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[३९ 1 " सुकृतसंकीर्तन" काव्यमें लिखा है किकुमारपाल राजाने अपने राज्य-वंशधरोंकी और पूर्वकालमें पुत्रसम पालनको हुई गुर्जर भूमोकी म्लेच्छोसें स्क्षा कराने के लिये-देव भूमिसें आकर वीरधवलको उपदेश किया कि-राजधानी की रक्षाके लिये इन भाग्यवानों को अपने मंत्री बनायो । मतलब इतना तो उभयतः सिद्ध है कि देवकी सहायतासे वस्तुपाल बंधु सहित मंत्री पदपर प्रतिष्ठित हुए।
मंत्रियुग्मने-दानशाला-धर्मशाला पौषत्र शाला-पाठशाला-चांचनशाला गौशाला-स्त्रीपुरुषांकी शिक्षणशाला वगैरह हजारों लाखो धर्मकार्य कर कराकर इस मानव जीवनको सफल किया । मेरे पास " गिरिनार तीर्थीद्धार प्रबंध " नामका एक प्राचीन पुस्तक है, उसमें · रत्न' श्रावक के किये श्री गिरिनारतीर्थ के उद्धारका वर्णन है और प्रसंगसे वस्तुपाल तेजपालके किये सत्कार्योकी नामावली है उसमें और कीर्तिको मुदिसें एवं " फास साहिब" की बनाई रासमालासें वस्तुपालकी बहुत अपूर्व चर्याका अवबोध
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