Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library
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[ ९५१ पति तिलक धराविया ए । श्रावक रत्न सुनाण के ॥०॥ कोटी ध्वज व्यवहारियाए ॥ मलीया राणराय के ॥ ह० ॥ १२ ॥ देरासर साथे घणाए । पुजा भक्ति जिनंद के ॥ ० ॥ गंद्धर्व ज्ञान कला करे ए ॥ भाट भटित कहे छंद के ॥ ह० ॥ १३ ॥ जल सुखने का लिया हे ॥ साथे चर्म तलाब के ॥ ह० ॥ सबल साचवणी संघनिरे ।। दीन २ अ. धिको भावके ।। ह०॥१४॥ मार्ग तीरथ वंदता ए ॥ • सहगुरु साथे सुचंदके ।। ह०१५। रेलातो लागिरि
आविआए । कुशले सघलो संघके ॥ ह० ॥ डेरा । तंबु खडा किया ए ॥ उतरिया महत उमंग के ॥ १० ॥ १६ ॥
ढाल ५ मो. रोला तोला पर्वतनी घाटी ॥ श्री संग उतरे जामजी पुरुष एक विकराल करुपी ॥ सामो आवी कहे तामजी ॥ १ ॥ सुणजो सुणजोरे भवि लोकाईण थानक थीरथाओजी ॥ मुननेरे समझावा रखे कोइ आगल जाओजी ॥सु०॥२॥ अति कालो
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