Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 17
________________ [ 7 खण्डे तर स्वर ध्वनिग्राम-इसके अन्तर्गत अनुस्वार का प्रयोग, विसर्ग का प्रभाव, सधि का अभाव, स्वर सयोगो की भरमार य श्रति और व श्र ति का बहुतायत से प्रयोग, स्वराघात या बलाघात का निरूपण प्रादि बाते प्रमुखतया प्रदर्शित है - व्य जन ध्वनिनाम-देशीनाममाला के शब्दो मे व्यवहृत व्यंजन ध्वनिग्राम ये है क, ख, ग, घ, (ड० का सर्वथा प्रभाव है) च, छ, ज, झ, (ज का भी अभाव है ) ट, ठ, ड, ढ, ण तथा व्ह त, थ, द, ध, (न का प्रयोग नहीं है )। प, फ, ब, भ, म तथा म्ह य, र, ल, व तथा ल्ह देशीनाममाला के ये व्यजन ध्वनिग्राम देशी शब्दो मे व्यवहत होते हए भी पर्णतया मध्यकालीन भारतीय आर्यभापा के ध्वनिग्रामो का ही अनुकरण करते है। इन सभी के प्रादि, मध्य और अन्त्य तीनो ही स्थितियो मे प्रयोग का देशीनाममाला से उदाहरण भी दे दिया गया है। व्यजन ध्वनिग्रामो का ऐतिहासिक एव वर्णनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने के बाद व्य जन-परिवर्तन की विविध दशाप्रो लोप, पागम, वर्णविपर्यय, समीकरण घोषीकरण महाप्राणीकरण आदि के भी उदाहरण दे दिये गये है। अन्त मे व्यजनसयोगो और सयुक्ताक्षरो की भी विस्तृत चर्चा कर दी गयी है । (2) पदग्रामिक अध्ययन-देशीनाममाला के शब्दो का पदग्रामिक अध्ययन एक अत्यन्त दुरूह कार्य है। इसके अधिकतर शब्द प्रकृति-प्रत्यय निर्धारण प्रक्रिया की पहच के वाहर हैं फिर भी ज्ञात व्युत्पत्तिक शव्दो की प्रकृति और उनमे लगने वाले प्रत्ययो का प्रत्याख्यान करने का सभव प्रयास किया गया है । पदग्रामिक अध्ययन की दृष्टि से देशीनाममाला की पदावली तीन वर्गों मे बांटी गयी है सज्ञा,विशेषण तथा क्रियाविशेषण । पूरा पदनामिक अध्ययन क्रम इस प्रकार है शब्दो का स्वरूप-विवेचन, प्रत्यय-प्रक्रिया, विभक्ति प्रत्यय, निविमक्तिक शून्य प्रयोग व्युत्पादक प्रत्यय-व्युत्पादकपूर्वप्रत्यय या उपसर्गों का निरूपण, व्युत्पादक पर प्रत्यय-तद्वित पीर कदन्ती प्रयोग । पदग्रामिक विवेचन के इस प्रयास मे देशीनाममाला के सभी शब्द नही पा सके हैं । सभी शब्दो का विवेचन प्रस्तुत करने मे व्याकरणिक अपवादो की भरमार हो जाने की सम्भावना थी । व्युत्पादक प्रत्ययो के बीच लगभग सभी देशी प्रत्ययो का परिगणन कर दिया गया है। देशीनाममाला मे अनेको शब्द ऐसे है जिनमे न तो प्रकृति-अश का पता चलता है और न ही प्रत्यय अश का, ऐसे शब्दो का अर्थगत अध्ययन ही, सभव है, ये शब्द विशुद्ध 'देशी' हैं, इनका ज्ञान 'लोकात्' अर्थावधारण मात्र से ही हो सकता है। (3) अर्थगत अध्ययन - देशीनाममाला की शब्दावली का अध्ययन पूर्णतया अर्थविज्ञान का विषय है। इसका ध्वन्यात्मक एव पदात्मक अध्ययन किसी भी महत्व का नही है । प्राचार्य हेमचन्द्र स्वय ही इतने समर्थ थे कि, यदि चाहते तो इन शब्दो का प्रकृति-प्रत्यय निर्धारण कर सकते थे, पर उन्होने इन शब्दो की व्युत्पत्ति पर बल न देकर, मात्र इनके अर्थावधारण पर बल दिया है । देशोनामलाला के शब्दो को

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