Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 268
________________ शौच जाने के, मलमूत्र विसर्जन के ढंग तो इतने विचित्र हैं कि नागरिक परेशान हैं, इन क्रिया-काण्डी साधुओं की नाजायज हरकतों से । कुछ स्थानों पर तो उपाश्रयों तथा गृहस्थों के मकानों की छत पर मलमूत्र विसर्जन करते हैं । सड़ता हुआ, कीड़ों से कुलबुलाता हुआ मल, दूर-दूर तक वातावरण में दुर्गन्ध फैलाता है, भद्र जनता के स्वास्थ्य को वायु-प्रदूषण से खराब करता है। अनेक स्थानों पर तो सड़कों पर ही यह परिष्ठापन धर्म क्रिया की जाती है, जिससे आम जनता में धर्म के प्रति घृणा ही पैदा होती है । बम्बई आदि की तो समाचार पत्रों में खबर है कि नई बसने वाली कोलोनियों में अन्य लोग उपाश्रय ही नहीं बनने दे रहे हैं । यह नहीं कि उनका साम्प्रदायिक आधार पर कोई धर्मद्वेष है । पत्र लिखता है कि साधुओं द्वारा आस-पास की आम सड़कों पर मलमूत्र की गन्दगी फैलाना ही उनके विरोध का एकमात्र हेतु है । जनता का यह विरोध सही है | धर्म के नाम पर किए जाने वाले धर्मध्वजियों के इस कदाचार का विरोध होना ही चाहिए । बहुत अधिक तो नहीं, पिछले अनेक वर्षों से नगरों में यह अन्ध आचार वस्तुतः जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है और जिन शासन को बदनाम कर रहा है । शौचालय के अन्य आधुनिक अच्छे साधन मौजूद रहते हुए भी इस प्रकार नागरिकता की भावना के विपरीत कर्म करते रहना, यथार्थ चिन्तन का दिवालियापन तो है ही, साथ ही असाधुजनोचित हृदयहीनता भी है । कोई भी मानवतावादी सहृदय एवं करुणाई व्यक्ति ऐसी गन्दी हरकतें नहीं कर सकता, जो ये पवित्र गुरुपद पर आसीन, दया-करुणा के मूर्तिमान धर्मदेव सन्तजन कर रहे हैं । उन्हें पता होना चाहिए, इस अप-कर्म में भगवान की परिष्ठापन समिति से सम्बन्धित आज्ञा का उल्लंघन है, साथ ही नगरपालिका के जनस्वास्थ्य सम्बन्धी कानून का भंग भी है । इस अर्थ में आज की यह परिष्ठापन पद्धति कानून भंग के रूप में चोरी भी है, जो अपने में एक भयंकर अनैतिक अपराध है । कहाँ तक लिखा जाए, स्थिति यह है कि सब ओर सत्य का हनन है, असत्य का पूजन है । उर्दू का शायर ठीक ही कहता है - " बादल फटे हुए हैं, सिलाएँ कहाँ कहाँ ? " मैं नहीं चाहता कि इतनी दूर लिखू और साथियों के मन को पीड़ा दूं, परन्तु अन्तर्मन इन सब बातों से इतना अधिक पीड़ित रहता है कि लिखे विना रहा नहीं गया | सत्य कड़वा है, पर इस कड़वेपन को स्वीकारना ही होगा । मेरी मार्मिक अपील है, अपने परिचित तथा अपरिचित सभी साथियों से कि यश और प्रतिष्ठा के प्रलोभनों के मायाजाल से अपने को साहस के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277