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मुझ देवा || जिनवर कहे तिवारेरे || आगामक चोविशि नेमिजिन || बावीसमानें वारेरे ॥ भ० ॥४॥ एम सुणि सागर जिन पासे । सो नृप संजम लेइरे ॥ पंचम कल्प तो पति हूवो || अवधी ज्ञान घरेइरे ॥ भ० ॥ ५ ॥ कीधुं वज्रमय मृतिकानु श्रीनेमिनाथनुं बिंवरे || परम भावसुं पूजे वासव दश सागर अविलंबरे ॥ भ० ६ || नेमिनाथना त्रण कल्पाणक रैवत गिरीवर जाणीरे || सेख आयु आपण पूंलैनेसा प्रतिमा तिहां आणीरे ॥ भ० ॥ ७ ॥ गिरिगंधर्वना चैत्य मनोहरः गर्भ गेहनिपावेरे: सोवन रत्न मणीमय मूर्तिः तिणकार तिहां ठावेरे ॥ भ० ८ || कंचन बलाक नाम निपाव्यु भुवनति आगल साररे ॥ बज्रमय मृतिका सामुरति त्यांथापि मनोहाररेः ॥ भ० ॥ ९ ॥ सोहरि नेमिनाथने वारे हुवो नृप पुण्य साररे नेम मुखे पुरव भव समरी पोतो गढ गिरनाररे ॥ भ ॥ १० ॥ तहां निज कृत्य जीन प्रतिमा पूजी सुतने सांपी राज्यरे नेमिपा से संजम व्रत पाळी साधु संघले काजरे ॥ भ० ॥ ११ ॥ ए रेवत तिरथ मुळ उत्पची पुरब पुरषे भाखीरे ॥ वली शेत्रुंजय
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