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[५० ] मालवा देशमें मांडवगढ आदि प्रत्येक नगरमें तथा गुजरात भूमिमें अणहिलपुर पाटन अहमदाबाद, खंभात तथा भरुच आदि प्रत्येक नगरमें ज्ञानभंडार करवाये । फिर जिनके उपदेशसे सम्यक्त और स्वस्त्री सन्तोष व्रतसे विशुद्ध मन हो कर जिन्होंने फल न देनेवाले आम्र वृक्षको सफल किया । देखो।
किसी समय सुलतान वनक्रीडा के लिये उद्यानमें गये, वहां उन्होंने एक वडे आम के वृक्षको देखा, वादशाह जब वहां जाने लगे तो किसीने उनसे कहा कि महाराज ! वहां मत जाइये, क्योंकि यह वृक्ष निष्फल है, तब बादशाहने कहा कि-यदि यह बात है तो इस (वृक्ष ) को मूलसे ही कटवा डालो, तब संग्राम सोनीने कहा कि-हे स्वामी ! यह वृक्ष सू. चित करता है कि-यह आगामी वर्षमें फल न देवे तो स्वामीको जो अच्छा लगे सो करें, फिर वादशाहने कहा कि इस काम के लिये जमानत देने. वाला कौन है ? तब संग्राम सोनीने कहा कि-मैं ही हूं, बादशाह बोला कि-तुम जुम्मेवार तो हो परन्तु यदि यह वृक्ष फल न देगा तो तुम्हारा क्या
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