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चरको भिक्षा देकर आपनें आपना शिष्य बनाया वह भिक्षाचर उत्तम भावसे एकही दिनका संजम पालकर कुणालका लडका संपति हुआ।
वह भाविभव्यात्मा संप्रति कुमार जब युवान हुवा तब नगरमें रथयात्राके साथ फिरते हुए आर्यमुहस्ति सूरिजीको देखकर प्रतिबोधको प्राप्त हुआ.
जन्मान्तरीय गुरु शिष्य संबंध. उसने जातिस्मर्णसें जान लिया. इसी ही लिये वोह आचार्य महाराजका पक्का उपासक बनगया. आचार्य महाराजनें उसे जैन धर्मका स्वरुप समझाकर गृहस्था वस्थाके उचित धर्मसे विभूषित किया ।
संपति नरेश वासुदेव न होकर भी त्रिखंडाधि. पति-अर्ध भरतभोक्ता अर्धसम्राट कहलाता था.
॥संप्रतिके किये शुभ कार्योंकी सूचि.॥
१२०५००० बारह लाख पांच हजार जिन प्रासाद बनवाये.
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