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[६४] राजमान हुए वह तीस वर्ष संसारमें और ४४ वर्ष दीक्षावस्थामें रहकर ११ ग्यारह वर्ष युग प्रधान पदमें रहकर ८५ वर्षका सर्व आयुः पूर्णकर प्रभु श्री महावीरस्समीके निर्वाणसे ७५ वर्ष पीछे मोक्ष पधारे ।३। __प्रभवस्वामी के पदपर श्री शय्यंभवसूरि बैठे और उन्होंने यज्ञकी क्रिया कराते हुवे यज्ञके स्थंभके नी. चेसे श्री जिनराजकी प्रतिमाको प्रकट कराकर आ. स्म श्रद्धासे दर्शन किये. उसीही प्रशस्त योगके ब. लसे उनको जैन दर्शनकी और चारित्र धर्मकी प्राप्ति हुई । प्रभवस्वामीने इन्हे प्रतिबोध कर अपना संयम श्रुत और आचार्य पद दिया पद परंपरासे शय्यंभव मूरिजी भगवानके चौथे पाटपर थे। आपने जब दीक्षाली उसवक्त आपके घर लडकेकी उमेद वारी थी आपके चारित्र लेनेके बाद आपकी सांसारिक धर्मपत्नीसे एक लड़का पैदा हुवाथा जब वह लडका अपने आपको अच्छी तरह समझने लगा तब उसको भी आपनें दीक्षित कर लिया। आपनें जब अ. पनें अपूर्व ज्ञान बलसे लडकेके जीवित तर्फ उपयोग
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