ॥ रखो स्थिर बिंग आयो नवि हाले ॥माशाद रचना तिहां कणे चाळे ॥ १५ ॥ सुंदर श्री जिन भुवन कराग्यो । संघ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Sorratagyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०७] चतुर्विध ने मन भायो । आज लगे तिणे ठामे पु. जाये दरिशण दिठे दुरित पलाए ॥ १६ ॥ वस्तु ॥ रतन श्रावक रतन सरिखो जोइए । पुरण प्रतिज्ञा जेने करि ॥ सकल देव पारखे पोहोतो ॥ माताए सारज करि ।। संघ माहे स्थाप्यो सम्होतो ॥ वर प्रसाद करावियो ए श्री गिरनार उद्धार । नेमि जिणेसर स्थापिया वरता जै जै कार ॥ १ ॥ - *ढाल १२ मो. (कलशनी) एम प्रथम उधारज कियो । भरते त्रिभुवन जस लीयो॥ एहि चाल छे ।। पुरि प्रतिज्ञा तिणेएम सुधां सांचव्यां तिणे नेम ॥ धन्य २ सतवादि शिम ॥ वावरयां जिणे सुवर्ग ढिम ॥ १ ॥ जाचकना - छत पूरां । दालिद्र ते दुखियानां चूरां ॥ तीरथनी थापना कीधी । किरति व्यापी सघले प्रसिधि ॥२॥ बलतां सौ संघ चलाव्या शत्रुनानि जात्राये प्रा. न्या ॥ प्रा आदि जिनेसर बंदा ॥ पातिक सर्वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०८] दूर निकंदा ॥ ३॥ विविधपरे द्रव्य ते चींचां ।। सु. क्रित तणां तरु सर्वे सीचां ॥ तीरथ अवर वर अनेक बंद्या धरी तेणे सविवेक ॥४॥ अरथ अपूरव सरा। पछे आपणे नगरे पधारा ।। सापिये चडि आया राजा ॥ बहून मान दिये ते दिवाना ॥ ५ ॥ यर २ मंगल गावे वृधि ।। कुशल कल्याग तगोरे समृद्धि ॥ सामि बछल बहुला कीधां ।। पुन्य भंडार भरा ते प्रसिधां ॥ ६ ॥ रतन सरिखो ए छे रतन धर्म तणो करे ते जत्न ॥ चंद्र सुरज लगे नाम || जेणे राख्युं. ते अभिराम ॥ ७ ॥ तिरथ एह श्री गिरिनार ।। प्रगटी कीधो श्रावक रत्ने सार । थारी श्री नेमि.. जीनी मुर्ति ॥ आज लगे एहवि छे किर्ति ॥ ८ ॥ अथिर लक्ष्मी के एह ॥ पामि वय करतो ससने ।। कृपणपणु नवि ते आणे ॥ तेहनो जस जगमाहे जाणे ॥९॥ भरतादिक हुवा संघहो । भान नहि रिधि छे एहवि ॥ पाम्पा सारु द्रव्य शकिए वा ॥ तेहनी एम भावना पायो : १.. श्री शत्रुजय निरि सार । भरतनो प्रथम उद्धार। पांच पांडव लगे जोई । सो पण गिरनार होई ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnanay. Buratagyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०९] महातम श्री शेजा मांहे । एवं दीसे छे प्राये ॥ रत्न श्रावक अधिकार ॥ जीरण प्रबंधे छे सार ॥ १२ ॥ श्री जीनशासन ए दीपक ॥ हवा क. लीकाले अलिझीपक ॥ श्रावक छे अवर अनेक ॥ कुण कहि जाणे ते छेक ॥ १३ ।। सिद्धराज जेसंघ दे मेतो ॥ साजन मंत्री गह गहतो ॥ सारि सोर. ठनी जे कमाइ ॥ बार वर्ष सुधो जे निपाइ ॥१४॥ ते धन श्री गिरनारे वरियो ॥ श्री नेनि प्रासाद उधरियो ॥ सिधराजे तेणे वखाणो ॥ सचराचर ज्ञस ते जाणो ॥ १५ ॥ एवा वस्तुपाल तेजपाल । मंत्री मुगट ते क्रिपाल ॥ श्री जैनधर्म दिपाव्या । खट दर्शनने मन भाव्या ॥ १६ ॥ श्री सिद्धाचल गिरिवर ॥ कोटि अढार ते उपर ॥ वाणु लक्ष ते प्रसिद्ध ।। एटलो ते द्रव्य वय कीध ॥ १७ ॥ श्री गिरनारे एम बार ॥ कोड एसी लाख सार ॥ अर्बुद लूणग वसही ॥ बार कोड ओपन लाख कही ॥ १८ ॥ एकसो चोत्रीसि चंग ॥ श्री जिन प्रसाद उतंग ॥ दोय सहस त्रणसें सार ॥ कीधा तेणे जीर्ण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unuzway. Sorratagyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११०] उद्धार ॥ सत नव चोरासि विशाल ॥ किधि तेणे पोखधशाल ) कोटि अहार धन वाव्या । जैन भं. डार लखाव्या ॥ २० ॥ दंतमय दीपता उंच ॥ सिंहासन ते सत पंच ॥ जादरमय समवसरण || पांचसे पांच शुभ कर्ण ॥ २१ ॥ सवा लक्ष विच भराव्या । मुरि पद एक वीश थपाव्या । सामि व छल वरिसे बार ॥ संघ पूजा ते वणवार ॥ २२ ॥ शिवालय त्रैणशे दोय ॥ सतसे ब्रह्मशाला जोय । कपालिक. मठ एता । सेहस जोगि तिहां जमता ॥ २३ ॥ शत्रागार सय सात ।। गउ से इस दान विख्यात । विद्या मठ सत पंच ॥ शातसे कुर करा संच ॥ २४ ॥ चारसे चोसठ वापि ॥ ब्रह्म पूरि तीहां सत आपि ॥ सरोवर चोरासी प्रमाण ॥ वत्रीस दुर्ग पाखाण ॥ २५ ॥ शेजे शाडि बार जात्र ।। पोख्या अनेक जन पात्र ॥ तेरमि वारे ए मार्गे ॥ वछ पाल ते पोता स्वर्गे ॥२६॥ केतां मित्थयात्वि नाकाम ॥ कीयां राखवा एणे नाम ॥ अवसर्पणोए चखाण्या ॥ जेहवा प्रबंधे जाण्या ।। २७ ।। सवी पनर वय संख्या जोडि ॥ चौद लाख तेत्रीसे क्रोडी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Sorratagyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १११] ॥ सहस अढासय आठ ॥ हु लोढी उणो ए पाठ ॥ २८ ॥ श्री पर्वत दक्षिणे जाण ॥ प्रभास पछमे वखाण ॥ उत्तरे केदारह कैये ।। दूरवइ बाह्या रसी लइए ॥ २९ ॥ इण दीसे दान जगीशे ।। किरति वीस्तरी चिहू दीसे ॥ खट दर्शन कल्पवृक्ष, पाम्यो विरुद ते परतक्ष ॥ ३० ॥ वर्ष अढारमा प्रसिद्ध ॥ ए करणि करी सांवे सिद्ध । ते विद्यमान केल्याए ॥ आज लगि फिर्ति बोलाए '॥ ३१ ॥ श्री रत्नाकरसूरी, उपदेश थया पून्य .पुरि ॥ सा पेथड सुविचार ।। वाणुं ते जैन विहार। शेर्बुजे आदि जिन भुवने ॥ घटिका एकवीश मुवने ॥ विद्रविराख्यु एम नाम ।। आ ससि सुरज जाम ॥ ३३ ॥ तस मुत झाझण सार । सोवन धजा गिर नार ॥ नेमि प्रासाद करावि ।। श्री सिद्धाचल थकी आवि ॥ ३४ ।। श्री जयतिलक सुरेंद जस । उपदेशे आनंद । श्रीश्रीमालि विभुषण ॥ हरपति साह विचक्षण ॥३५॥ विक्रमरायथि वरशें ई ॥ चौदशे ओगण पचाशे । रेवत प्रासादे नेम ॥ उपरियो अति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११२] प्रेम ॥ ३६ ॥ इम महा भाग्य अनेक ॥ श्रावक ते सकल विवेक ॥ किया गिरिनारे उधार ॥ कुग कहि जाणे तस पार ॥ ॥ कलश ॥ (राग धन्यासरी) त्रुठो ठोरे मुने साहेब जगनो त्रुओ जगदिश मलो जगदिश मलोरे ॥ ए टेक.) श्री गिरनार विभुषण स्वामि ॥ जादव कुल शणगारजो ॥ राजुलबर रंगे जइ वंदु ॥ निरुपम नेमकुमारजी ॥ ज०.१ ॥ अम आंगण सुरतरु फ. लीयोरे ॥ ज० ॥श्री यदुवंश विभुषण मोहन ॥ समुद्र विजय धनतातजी ॥.धन्य शिवा देवी माता जेणे जायो । जिनजी जगत विख्यातजी ॥ज० २॥ अंबड संभड दोये भाइ ।। सुत साथे अंबाइजी ॥ श्री नेमिनाथ पद पंकज भमरी ।। पूजो परम सखाइजो ३ ॥ आरती कष्ट हरो सा देवी ॥ श्री संघ वंछित पूरोजी ॥ चिंतित सिद्धि करो वलि मुरवर ॥ सिध वणायक सरोजी ॥ ज० ४ ॥ आज अपूरव दिवस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Sorratagyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११३] हूवो मुझ ॥ पातिक दूर पुलायाजी ॥ श्री नेमिनाथ निरखा जवनयणे ॥ मनवांछित फल पायारे ज ५ ॥ श्री बन रत्न सुरिंदगणाधिप ।। वड तपगच्छ शिणगारजो । अमर रत्न मुरिपाट प्रभा. वक ॥ श्री देव रत्न गणवारजो ॥ ज० ६ ॥ पंडित शिरोमणि भानुमेरु गणि ॥ सुगुरुपसाय आनंदजी ।। श्री दधि गाम माहे दुखभंजन ।। विनव्यो नेमि जिणंदजी ॥ ज ७ ॥ करो कृपा नय सुंदर उपर ॥ दियो प्रभु शिवपुर साथजी । हो जो सदा सं-: घने सुखदायक ।। सुप्रसन श्रीनेमिनाथनी ॥८ ज०॥ कलश ॥ एम रेवता चल जात्रानुं फल ।। किंपि तस महिमा भण्यो । वाविसमो बलवंत स्वामी ॥ नेमनायक संथुण्यो ॥ श्री भानुमेह गणिंदु सेवक । कहे नयसुंदर सदा ।। शुविसाल देव दयाल अविचल ॥ आपो सुख मंगल मुदा ॥१॥ इति श्री ॥ ॥ गिरिनार उद्धार संपूर्ण छ । - -- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११४] ॥ काश्मीर ॥ __ काश्मीर वा जम्मु । रावी और सिन्धु नदी के बीचका इलाका शुरुसे आखीर तक काश्मीरकी राजधानी कहलाती है । युगकी आदिमे श्रीयुगादि देव ने अपने दीक्षा समयको निकट आया जानकर अपने सौ पुत्रोंको जो जो राज्य दिये थे उनमे यह मी एकथा. तदनंतर चौथे तीर्थकर श्री अभिनंदन स्वामीके शासनमे जितारि राजाने इसी देशसे श्री सिद्धाचल जीकी यात्रा के लिये संघ निकाला था. श्री नगर जो कि काश्मीरकी जम्मु के समान राजधानी कहलाती है उससे थोड़ी दूरीपर "मटठ साहिब" नामक एक प्राचीन तीर्थ स्थानमे आन चक भी आईद चैत्योंके चिन्ह सुते जाते है [ इस बातकी सत्यता के लिये-स्वर्गस्थ-श्रीयुत-राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द कालिखा "भूगोल हस्ता. मलक" देखो ] इन स्थानोको लोग कौरव पाण्डबाँके समय के बने हुए कहते है । जिस महा पुरु. पका नामनिर्देश प्रस्तुत रासमे किया गया है वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११५] भी इसीही काश्मीर देशका रहनेवाला था, और इस के सत्तासमयमे वहां जैनधर्म बड़े प्राबल्यमे था. आज भी शहर जम्मुमे एक जैन मंदिर और कितनेक जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजकांके घर है। जैन श्वेताम्बर साधुओंकी चतुर्मास स्थिति भी होती है। हां मूर्ति पूजकोकी अपेक्षा साधमार्गी जैन जिनको लोग दृढियों के नामसे जानते पहचानते है उनकी वस्ति जम्मुमे ज्यादा है सो उसमे सब सिर्फ यह ही है कि कितनेक अरसे से अपने लोगोका उधर • विवरना बंद हो गया है और ढूंढिये लोगोंका अ___ कसर फिरना रहता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umesesy.Samantagyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११६ ] संक्षिप्तसार - रास - गिरनार. " पहले जिसका संक्षिप्त वर्णन लिखा जा चुका है, जैसे उस काश्मीर देशके “ नवफुल्ल "" नामक गाममे नवहंस नामा राजाथा जोकि देवी नामक राज कन्यासे व्याहा हुआ था. नवहंस नृपति के पाटनगर नवफुल्ल मे पूर्णचंद्र शाहुकार रहता था जोकि- सौभाग्यादि गुणोका आकर होकर भी उत्कृष्ट सदाचारी था । जिनधर्मका आराधन करते हुए कल्पतरु के प्रिय फलोंके समान - रतन १ मदन २ और पूर्णसिंह यह तीन लडके उसके सर्व मनोरथ को पूरण करनेवाले पैदा हुए, इस लिये पूर्णचंद्र श्रेष्टि निश्चिन्त रहकर अपनी जीवन चर्याको व्यतीत करता था एक समय का जिकर है कि महादेव नामक एक सूरि सपरिवार उस नगरके किसी विशाल और रमणीव आराम खंडमे आकर समवसरे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Somatagyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ११७ ] यह जिकर उस समयका लिखा जाता है कि जब बावीसमे तीर्थंकर श्रीमान् नेमिनाथ स्वामीके निर्वाणको सिर्फ चारहजार वर्षही बीतेथे । देवताओके बनाये सोनेके कमलपर यतियोके प्रभु ज्ञानी देव विराजमान हुए वनपालने जाकर राजाको वधाय!, राजाने सफल राजकीय मंडल को सूचना दी, तमाम नागरिक लोगोकोभी समाचार पहुंचाया। विविध यान, विविध, वाहन चित्र विचित्र ऋद्धि • परिवार सहित चारही वर्णकी जनता मरि शेख. रकी सेवामे जा पहुंची। __ आनंदके अपूर्व आवेशसे लोगोने उस विश्वो पकारी मुनि पतिको भक्ति भाव पूर्वक वंदन किया । धर्मलाभ रूप आशीर्वाद पाकर राजासे लेकर सा. मान्य व्यक्ति पर्यंत सब लोग यथायोग्य स्थानपर बैठे । पूर्णचंद्रके तीनही पुत्र श्रद्धारागमे रक्त थे, देव गुरुसेवा तो उनका मुख्य कार्यक्षेत्र था, रानाके सा. य वहभी बगीचेमे पहुंचे और चंद्र दर्शनसे चकोर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Surratagyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११८] की तरह हर्षको प्राप्त हुए । धर्म देशनाका आरंभ हुआ जिन वचन सामान्य वक्ताकी जुबानसे निकले हुएभी श्रोताके हृदयको विमलता पहुंचाते है तो भला देव देवेन्द्र वंदित अतिशय ज्ञानीकी धर्म देशनाका तो कहनाही क्या था !!! ___ धन्वंतरी-लुकमान आदि पूर्वकालीन वैद्य हकी मोमे और आजके ठोक पीटकर वैद्यराज जैसे नीम हकीमोमे अंतरही क्या ? अंतर फक्त इतनाहो है कि वोह निदान पूर्वक चिकित्सा किया करते थे और : आज कालके बिचारे कितनेक नामधारी य कि जिनको अपने मतलबसेही काम है उनमे वह गुण ' नही पाया जाता इसीहो लिये उनपर मनुष्यको आस्था नही जमती । जब आस्थाहो नहीतो रोगाभाव कहांसे ? पूर्वकालके ज्ञानी गुरु मानिंद धन्वंतरीके थे । धर्मदेशनामे अनेक विषयोंकी व्याख्या करते हुए ज्ञानी महाराजने प्रसंग पाकर कहा-लोकनाथ नीकर देव जगतके परम उपकारो है, इस वास्ते उनके निर्वाण जाने के पीछे भी उनके उपकारको स. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnaway. Surratagyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११९ ] रणमे लाकर उनको प्रतिमाएँ अर्थात् बिम्ब बनाकर पूजे जाते हैं, शास्त्र नीतिसे निनप्रतिमाएँ जिनके समानही मानी जाती हैं, और पूजी जाती हैं. मिसरी जहां खाइ जायगी वहांही मीठी लगेगी, प्रभु पूजन जिस जगह किया जावेगा वहांही फलदायक होगा. तथापि शत्रुंजय गिरनार ऊपर की हुई पूजा अथवा दानादि अन्य सर्व क्रियाएँ भव्यात्माओं को अन्यक्षेत्रकी अपेक्षा अनंत फलके देनेवाली होती है । श्री शत्रुंजय महातीर्थकी पांचवी ड्रंक का नाम " रक्ताचल" है, और उसका मसिद्ध नाम गिरनार है, गिरनार तीर्थपर श्री नेभिकुमार के ३ कल्याणक हो चुके है, इस लिये यह तोर्थ विशेष पूजा स्थान माना गया है, जैनशास्त्रोके अतिरिक्त अन्य सा hi भी गिरनार तीर्थका प्रभावशाली वर्णन है, जैसे कि प्रभास पुराण मे ऋषियोंका कथन है कि"पद्मासनसमासीनः श्याममूर्त्तिर्दिगंबरः । " नेमिनाथः शिवेत्याख्या, नाम चक्रेऽस्प वामनः । “ कलिकाळे महाघोरे, सर्वकल्मष नाशनः ॥ दर्शनात्स्पर्शनादेव, कोटियज्ञफलप्रदः ।। 44 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२० " नस्मानशिवासूनु-रुज्जयन्तेनमस्कृतः । " तेन श्रद्धावतानून-मुपयेमे शिवेंदिरा ।। _ अर्थ-पासनसे विराजित-श्याममूर्ति-दिशाही है वस्त्र जिसके-शिवाराणीके पुत्र होनेसे जो शिव कहलाते है-अथवा-वामनावतार विभुने जिनको शिव नामसे बुलाया है, जो-महाघोर क. लियुगमे सर्वपापोका नाश करनेवाले है । उनके दर्शनसे-चरणस्पर्शनसे कोटियज्ञ जितना फल प्राप्त होता है. इस लिये जिस पुण्यात्माने गिरनार तीर्थपर श्री नेमिनाथ प्रभुको वंदन नमस्कार किया, उस श्रद्धालुने निश्चय मुक्ति वनिताकी वरमाला पहनली !!! इस बातको सुनकर परम श्रद्धालु रत्न श्राव. कको तीर्थाधिराजपर अपूर्व भक्ति भाव जागा । उ. सने सभा-समक्ष खडे होकर प्रतिज्ञाकीकि गुरु म. हाराजके मुखसे जिस तीर्थ राजकी प्रशंसा सुनी है चतुर्विध-संघ सहित ६ री पालता हुआ उस तीथकी यात्रा करुं तबही मै दूसरी क्मिय वाउंगा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway. Soratagyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२१ जहां तक गिरनार तीर्थ के दर्शन न करूं वहां तक जिन प्रवचन प्रसिद्ध (६) ही विगये। मेसे सिर्फ १ ही विगयसे शरीर यात्रा चलाउंगा " । बस रत्न तो सच्चा रवरी था वह तो कल्पान्त कालमे भी काच नही होनेवाला था, परंतु उसकी उस उत्कृष्ट प्रतिज्ञाको सुनकर राजा प्रमुख सब लोग घबरा उठे, पुरुष रत्न उस रत्नशाह के चेहरेपर चिन्ताका नाम निशानभी नही था, राजा और • मजाके सर्व मनुष्योने शाहको अनेक तरह समझाया और कहा कि - आपका धार्मिक मनोरथ अच्छा " है, उसमे हमबाधक नहीं है, परंतु सब काम विचार पूर्वक ही करना चाहिये । सोचो कि कहां काश्मीर और कहां सोराष्ट्र ? जैसी हालत मे पादविहार, एक वार सो भी रूक्ष भोजन, शरीर सुकुमालभला आप जैसे घोर कष्टोको किसी भी तरह सहन कर सक्ते हैं ? कार्य वह करना चाहिये कि - जिसमे अपनेको पछताना न पडे और लोगोको हांसी करनेका समय न मिले । रत्नशेठने पुछा कि फिर अब आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Somratagyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२२] मुझे क्या कहना चाहते है ? जनसमाजने कहा संघ निकालकर तीर्थ यात्रा करे उसमे हम खुश है और यथाशक्ति सहायता देनेको भोहरतरहसे त्यार है. परंतु विगय त्याग संबंधी आपका अभिग्रह बिना विचारा है. इस हठको आप छोडदें । रत्न शेठने कहा भला हाथी के दान्त बाहिर निकल कर फिर अंदर जाते है ? कभी नही । मेरा तो पक्का निश्चय यह ही है कि" कुछ भी नहीं जो छोडते है धैर्य आपत कालमें. " सोत्साह हसते है पडे जो दुख के भी जालमें। . " साहस नहीं घटता जिन्दोका वह बडेही वीरहै, "कृतकार्य होते है सदा संसारमें जा धीर है ।। यह तो मेरा निखालिस धर्म मनोरथ है. जिस भुभ कामना का मैने अभिग्रह लिया है वह उभय लोक सुखा वहा तीर्थ यात्रा रूप प्रशस्य क्रिया है। कि जिसका फलादेश वर्णन करते हुए अनंत झा. नियोंने " हियाए, सुहाए, खम्माए, निस्सेय साए आणुगामित्ताए भविस्सह " असा खुद अपने श्रीमु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Soratagyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३] खसे वर्णित किया है परंतु कभी कोई सांसारिक न्याय नीतीसे संबंध रखनेवाला कार्य भी हो और उसको करना भी अगर मनुष्यने स्वीकार किया हुआ हो तो उससे भी पीछे हटना यह आर्य पुरुषकी मर्यादा नहीं है सुनो"दुख लाभ हो या हानि हो अपकीर्ति चाहे हो भले, "पत्थर गले पानी बले अचला चले विधि भी टले । "हटते नहीं पर धीर प्रणसे पाणके रहते कभी, '"मामी मनुज अपमानको जीते नही सहते कभी ॥ • उस पुन्यवानके इस धैर्यको देखकर सकल जनसमाजने आशीर्गद दिया. राजाने अपनी सेना दी और भी मागेोचित सामग्री दी। कोनेकी परीक्षा अग्निमे होती है, संघपति आनंदपूर्वक श्री संघको और अपने धर्मोपदेशक गुरुको साथ लेकर अविछिन्न प्रयाणांसे तीर्थ राजके सन्मुख चले जा रहे है. इतनेमें विकराल रूपवाला एक राक्षस उनको मिलता है, सर्व लोग भय भीत होकर इधर ए. घर माममेकी तयारी करते है, शुभट लोग भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२४ ] • हारे है उसवक्त धीरज धारण करके रत्नसंघवी उसे पूछता है कि तुम क्यों विघ्न करते हो ? तुमको चा दिये क्या ? राक्षस कहता है मुझे अत्यन्त भूख लगी है, मुझे एक मनुष्य दो, उसे खाकर सबको छोड़ दूं । नही तो सबको मारडालुंगा । उसके इस वचनक सुनकर खुशी मनाता हुआ संघवी अपने प्राणोंका बलिदान करके अखिल लोगों को बचानेका विचा र करता हुआ राक्षसके सामने जानेकी तयारी करता है. जीवितकी आशा छोडकर सर्व जीवों को खमाता है | उसवक्त एकान्त पतिव्रता रत्न शेठकी पत्नि अपने पत्तिका हाथ पकडकर पीछे हटाती हुई उस राक्षसको अपने प्राण देनेके लिये आगे बढती है । सुविनीत मातृ पितृ भक्त उनका लडका दोनोको -रोककर आप उस राक्षसका भोग बनना चाहता है। परंतु संघवी उनको यथा तथा समझाकर वहां जाता है, इधर पोमिनी और कोमल उनके कुशल के ared कायोत्सर्ग करते हैं "धर्मात् किं किं न सिध्यति ? मां बेटे के ध्यान बलसे गिरनार तीर्थ कांपता अंबिका माता संघवीको कष्टमे पडे देखकर सा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaway.Soratagyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२५ ] त क्षेत्रपालांको लेकर वहां आती है। राक्षसके साथ उनका समर होने के बाद वह 'राक्षस अपने असली दिव्य रूपको प्रकट करके संघवीको वरप्रदान करके स्वस्थानपर जाता है, और 'संघवी गिरनार तीर्थपर पहुंचता है, इस घटनाका उल्लेख समकित सित्तरीकी टीकाके छठे प्रकरणमें आ• चार्य श्री 'संघतिलक' मूरिजीने बडे हीमनोहर ढब से लिखा है। नीचे जिस घटनाका जिकर है वह और भी हृदय द्रावक है । सारांश उसका यह है कि जब संघ तीर्थपर पहुंचा तो सबने प्रभुदर्शन करके पूजा सेवाका लाभ लेकर जन्म पवित्र किया, और अने. कानेक खुशियां मनाई । एक दिन गजपद कुंडके जलमे सबने स्नान किया और प्रभुका भी प्रक्षाल ,उसीही जलसे कराया। हमेशां ऐसा होताही था परंतु " भवितव्यं भवत्येव " जलके प्रवाहमे लेप •मयी प्रतिमा गल गई । संघमे हाहाकार मच गया सब लोग शोकसागरमे डूब गये। संघवीने धैर्य पकडकर दोनो भाइयोको कहा तुम उतने दिन तक श्री. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unnamay. Burratagyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२६ संघकी सेवा करो जितने दिन में तप करं । यहक हकर संघवीने तपस्या करनी प्रारंभ की। साठवें दिन अंबिका माताने स्वयं दर्शन देकर उनको कितनीही अपूर्व प्रतिमाओके दर्शन कराए और उनमेसे एक प्रतिमा चैत्यमे स्थापन करने के लिये दी और कहा इस प्रतिमाजीकों वाहनमे बैठा कर काचे तंतुओसे खींचकर लेजाना परंतु पोछे मुडकर न देखना. दैवयोग कितनेक मार्गको तह करके संघवीने पीछे देखा प्रतिमाजी वहांही ठहर गये। अस्तु शासनदेवकी ऐसीही कामना थी। संघबीने अपने असंख्य धनको खर्व कर वहांही चैत्य तयार कराया. और प्रभु प्रतिमाको प्रतिष्ठा करवाई। अनेक उत्सव महोत्सवको करते हुए संघवीजी कितनेक दिन वहां ठहरे और वहांसे चलकर ज्ञानी गुरु महाराजके साथ श्री सिद्धाचल पर आये. आ. नंद पूर्वक शत्रुजय तीर्थकी यात्रा करके संघवी संघ सहित अपने नगरमे चले आये और महादेव स्. रिजी भव्यजनोके उपकारके वास्ते अन्यत्र विहार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२७ ] कर जिनशासनका आलोक करते हुए तप संयमसे पूर्वकी तरह अपने शेष जीवनको सार्थक और स. फल रूपसे व्यतीत करने लगे। ____ओम् शान्तिः ॥ ॥गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ चैत्यवंदन ॥ वोटक छंद. जयवंत महंत निरंजन छो, भवना दुख दोहग भंजन छो ॥ भविनेत्र विकासन अंजन छो, प्रभु काम विकार विगंजन छो. ॥१॥ जगनाथ अनाथ सनाथ करोः मम पाप अमाप समूल हरो ॥ अरजी उर नेमि जिणंद धरो, तुम सेवक छु प्रभु ना वि. सरो. ॥ २ ॥ सुर अर्चित वांछित दायक छो, सर संघ तणा प्रभु नायक छो ॥ गिरनार | तणा गुण गायक छो; कलहंस तणी गति लायक छो. ॥१॥ -**-- ॥श्री गिरनार मंडण नेमिनाथ स्तवन. ॥ पुनम चांदनी आजेखोली रहीरे ।। ए चाल ।। नमीये मेहथी आने मेमिनाथरे, सजन समजो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmaway. Soratagyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२८ ] नमस्कार तणुं फळ सार. जईने गिरनार गिरिपर तेडी सउ साथनेरे. ॥ ए आंकणी ॥ नाथ नाथ नेमिनाथने, वंदनकरवाकानः गगन मार्गथी आवीया, बेसीने गजराज. गज पद कुंड को गजपगथी काढी पाथनेरे ॥ नमीए. ॥१॥ सरस्वती रसवनी नहीं गंगारंगाय, साकर पण कांकर सी, तस जल आगे थाय. सुरपति स्नान करे एवा जलथी गाई गाथनेरे ॥ नमीए ॥२॥ ____शिवादेवी सुत नेमजि, दया तणा भंडार; स. हज आत्म तेजेकरी, शोभेअपरंपार. काढे तमो मन उद्विग्नने भीडी बाथनेरे ।। नमीये. ॥३॥ध्यान बस करे नाथर्नु, कर्मरोग तत्काल. अनाहत नादे करी, नहोय वांको वाल. ते कारण योगी कदी न पीये कवाथनेरे ॥ नमीये०॥४॥ संसार सागरमांही छे, मोहावर्त महान् ; संसारी सारी तिहां, डुबी रही छे जहान. तारे हंसपरे प्रभु तरतज पकडी हाथ. नेर ।। नमीवे. ॥ ५ ॥ समाप्त. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwaxay. Surratagyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ભાવનગ૨ boilers Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay.Surratagyanbhandar.com