Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library
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[१०३] ॥ ढाल १० मी॥
॥ चाल चोपाइनी ॥ देवी अंबाए जाणि ए वात ॥ क्षेत्रपाल साथे लह सात ॥ तेणे थानके उछंगे आवे ।। सोय प्रेत रुपीने बोलावे । कोमल सुनने पदममो नारी ॥ काउपा दीठा मुविचारि ॥ ते उपरे कपा सुभगति, उपनो अंबानी शुभमति ॥२॥ सो ए प्रेत रुपी प्रति भाखे। 'दुष्ट कष्ट दे छे श्या पाखे ॥ हू नामे छु देवी अंबाइ।
क्षेत्रपाल छे माहारा सखाइ ॥ ३॥ नेमचरणे व 'हु सदाइ ॥ ईह साधर्मी रत्न मुज थाई ॥ संघ पति
राख्यो ते अबुझ, होय शक्ति तो अमरों जुझ ॥४॥ तव प्रेत घणुं थरहरियो । जुध मांडो ते कोपे भरियो । चरण झालो उधे मस्तक धरिभो ।। शि. ला साथे आफलवा करीओ ॥ ५ ॥ इतले सो संवरी माया ।। सोवन सम झलकतोरे काया ॥ आभरणे संपरो हेव ॥ ययोप्रगट विमानिक देव ॥६॥ संघ पति सिर उपर ताम ॥ पुष वृष्टि करे अभिराम ॥ कहे धन धन तुं विविहारी ॥धन २ तुर
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