Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 1
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 269
________________ मुक्त करो और जो सत्य तथा हितकर है उसे सार्वजनिक घोषणा के साथ स्वीकार करो । आज नहीं तो कल, तुम्हें अपने उक्त समयोचित परिवर्तनों से प्रतिष्ठा मिलेगी ही | यदि प्रतिष्ठा न भी मिले, तब भी तुम्हारा क्या बिगड़ता है। तुम कोई प्रतिष्ठा पाने के लिए और उसके आधार पर रोटी का जुगाड़ करने के लिए तो साधु नहीं बने हो । मैं मानता हूँ, कुछ योग्य परिवर्तनों के फलस्वरूप अज्ञानग्रस्त रूढ़िचुस्त जनता में तुम्हारी निन्दा होगी, तुम्हारी पूर्वार्जित प्रतिष्ठा को चोट भी लगेगी, और उसके फलस्वरूप, संभव है, साधुता के नाम पर चालू तुम्हारी सुख-सुविधाओं की प्रक्रिया में भी कभी कुछ अन्तराय पड़े परन्तु सत्य के साधक को यह सब चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है । उसे तो बेलाग सत्य के पथ पर चलना है, इसके लिए ही तो अपना घरबार त्यागा है, प्रिय परिवार छोड़ा है | मीरा के शब्दों में सत्य के साधक की तो सूली ऊपर सेज है | खबरदार, किसी भी रूप में, किसी भी अंश में तुम्हारे द्वारा सत्य की हत्या नहीं होनी चाहिए | 'सत्यमेव जयते नाऽनृतम्' का उद्घोष हम सत्य के सेवकों का मूल मंत्र है। मैं स्वयं अस्सीवें वर्ष में हूँ | मैं जानता हूँ, मेरे इस तरह के खुले लेखों से हजारों लोगों के श्रीमुख निन्दा का, अभद्र आलोचना का विष उगलने लगेंगे और मेरे अब तक के अनेक प्रशंसक भी मुझसे विमुख हो जाएँगे | उन्हें जो होना है, होते रहें, मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं । मेरे अब तक के गहन अध्ययन और चिन्तन-मनन से जो मुझे यथार्थ की अनुभूति हुई है, हो रही है, उसे में मुक्त-भाव से प्रकट कर देता हूँ | मैं सत्य को प्रतिष्ठा आदि के क्षुद्र व्यामोह में, असत्य एवं दंभ के काले पर्दे में छुपाना नहीं चाहता । महाप्रभु महावीर का यह धम्म सूत्र मेरा एकमात्र संबल है " सच्चस्स आणाए उवट्टिओ मेहावी मारं तरइ ।" अगस्त १९८३ (२५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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