Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 274
________________ शास्त्रीय विधान भी है, उपयोग किए जाते रहने का इतिहास भी है । जब कि दुर्भिक्ष एवं रोग आदि जैसे प्रसंग पर आहार-आदि जैसी साधारण अपेक्षा के लिए भी असंख्य-अनन्त त्रस-स्थावर जीव-जन्तुओं की हिंसा के हेतु जलयान का शास्त्रीय उल्लेख है, तो क्या शील की सुरक्षा के लिए तदपेक्षण अल्पहिंसक किसी अन्य यान का देशकालानुसार उपयोग नहीं किया जा सकता ? एकान्त निषेध में मात्र परम्परा की दुहाई देने के सिवा अन्य क्या तर्क है ? आक्रामक रोग के क्षणों में असंख्य पंचेन्द्रिय संमूर्छिम मनुष्य आदि सूक्ष्म कीटों से परिपूरित मानवीय रक्त के इन्जेक्सन लिए जाते हैं, अभक्ष्य ऐलोपैथिक दवाओं का खुलकर प्रयोग होता है, चिकित्सा हेतु हवाई जहाज, कार आदि से हजारों मील दूरस्थ नगरों में भी जाते हैं, निशीथसूत्र में निषिद्ध आपरेशन आदि शल्यक्रियाओं में रक्त की हर बूंद में असंख्य संमूर्छिम जीवों की हत्या भी हो सकती है और ये सब अपवाद के नाम पर सहज ही हो जाता है। मैं नहीं समझ पाता, मिट्टी के क्षणभंगुर शरीर के लिए तो उग्राचारी महन्तों के यहाँ आये दिन अपवाद मार्ग झट खुल जाता है, परन्तु उनके यहाँ पवित्र शील-व्रत की रक्षा के लिए कोई अपवाद नहीं है । शरीर बड़ा है या शीलव्रत, कुछ तो कहिए-'हाँ या ना' । दिगम्बर मुनिवर आचार्य श्री शान्तिसागरजी ने आँखों में मोतिया-बिन्द होने पर आपरेशन नहीं कराकर संथारा कर लिया था । आप तो ऐसा नहीं करते । फिर शील-व्रत की रक्षा के लिए वर्तमान के कामाचार-प्रधान दातावरण में यदि साध्वी किसी शीघ्रगति यान का अपवाद स्वरूप प्रयोग कर ले, तो आपका धर्म सहसा कैसे भ्रष्ट हो जाता है । एक सज्जन एक उच्च पदस्थ उर्म-गुरु से दर्द के साथ कह रहे थे-" हम अपनी बहनें और पुत्रियाँ दीक्षा के लिए आपको अर्पण करते हैं । यदि आप उनको सुरक्षा की कोई समुचित व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, तो आपको उन्हें दीक्षित करने का क्या अधिकार है ? " धर्म-गुरु के पास इसका कोई उत्तर नहीं था । बात समेट लूँ । जब तक कोई अन्य कारगर सुरक्षा की व्यवस्था न हो, मैं साध्वियों के लिए शीघ्रगति यान के उपयोग का समर्थन करता हूँ। साध्वी कौन है, सामान्य है या असामान्य, यह वर्गीकरण नहीं है प्रस्तुत में साध्वियों के लिए । हर साध्वी को विना किसी भेद-भाव के यह समयोचित छूट होनी चाहिए, जहाँ भी आवश्यक हो | इसमें निन्दा-स्तुति के प्रश्न को बीच में नहीं लाना चाहिए, समय की बाध्यता है | उसका तर्क-संगत समाधान होना ही चाहिए | आदर्शवाद के अर्थहीन उथले नारों से समस्याओं का सही समाधान न (२६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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