________________
पक्षपाती होज़ाते हैं तब वह उन तीर्थोपर अपनी अपनी श्रद्धा के मुताबिक मनमाने अधिकार जमानेका उधम करते हैं । ग्यारवीं शताब्दिमें जब संडेर गच्छ नायक-श्रीयुत्-ईश्वर मुरिजीके पट्टधर-श्री 'यशोभद्र मूरिजी आहड के रहनेवाले मंत्री के संघके साथ श्री शत्रुञ्जय और गिरिनार तीर्थकी यात्रा
१. आचार्य श्री यशोभद्र मूरिजीका-जन्म विक्रम संवत् ९५७ में आचार्य पद्वी संवत् ९६८ में ।
और १०३९ स्वर्गवास । जन्मसे १३ वर्ष सूरिपद और उसी दिन से यावज्जीवतक आंबिलकी तपस्या । आंबिलमें भी फक्त ८ कदल प्रमाण ही आहार । विशेष वर्गन मेरे लिखे श्री यशोभद्र मूरि चरित्रसे, या श्री विजयधर्म मरि संपादित ऐतिहासिक रास संग्रह भाग दूसरे से जानो। ___* आहड-का प्राचीन नाम आघाट है, प्राचीन तीर्थोकी नामावलीमें-"आघाटे मेदपाटे" ऐसा जो उल्लेख है यह इसी हि नगरके लिये है. यहां आज भी जैनके विशाल-और उत्तुंग मंदिर हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unvanay. Suratagyanbhandar.com