Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library

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Page 112
________________ [१०१ ] कुशल कल्याणरे ॥ तुम अवर भलि सुंदरि वरजो ॥ हुँ छु तुम पग त्राणरे ॥ पा० ६ ॥ कोमल सुन कहे सुणोरे पितानो ॥ अमे सुत रुपे रगि पारे ।। जे सुत अवसरे अर्थ न आवे । उदर किट ते भरियारे ॥ पी० ७ । मुनने इहां इतला दिन राखि ।। संघ लइ तुम पोचोरे ॥ जनक जुभो इण वाते जुगतुं ॥ रखे काइ वाते सोचोरे ॥ पी० ८ ॥ बंधव बिहू प्रते संघवी ॥ नितिनि वाते समझावीरे ॥ संघ . सकल संचरतो कोधो ॥ सघली सीख भलावीरे ॥ पी० ९ ॥ ॥ ढाल ए मी॥ देखो गति दैवनीरे ॥ ए देशी ॥ जुभो जुओ धीरज शेठनुरे ॥ संघ काजे सा. हसीक । आपणे अंगे आगम्पूरे ॥ मन मोहे निर. भीक ॥ पाणी तुमे जोजोरे रत्न श्रावकनो भाव ए टेक ॥ त्रण जणा तिहांकणे रहारे ॥ पति पत्नीने पुत्र ॥ अवर सनेही थया कार मारे ॥ जुवो जुत्रो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.com

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