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जोश को होश देकर चलना होगा
___ आधुनिकता के प्रचार और प्रसार के साथ-साथ आज पुरातन और जर्जर मूल्य टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं, उनमें महत्त्वपूर्ण मोड़ आ रहा है । यह परिवर्तन का आरम्भ है । युवा वर्ग नये मूल्यों के प्रति आस्थावान है, यह बहुत अच्छी बात है। युवा वर्ग में तूफानी वेग से बढ़ने की सहज प्रवृत्ति होती ही है । महत्त्वाकांक्षाएँ और स्वर्णिम स्वप्न, यह तो उन का तकाजा है । आज दायित्वहीन, विवेकहीन और सिरफिरा कह कर युवा वर्ग की आलोचना नहीं की जा सकती । टीका टिप्पणी से समस्या की डोर सुलझेगी नहीं अपितु वह तो और भी अधिक उलझेगी । समस्या को यदि सहज ढंग से सुलझाना है तो पुरातन वृद्धवर्ग को नूतन युवापीढ़ी को साथ लेकर और उनके तूफानी जोश को अपने मूल्यवान अनुभवों का होश देकर चलना होगा ।
नए सत्य का दर्शन
समाज और देश में चले आ रहे अन्धविश्वासों, कुरूदियों और समाजविरोधी तत्वों को देख-देख कर आज की युवा पीढ़ी में विद्रोह क्यों न हो! नीचे यदि भयंकर आग जलती हो, ज्वालाएँ उठ रही हों तो ऊपर रखा हुआ दूध कब तक शान्त रहेगा ? वह तो उफनेगा ही और बड़े जोरों से उफनेगा | उसके उफान और तूफान को कोई रोक नहीं सकता ।
आज की युवा पीढ़ी न तो भूत को देखती है और न भविष्य को । वह तो हर वर्तमान के साथ है । भूत का रोना रोने अथवा भविष्य की स्वर्णिम कल्पनाएँ करने से तो वर्तमान सुधरेगा नहीं | उसे सुधारना है तो वर्तमान में ही भूत एवं भविष्य दोनों को साकार करना होगा ।
पुराने लोग पुरातन सत्य का मीठा मोह और झूठा भ्रम पाले हुए हैं । उन्हें इसका युगानुसारी पुनर्मूल्यांकन करना ही होगा | उन्हें यह मीठा मोह छोड़ कर तथा झूठा भ्रम तोड़ कर नये सत्य का दर्शन और स्वागत करना ही होगा ।
संस्कार और परिष्कार
अत्याधुनिकतावादी कुछ लोग कहते हैं कि हमें तो सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, और नैतिक धरातल पर पुनर्निर्माण और पुनर्रचना करनी
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