________________
मातम मांही वात एसि परदाखीरे ॥ भ० ॥१२॥ श्री शेजुजय उधार कराव्या । भरतादिके जै वारेरे॥ नेमनाधना त्रण कल्याणिक रेवत गिरिये ते वारेरे । भ० ॥ १३ ॥ वर प्रासाद भरावि प्रतिमानब पांडव उद्धाररे थापो लेपतणी प्रभु मूरति तिहां एवो अधिकाररे ।। भ० ॥ १४ ॥ इम गिरिनार तिरथनो महीमा अवधारो भवि लोकरे नेमिनाथनी सेवा सारी लहो अनंत फल थोकरे ॥ भ० ॥१५॥
ढाल चोथी. • भरत नृप भावशु ए ए चाल छे ।। देशि स्तुतिनी ॥
एम सुणी सहिगुरु देसनाए श्रावक सोहे रत्नके ॥ हरख धरे सुणो हे ॥ सभा सहु कोइ देखतां हे ॥ करे अभीग्रह धन्य के ह० ॥१॥ आजथकी प्रभु माय ए पंच विगय परिहार के ह० भोमि शयन ब्रह्मचर्य धरुं हे लेयु एकवार आहार के ॥ह० ॥ २ ॥ संघ सह गिरनार जावा हे जीहां नही भेटु नेमके ह० तिहां लगीमे अंगीकरोरो इह अभिग्रह एम के ॥ ४० ॥ ३॥ माण शरीरे जोधरु हे करु
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unganay. Sorratagyanbhandar.com