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आचार्य हेमचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भारत प्राचीन काल से स्वनामधन्य एव स्वसाधनापूत ऋषियो तथा महापुरुषो का देश रहा है । इन महामानवो ने अपनी सतत साधना द्वारा देश की साहित्यिक, सामाजिक और सास्कृतिक उन्नति मे अभूतपूर्व योग दिया। 12वी शताब्दी मे एक ऐसे ही महापुरुष का जन्म हुआ जिन्होने अपने युगान्तकारी और युग सस्थापक व्यक्तित्व के आधार पर तत्कालीन गुजरात के सामाजिक, साहित्यिक एव राजनीतिक इतिहास के निर्माण मे अद्भुत योग दिया । इनकी अप्रतिम प्रतिभा का सम्पर्क प्राप्त कर सम्पन्न परम्पराअो से युक्त गुर्जर धारित्री साहित्य और कला के नवविकसित सुमनो से प्रफुल्लित हो उठी। पाटलिपुत्र कान्यकुब्ज, वलभी, उज्जयिनी आदि की परम्परा मे गुजरात का अरणहिलपुर भी साहित्य-कला और संगीत के साथ ही विविध विद्यापो का केन्द्र बना । गुजरात के दो पराक्रमशील राजाप्रो सिद्धराज जयसिंह और कुमार पाल के सरक्षण मे अणहिलपुर भोज की धारान गरी के वैभव को पहुचने लग गया । अरण हिलपुर के इस उत्कर्ष मे इन दो राजाओ के अतिरिक्त वहां के विद्वानो का भी बहुत बडा हाथ रहा । आचार्य हेमचन्द्र जिन्हे कलिकाल सर्वज्ञ की उपाधि से विभूषित किया गया है, अरणहिलपुर के विद्वत्रत्नो मे सर्वश्रेष्ठ थे । हेमचन्द्र का जीवन-चरित .
स्वर्गीय डा बूलर ने अपने "Life of Hemchandra"1 नामक ग्रन्थ मे प्राचार्य हेमचन्द्र के जीवन का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत किया है। हेमचन्द्र के
1. सिंघी जैन ग्रन्थमाला मे 1889 मे प्रकाशित ।