Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library

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Page 137
________________ [ १२६ संघकी सेवा करो जितने दिन में तप करं । यहक हकर संघवीने तपस्या करनी प्रारंभ की। साठवें दिन अंबिका माताने स्वयं दर्शन देकर उनको कितनीही अपूर्व प्रतिमाओके दर्शन कराए और उनमेसे एक प्रतिमा चैत्यमे स्थापन करने के लिये दी और कहा इस प्रतिमाजीकों वाहनमे बैठा कर काचे तंतुओसे खींचकर लेजाना परंतु पोछे मुडकर न देखना. दैवयोग कितनेक मार्गको तह करके संघवीने पीछे देखा प्रतिमाजी वहांही ठहर गये। अस्तु शासनदेवकी ऐसीही कामना थी। संघबीने अपने असंख्य धनको खर्व कर वहांही चैत्य तयार कराया. और प्रभु प्रतिमाको प्रतिष्ठा करवाई। अनेक उत्सव महोत्सवको करते हुए संघवीजी कितनेक दिन वहां ठहरे और वहांसे चलकर ज्ञानी गुरु महाराजके साथ श्री सिद्धाचल पर आये. आ. नंद पूर्वक शत्रुजय तीर्थकी यात्रा करके संघवी संघ सहित अपने नगरमे चले आये और महादेव स्. रिजी भव्यजनोके उपकारके वास्ते अन्यत्र विहार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com

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