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[ ९६] मश पुंज सरिखो ॥ सुपड सरीखा काननी आयो नर आयो सिंह सरिखो। दंत खरि पास माननी सु०॥३॥ मोटा मुंडल सरिखो मस्तक ॥ विश न. खपावडा शमानजी ॥ अट्टाहास करे अति उचो ॥ लोक प्रते बीहाबेजी ॥ सु० ॥ ४ ॥ अनेक जनने विदारवा लागो ॥ हुवो हाहा रवतानजी ॥ राज पुरख मुभटे सवि आदि । सो बोलाव्यो सामजी ।। सु० ॥५।। कुण तुं देव अछे वादानव ॥ कांजनने संतापेजी ॥ पुजादीक जोइए ते मागो । जीम सं.. घवी तुम आपेणी ॥ सु० ६॥ सो कहे समझावा पाखे पग जो भरसे कोइरे । तो माहा मुख माहे - थइने ॥ जमपुर जासे सोइजी ॥ सु० ॥ ७ ॥
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॥ ढाल छठ।। अहो ओतम कुल माहेरुः ॥ ए देशी ॥ फागणे
फाग खेलाविई ॥ वाणि मुणी सोए पुरखनि विलखां थयां सहू मनजी ॥ तेह सुभट सिन आविया ॥संघवी जिहां
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