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[३] यहां एक बात और कहनी राजी है. कि जिसका उल्लेख करना खास आवयक और प्रासंगिक है. 'ईश्वर संसारमें एक उत्तमोत्तम पड़ी है कि जिसको हर एक भव्य जंतु अपने सात परिशीलितनिशुद्ध आचरणां से हासिल कर सकता है। 'धनसार्थवाई' के भदमें वीजारोपण करके जीवा. नंदके जन्ममें उसको विशेष सींचकर और वज्रनाभके भवमें उसके मूलको खूब परिदृढ करके अर्थात् चौद लाख पूर्व-वर्ष के विशुद्ध चारित्र पर्याय और विनितान-निराकांश-तपसे निकाचित कर जो गुणरू: सुरशाखी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवजीके जीवने अपने आत्माराममें लगाया था प्रतिबंधक कमीको क्षयकर जो सहा -सर्वदर्शित्व-गुरुगुण नाभिराना के अंगनने प्राप्त किया था वहही आतावल-वहही शक्ति-सामर्थ्य-वह कारण कलाप-उनके पौत्र मरीवि भी था. वह ऋषभनाथ प्रभुके आत्मगत केवलज्ञान केवल दर्शनादि क्षायिक भावोपगत-आविर्भूत थे. और मरीचिके भाविभद्रात्मामें वह सर्व गुण खनिस्थ मणों
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