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प्रश्न है, तुम क्या होना चाहते हो?
नया वर्ष ! सन १९७७ । जनवरी का पहिला महीना और पहला दिन। पूर्व के क्षितिज पर अपने हजारों-हजार सुनहले हाथों (किरणों) को आकाश और धरती पर एक साथ फैलाता हुआ सूर्यदेव उदयाचल पर आ गया है । अन्धकार टूट चुका है, सोती दुनियाँ जाग उठी है | वन-पक्षी अपने आराध्य के स्वागत में समवेत स्वर से कीर्तिगान कर रहे हैं । एक तरह से सब ओर हर्ष है, उल्लास है, आनन्द है । प्रकृति का कण-कण मुस्करा रहा है । पुष्प खिल रहे हैं, महक रहे हैं । लताएँ हवा की गुदगुदाहट से झूम रही हैं, नाच रही हैं । भविष्य के रंगीन स्वप्न जन-जन के मन-मस्तिष्क पर तैर रहे हैं।
कभी इसी मोहक वातावरण में १९७६ के विगत वर्ष ने भी जन्म लिया । उसका भी आशा और विश्वास के साथ हार्दिक स्वागत हुआ था । अपने जीवन काल में वह कितनों के हर्ष एवं उल्लास को सुरक्षित रख सका, कितनों के आशा एवं विश्वास को सफल बना सका, यह तो भुक्त-भोगी ही अपना-अपना अनुभव बता सकते हैं । लाखों ही लोग खिल-खिलाकर हँसे हैं, विगत वर्ष में, और लाखों ही लोग बिल-बिलाकर रोएँ भी हैं । विगत वर्ष को किसी ने अच्छा कहा, तो किसी ने बुरा । अपनी-अपनी अनुभूति, अपनी-अपनी मति ।
___ इस वर्ष का क्या हाल होगा, कुछ कहा जा सकता है? लोग पंचांग पत्रे देख रहे होंगे, कि कौन राजा है इस वर्ष का और कौन मंत्री ? हमारे भाग्य के साथ मेष, वृष, मिथुन आदि क्या-क्या करने वाले हैं, पूछा जा रहा होगा, ज्योतिर्विदों से । भविष्य वाणियाँ हो रही होंगी उलटी-सीधी, कुछ हँसानेवाली तो कुछ रुलाने वाली भी।
परन्तु....... परन्तु क्या ? परन्तु यह है, कि मानवं भविष्य न किसी वर्ष के पास है, न किसी तिथि, लग्न और ग्रह, नक्षत्र के पास । मानव का
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