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[७१] कर्माका नाश करके अपने वीर महावीर जसे यथाथं नामोको सत्य कर बतायाथा. जैनसमाजका मंत. व्य हैकि-चीरमभुके समयमे जैनधर्म बहुत थोडे क्षेत्रमे था. उनके निर्वाणके २३५ वर्ष बाद राजा अशोकके पौत्र संपति नरेशने उस धर्मका बहुत दूर तक फैलाव कियाथा अशोकने जैसे बुद्धधर्मका प्रचार करनेके लिये अपने लड़के और लडकोको सीलोन (लंकामे ) भेज दिया था वैसे इस नृपतिने अपने विश्वासास्पद उपदेशकांको अन्यान्य
देशोमे भेजाथा. साथही यहभी जानना जरूरी है 'कि महाराज संपतिकी राज्य सीमासिर्फ भारत के
अमुक देशनगरोमेही नही, किन्तु संसारके मायामत्येक खंडमे फैली हुईथी.
अब सवाल यहां यह होसकता है कि जैसे दि. ग्विजयी नरेशका जिकर अन्य सांप्रदायिक ग्रथोमे और संसारके लभ्यशिलालेखोमे क्यो नही.
पहली शंकाके समाधान के वास्ते हमको राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्दके लिखे वाक्यांका उतारा कर लेना हीका फी होगा उक्त विद्वानने हिन्दु
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