Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 263
________________ यह सत्य की पूजा नहीं, हत्या है सत्य का सबसे बड़ा भयंकर घातक शत्रु प्रलोभन है, फिर भले वह सत्ता का हो, सम्पत्ति का हो, यश का हो, रोटी-रोजी का हो, जीवन का हो या और किसी तरह का हो । जो व्यक्ति, फिर भले वह धर्मगुरु ही क्यों न हो, सत्य का ठेकेदार ही क्यों न हो, प्रलोभन की चौहद्दी से, घेराबन्दी से बाहर नहीं आता है, सुविधाभोगी मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाता है । वह बात-बात पर संत्य की हत्या करता है, असत्य को सत्य के रूप में प्रतिष्ठा के सिंहासन पर बैठाता है, भद्र जनता को धर्म, सभ्यता, संस्कृति या पुरातन गौरव के नाम पर छलता है । वह संघर्ष से डरता है, सोचता है- यदि मैंने सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में स्पष्ट रूप में उद्घोषित कर दिया, तो मेरा क्या होगा, मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा ? फिर कौन पूछेगा और पूजेगा मुझे सार्वजनिक क्षेत्र में ? प्रलोभन का शिकार व्यक्ति, पुरातन परम्परा का अनुवर्ती होता है, नई परम्परा का प्रवर्तक नहीं । वह बाहर में सत्य का अमुक शानदार मुखौटा लगाये रखता है, जिसके आवरण में उसके असत्य एवं दंभ की कुरूपता छिपी रहती है । वह सत्य का अग्रणी सूत्रधार नहीं होता, जो असत्य से टकराए । वह तो मान्यताओं का और मान्यताओं के पक्षधरों का पिछलग्गू होता है । भ ही परम्परागत मान्यताएँ कितने ही जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हों, अपनी अर्थवत्ता खो चुकी हों, हित की जगह जनता का अहित ही क्यों न कर रही हों । प्रलोभन के जाल में फँसा व्यक्ति उनकी उपादेयता का स्तुति पाठ ही करता रहेगा, उनका गुणगान ही गाता रहेगा, वह जी हुजूर होगा । हाँ में हाँ और ना में ना का स्वर मिला देना ही उसका अपना एक काम है । प्रलोभन में उसी अन्तरात्मा की सही आवाज कैद हो जाती है । वह यथार्थ को जानकर भी, समझकर भी यथार्थ नहीं कह सकता । उसकी अपनी कोई आवाज ही नहीं होती । गुलामों की अपनी कोई आवाज होती है ? नहीं होती । उसकी वही आवाज होती है, जो उसके Jain Education International (२५०) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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