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8 ] लेकर विद्वानों ने तरह-तरह की म्रान्त घारणए फैलायी हैं । बुल्हर महोदय ने तो वहाँ तक वल दिया था कि देशीनाममाला के सारे शब्दो को सस्कत से सर्दा मत किया जा सकता है । इन्ही की परम्परा का पालन श्री रामानुजस्वामी ने अपने द्वारा बनायी गयी देणीनाममाला की ग्लासरी मे किया है। उन्होने देशीनाममाला के अनेको शब्दो की व्युत्पत्तिया दी हैं, जो पूर्णतया ध्वनि साम्य पर आधारित हैं। किसी भी शब्द का उसके अर्थ से शाश्वत सम्बन्ध होता है, ध्वनियो से नहीं। रामानुजस्वामी ने ब्वनि साम्य के आधार पर व्युत्पत्तिया दे तो दी, पर अर्थ की ओर ध्यान नहीं दिया । इस प्रकार की भ्रामक व्युत्पत्ति वाले लगभग 200 शब्दो का उदाहरण इम अव्याय में दिया गया है और यह प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है कि देणीनाममाला के शब्दो की व्युत्पत्तिया द ढना व्यर्थ है, अर्थ की दृष्टि से इनका अत्र्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण हो सकता है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने इन का सकलन भी इमी दृष्टिकोण से किया था।
पुन देशीनाममाला के कुछ शब्दो को प्रार्येतर भापायो की सम्पत्ति बताया गया है । इस मत का भी खण्डन इसी अध्याय में किया गया है। जिन शब्दो को मुधी विद्वानो ने दक्षिणी भापायो तमिल, तेलगु, कन्नड आदि की सम्पत्ति बताया है, इन भापानी के व्याकरणकार भी इन्हें देशी ही मानते हैं। ऐसी स्थिति मे हेमचन्द्र की मान्यता गलत कहा हुई ? इसी प्रकार देशीनाममाला के अरवी फारसी शब्दग्रहण की मान्यता का भी खन्टन किया गया है ।
अन्त मे देशीनाममाला के शब्दो की प्रकृति का निर्धारण करते हुए पुन यही निष्कर्ष निकाला गया है कि ये शब्द युग युगो से प्रचलित जनमापा से सम्बन्धित है। इनका अध्ययन किसी भापा विशेष मे ध्वन्यात्मक या पदात्मक तुलना के प्राधार पर न किया जाकर अर्थ के आधार पर किया जाना चाहिए । देशीनाममाला का अध्ययन पूर्णतया अर्थ-विज्ञान का विपय है ।
अस्तु । मक्ष प मे, प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के अध्ययन की ये कुछ दिशाए है। इनके अन्तर्गत देशीनाममाला से सम्बन्धित अध्ययन के जितने भी पक्ष हो सकते हैं, लगभग सभी को समाहित कर लिया गया है। देशीनाममाला पर समवेत रूप से कोई कार्य न होने के कारण, इसकी शोध दिशाम्रो का निर्धारण कही-कही सर्वथा स्वच्छन्द रीति से किया गया है। इस प्रयत्न के वीच अनेको विद्वनो की वारणायो का खण्डन करना पड़ा है, आशा है वे मुझे क्षमा करेंगे । देशीनाममाला पर किये जाने वाले शोधकार्य का यह प्रारम्भ मात्र है । यह तो ऐसा ग्रन्थ है, जिसकी जितनी ही गहराई में उतरा जाये, उतनी ही नयी नयी दिशाए खुलती जाती हैं।
-शिवमूर्ति शर्मा