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[३०] अमदावाद तक पहुंचे थे कि-जगद्गुरु महारानका ऊनामें स्वर्गवास हो गया । आप ऐसे तो आस्तिक थे कि-दशवैकालिक सूत्रका स्वाध्याय किये विना अन्नपानी नही लेते थे । जाप करनेमें आपका वडा लक्ष्य था । सिर्फ नवकार महामंत्रका ही आपने साढे तीन क्रोड जाप किया था। दो हजार साधु साध्वी आपके आज्ञा वतिथे ।
त्याग वृत्ति तो आपकी इतनी उत्कृष्ट थी किजैन धर्ममें प्रसिद्ध छ विगइयोंमेंसे दूसरो विगइ आप एक दिनमें कभी नहीं लेतेथे । अर्थात्-प्रतिदिन पांच विगइयांका त्याग कर फक्त एकही विगइसें शरीरयात्रा चलाते थे !!! ___इस आपके विशुद्ध उच्च जीवनका जैन जाति पर तो पडे उसमें आश्चर्य नहों वाले जहांगोर बा. दशाह पर बड़ा प्रभाव पडा या श्री शत्रु ना और गिरनार पर आपको उत्कट भक्ति राग था। वि. वर्गन केलिये देखो ऐतिहासिक ( समायमाला भाग १ ला।)
जहां अनेक जिनमंदिर पासपासमे हों उस
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