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________________ [ १०० ] ए अमचे सिरकरो ॥ तुमने होंजो कल्याणरे रत्न ॥ १० ॥ ॥ ढाल ८ मी" ( तिरथ अष्टापद नमिये ।। ए देशी ॥ पीउ राखे प्राण आधार ॥ पदमणि एम भांखेरे । तुम पासे कुण गति नारिनि ॥ अम जीवन कुण राखेरे । पी० १॥ तुम विजोगे एकली अ. बला ॥ किम रहे घर निरधारीरे ॥ कंत विना कानिने सघले ॥सुनो संसार ए भारीरे ॥पी०२॥ वालमतणे विजोगे अबला || जन्म झुरंता जायरे सर्व सोभा ते दिसे कारमि ।। भुवण दुखण थायरे ॥ पी० ३ ॥ पियरने सासरे पनोति ।। पियु विण मान न लहिएरे ॥ अमुकुन जाणि तस मुख वरजे लोके विधवा कहियेरे ॥ पी० ४ ॥ पीउ आधिन सदा कुल नारी ॥ पति जाते परलोकरे ॥ अंते जी. वित ते पण मृत्यु ॥ पुरीत पियुने शोकरे ॥ पो० ॥५॥ ए उपसर्ग सहि सहू स्वामि ॥ तुम होजो . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvakay. Sorratagyanbhandar.com
SR No.034829
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijayji Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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