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[४०] होता है। वस्तुपालने जैसे आबु तीर्थपर मंदिर बनवाये थे ऐसे गिरिनारपर जो जिन मंदिर बनवाये हैं उनको " वस्तुपाल तेजपाल की ढूंक" कहते हैं इस टूकभे मूलनायक श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी प्र. तिमा है और उस प्रतिमाजीकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत्१३०६ में आचार्य श्री प्रद्युम्न सूरिजी के हाथसें हुइ है । वस्तुपाल चरित्रके छठे प्रस्तावमें कितनेक धर्म स्थानोके नाम भी दिये हैं जोकि इन दोनो मंत्रियोंने गिरिनारपर तयार कराये थे-इन भाग्य. . वानोंका यह सिद्धान्त थाकि-" सति विभवे संच. यो न कर्त्तव्यः" किसी फारसी शायरने लिखा है" बराय निहादन च संगोचजर" ] जो दौलत एकठी करके जमीनमें डाली जाती है उसकी अपेक्षा पत्थर अच्छे, क्योंकि-जब जरूरत पडेगी पत्थर तो किसी काम आ जायेंगे, मगर यह दौलत जो जमीनमें गाडरखी है किसी दरकार न आयगी.
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