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[ ७४ ] थे सुनाजाता है कि नवाङ्गी टीकाकार अभय देवसूरिजी के संप्रदायमे शिलालेख लिखाना अनुचित
समझा जाताथा.
कर्माशाह शेठ के कराये श्री शत्रुंजय महातीर्थ के उद्धारके कार्य मे सर्व प्रकार के स्वतंत्र अधिकारों के होते हुए भी आचार्यश्री " विद्यामण्ड ण" सूरिजीने अपना नाम किसी शिलालेखमे दर्ज नही करवाया, दूर न जाकर वर्तमान युगकी विचारणा करते हुए मालूम देता है कि आजभी संसार मे जैसे मनुष्य है कि जो कार्य करके भीनामकी परवाह नही करते जोधपुर राज्यान्तर्गत कापरडा तीर्थ के उद्धार मे आचार्य श्री विजय नेमिसूरिजीने जोजो कट सहन किये है; सुनकर अनहद्द अनुमोदना आती है, परंतु उस तीर्थ पर उन्होने अपना नाम किसी प्रशस्ति मे नही लिखवा.
अब मुख्य बात यह है संप्रति नरेश के होनेमें क्या प्रमाण है ? उसके उत्तर में इतनाही कहना हो गाकि संपति के अस्तित्वमे जैन इतिहासही प्रमाणभूत हैं ! संसारमे जैसा कोई साहित्यक्षेत्र नही कि जिस
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