________________
बाँध रखी है, कमाकर नहीं खाया जाता ? मुँह बाँध लिया, पेट नहीं बाँधा गया । आया कहीं का साधु ! आपके राजस्थान के ही परिचित गाँवों की चर्चा की है कविता में एक पुराने जैन मुनि ने । भोजन माँगने पर जो उत्तर मिलता है वह उसी अनुभवी के शब्दों में ' म्हां के कांई माथे मांगो घर जावो ओसवाल के ।' यह है देश की ओर का आदर । सन् १९७४ में आगरा से राजगृही तक उत्तर-प्रदेश और बिहार में जिन साधारण गाँवों से मैं गुजरा हूँ, यही प्रश्न पूछे जाते रहे हैं-कौन हैं आप ? किस देश के हैं ? महावीर कौन है ? मुँह क्यों बांधा है ? और भी कितने अभद्र प्रश्न | और मेरे मुँह से तब सहसा एक बोल निकल पड़ता ' अरे अपने ही देश में, अपनी ही जन्म-भूमि में इतने अपरिचित !' इस अपरिचितता का दोष किस पर ? जनता पर या हम पर ?
आज के बदलते युग मानस में पाद-विहार या वाहन जैसा कोई खास प्रश्न नहीं है । उसकी जिज्ञासा कुछ और है, उसकी समस्या कुछ और है। आपके धर्म के पास उसका शब्दों के सिवा कोई और कारगर समाधान है या नहीं? जाने माने विद्वानों की पाठ्य पुस्तकों के रूप में मान्य अनेक पुस्तकों में पढ़ा है जैन धर्म व्यवहार्य नहीं है । वह आज के युग में व्यवहार्य आचार संहिता कैसे और क्या दे सकता है | बंगाल आदि कुछ प्रदेशों में तो मारवाड़ियों के गुरु के रूप में घृणा के साथ हम जैन साधुओं का परिचय दिया जाता है । आज हम एक तरह काले और चोर बाजारी शोषक वर्ग के साथ जोड़ दिए गए हैं । जन-मानस में कोई श्रद्धा नहीं, कुछ अपवादों को छोड़कर । आदर और श्रद्धा के नैतिक मानदंड कुछ और हैं । ये नहीं, जिन्हें आप मान रहे हैं। यदि ये ही आदर और श्रद्धा के मूलाचार होते, तो श्री कानजी स्वामी आप में से ही निकलकर, आपके ही हजारों परिवारों को तोड़कर, वाहन विहारी होते हुए भी श्री गुरुदेव के रूप में समादर न पाते, पूजे न जाते । लगता है समाज साधु से कुछ और अपेक्षा रखता है, जिसकी हम ठीक तरह से पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं । कोई भी धर्म हो, सम्प्रदाय हो, गुरु हो, साधु हो, क्रियाकाण्ड हो, उसमें तेजस्विता चाहिए, चमकता हुआ ऊर्जस्वल व्यक्तित्व चाहिए। इसके अभाव में आपके स्थानकवासी समाज के ही अनेक साधु और साध्वी साधारण-सी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी हैरान, परेशान होते देखे हैं । आपका तथाकथित पाद-विहार अर्थात् अवाहन आदि का आचार पालते रहे हैं, फिर भी कुछ नहीं है समय पर उनके लिए ।
(२३८)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org