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क्य चिन्तामणि कुमारपाल तो जिसमें गृहस्थ दीक्षा पाकर पूर्ण कृतकृत्य हुएथे। जिस पवित्र धर्ममें-एक तुच्छ मानव जीवनमें-तीस अवज तिहोत्तर क्रोड सात लाख बहत्तर हजार जितनी संपत्ति खर्च करके जगत्का कल्याण करने वाले वस्तुपाल तेजपाल जैसे मंत्री हुए हैं, जिस दयालु-विशाल-धर्ममें जगडशाह जैसे महापुरुषोंने क्रोडो रुपये खर्च कर भूखे मरते हजारों नहीं बलकि लाखों करोडों मनुष्योंकी जान बचाइ हैं, जिस उदार शासनक परम भक्त भाग्यवान् भामाशाहने अस्ताचलपर पहुंचे हुए मेवाड क्षत्रियों के प्रतापसूर्यको किर तपाकर छ.ये हुए अनी. ति अंधकारको देश निकाला दिया और दिलवाया है। आज उस धर्मकी शोचनीय दशा हो रही है। मनमाने आक्षेप, मनमानी मित्थ्या कल्पनाएँ होती चली जा रही हैं परंतु कोइ किसिके सामने माथा ऊंचा नहीं कर सकता !!! ____ अफसोस है कि-आज संसारमें भगवान् “हरिभद्र सूरि" और भगवान् श्री हेमचंद्रमूरि नहीं हैं कि जिनकी वाचा और लेखिनी के डरे हुए वादि
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