Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 276
________________ प्रश्न है, इस छूट का साधारण अयोग्य मुनि भी देखा-देखी उपयोग कर सकते हैं ? मानता हूँ, कर सकते हैं । पर, इस आशंका से विशेष स्थिति के प्रामाणिक साधकों को तो प्रतिबन्धित नहीं किया जा सकता, उनकी विशिष्ट शक्ति को तो सदा के लिए पंगु एवं अनुपयोगी नहीं बनाया जा सकता । यों तो हर स्थिति और साधन का गलत उपयोग करने वाले हर युग में रहे हैं और रहेंगे। हाथ का दण्ड जहाँ रक्षा के लिए है, वहाँ किसी के संहार के लिए भी हो सकता है । अपनी अपनी मति है, तदनुसार कृति है परन्तु, मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ ऐसे मर्यादाहीन अविवेकी लोगों को मेरा कोई समर्थन नहीं है । समाज इस प्रकार की मर्यादाहीनता का समयोचित प्रतिकार कर सकता है, उसे करना ही चाहिए । ये स्वार्थी दंभी लोग क्रान्ति के सूत्रधार नहीं, अपितु क्रान्ति के शत्रु हैं । इन्हीं लोगों ने अर्थवत्ता की दृष्टि से सही दिशा में गतिशील होने वाली क्रान्ति का मार्ग अवरुद्ध किया है, भद्र जनता के विश्वास को शंकाशील बनाकर उसे अविश्वास में बदला है । यानप्रयोग के सम्बन्ध में मैंने पहले भी स्पष्टीकरण किया है और प्रस्तुत में भी मैंने अपना अभिमत विस्तार के साथ व्यक्त कर दिया है । व्यर्थ ही मैं इस चर्चा को लम्बी नहीं करना चाहता । मुझे समझने के लिए इतना पर्याप्त है, भले कोई समझे, या न समझे हर व्यक्ति अपने मन का, अपने संस्कारों का स्वामी है । किन्तु, अन्त में यह कह देना आवश्यक समझता हूँ - " सत्य की परख के लिए निन्दा-स्तुति से, परम्परावाद से कुछ दूर हटकर ही चिन्तन-मनन करना चाहिए ।" सितम्बर १९८३ Jain Education International (२६३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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