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पुनर्जन्मवादी है । अत: यहाँ अनेक जन्म जन्मांतरों से चले आये कभी पुराने ऋण भी चुकाये जाते हैं ।
सेवक जितना विनम्र होगा, उतना ही महान होगा । फलों से लदे वृक्ष धरती की ओर झुक जाते हैं। बरसने वाली घटाएँ ऊँचे आकाश से नीचे उतर कर धरती पर बरसती हैं | माँ-बाप अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों को उँगली पकड़कर चलाते हैं, तो देखा है, कितने नीचे झुकते हैं ?
प्रभुता का मद
प्रभुता का मद भी बड़ा भयंकर होता है । सिंहासन पर बैठते ही आदमी भूल जाता है कि कल तक तू भी तो सबके साथ धरती पर बैठने वालों में से ही एक था । बंगला कहावत है-" जो भी लंका में जाता है, रावण हो जाता है ।" आए दिन नम्रता का, विनय का, जनसेवक का उद्घोष करने वाले सिंहासन पर पहुँचते ही अकड़कर नीरस सूखे काठ हो जाते हैं । पहले के प्रशासक, जिनकी स्वयं आलोचना करता रहा है, जल्दी ही स्वयं भी उन्हीं की पथ पर दौड़ने लगता है । पीछे नहीं, उनसे आगे ही निकल जाना चाहता है । याद रखिये, सिंहासन स्वामित्व के लिए नहीं, सेवा के लिए है | यदि कोई सस्नेह यह विहित सेवा नहीं कर सकता है, तो उसे सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है | सिंहासन पर बैठने के लिए राजा राम बनना होगा, राक्षस रावण नहीं।
सिंहासन स्थायी नहीं हैं | समय पर चक्रवर्तियों के सिंहासन भी डोल जाते हैं, इन्द्रासन भी खाली हो जाते हैं । प्रभुता चंचल है । बिजली से भी अधिक चंचल | चमकते देर नहीं तो बुझते भी देर नहीं | पानी का बुलबुला कब तक पानी पर तैर सकेगा ? कागज की नाव कब तक जल में तैरती रहेगी? संसार में हर चीज क्षणभंगुर है । 'सर्वं क्षणिकं' का बुद्ध-घोष गलत नहीं है | अत: सिंहासन पर बैठते समय बहुत सम्भलकर बैठना चाहिए । सिंहासन पर बैठना बुरा नहीं है । बुरा है, सिंहासन का अहं सिर पर लाद कर बैठना । बड़ी विचित्र स्थिति हो जाती है, इस तरह बैठने वालों की | बाहर में लगता है, यह महानुभाव कुर्सी पर बैठे हैं | खुद भी वह ऐसा ही समझता है। पर, वास्तव में वह कुर्सी पर नहीं बैठा है, कुर्सी ही उस पर बैठ गयी है ।
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