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[२६१ नही शकती। उस वक्त उन्होंने साधु धर्म के जानकार और धर्म के रहस्य के भी ज्ञाता किसी नौकरको थोडे अरसे के लिये साधुका वेष पहना कर मंत्री राजके सामने बुलाया, साधुको देख उसे गौ. तमावतार मान कर अशक्तिकी हालतमें भी मंत्रीको इतना हर्ष हुआ कि-वह उठ कर उस कल्पित मुनि के पाओंमें जा गिरा । और सारे जन्मके किये पा. पांकी निन्दा आलोचना कर सद्गतिको प्राप्त हुआ। उस कल्पित साधुने जब देखाकि राज मान्य मंत्री । मेरे पाओंमें पड़ा है तो उसे उस मुनि वेषपर बडा सद्भाव आया । उसने उस वेशका न छोड गिरिनार पर्वतपर जाकर साठ उपवासेका अनशन कर अपना कार्य साध लिया.
मंत्रीके अंत्य कार्यको करके पाटन आये हुए उन लोगोंसे पिताकी मृत्यु सुन कर लडकांने अ. सीम दुख मनाया और निज पिताको ऋण मुक्त करने के लिये-वाहडने शत्रुनय उद्धार कराया
और अंबडने गिरिनारकी पौडियें बंधाई (देखो मेरा लिखा कु. पा. च. हिन्दी । बाहडने-शत्रुजय और
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