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प्रश्न है शिष्य का - "भंते ! करणसत्य ( प्रारब्ध कार्य के प्रति सच्चाई) से कर्ता को क्या लाभ होता है ?"
उत्तर है भ. महावीर का -" करणसत्य से व्यक्ति को करणशक्ति (प्रारम्भ किए गए कार्य को सम्यक्तया सम्पन्न करने की अदम्य क्षमता ) प्राप्त होती है ।
करणसत्य में वर्तमान अर्थात् कर्मनिष्ठ व्यक्ति यथावादी तथाकारी ( जैसा बोलता है, वैसा ही करने वाला ) होता है ।"
किंबहुना, नया वर्ष आ रहा है, तुम्हारे द्वार पर | वह देखो, आ ही गया है । उसका हँसते-खिलते मनमस्तिष्क से स्वागत करो । वह तुम्हें अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए अवसर देने आया है । मन के किसी भी कोने में निराशा छुपी बैठी हो, तो उसे धक्का दे कर बाहर निकाल दो । अन्तर्मन के स्वर्णसिंहासन पर आशा की, शुभाशा की देवी को विराजमान करो । आशा की देवी का वरदान जिस व्यक्ति को मिल जाता है, फिर उसे कोई कमी नहीं रहती है | किसकी शक्ति है, जो उसे पराजित कर दे ! मानव जब कभी पराजित हुआ है, अपने से ही पराजित हुआ है, किसी दूसरे से नहीं | और जब कभी विजेता भी बना है, तो अपने से ही ; अर्थात् अपने बल पर ही विजेता बना है, किसी दूसरे के बल पर नहीं । आशा ही मानवहृदय का वह बल है, जो मानव को प्राणलेवा कठिन संघर्षों में भी विजेता बनाता है । आशा का अमरदीप अन्धकार के क्षणों को ज्योतिर्मय कर देता है । मानवजीवन की अमृत संजीवनी है आशा, जो दम तोडते मरणोन्मुख जीवन में भी नये प्राणों का संचार कर देती है; मानव को जीते-जी मरने की स्थिति में उबार लेती है। "शा मानवहृदय का सदा काल खिलता-महकता रहने वाला दिव्यपुष्प है | कुछ भी हो, सुन्दर भविष्य के मंगल-प्रभात की आशा का नन्दादीप न बुझने पाए । एक से एक सुन्दर कल्पना करो, सोचो-विचारो । जैसा विचार होता है, वैसा ही आचार होता है ।
और जैसा आचार होता है, वैसा जीवन का संस्कार एवं परिष्कार होता है । विचार ऊँचा उठा कि मनुष्य उँचा उठा | विचार नीचे गिरा कि मनुष्य नीचे गिरा । मनुष्य का उत्थानपतन उसके उठते-गिरते संकल्पों में है, भावनाओं में
है।
अस्तु, नई आशा, नई उमंग, नया उत्साह, नई महत्त्वाकांक्षा, नई
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