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अपने पूज्य माता-पिताके कल्याण के लिये श्रीशा. न्तिनाथ स्वामी-श्री अजितनाथ स्वामीकी कायो. त्सर्गस्थ दो मूत्तिये स्थापन कराई । मंदिरके मंडपमें -भव्य-मनोहर इन्द्र मंडप बनवाया-श्री नेमिनाथ स्वामीकी मुख्य प्रतिमा सहित-अपने पूर्वजांकी मूर्तियांवाला दर्शनीय मुखोद्घाटनक स्थंभ करा. या । अपने पिता आसराज की और दादा सोमराजकी घोडेसबार मूत्तियें करवाई । अपने पूर्वजोंकी प्रतिकृतियोंके स.थ सरस्वती माताकी त्ति . आर देव कुलिकाएँ तयार कराई ।अंबिका माता के मंदिर के आगे विशाल मंडप बनाया। अंबिका माताकी मूर्तिका परिकर तयार कराया।
परम तेजस्वी तेजपाल ने अपने कल्याण वास्ते कल्यागत्रितय नामका श्री नेमिनाय प्रभुका चैत्य-संगमरमर को सुफैद फटिक जैसी शिला. ओंसें बंधाया, और उस मंदिर के शिखरपर-सातसा चौसठ गयाणे सुवर्णका कलश चहाया । और भी अनेक मूर्तियें भराई । प्रपाएँ लगवाई । भ. गवत् प्रतिमाओं की पूजा के लिये पुष्प वाटिकाएँ
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