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भावना तो अन्तर्मन में बराबर करते रहिए । आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, यहाँ तक कि इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में कभी न कभी समय मिल ही जाएगा | आस्तिक दर्शनों की यही एक सबसे बड़ी विशेषता है कि वे एक दो जन्मों पर ही नहीं, अनन्त अनन्त जन्मों पर विश्वास करते हैं । एक क्षण के लिए प्रकट हुआ सम्यक् दर्शन भी भव्य आत्मा को एक दिन निश्चित ही परमात्मभाव में पहुँचा देता है, भले ही तब तक भव भ्रमण में अनन्त जन्म ही क्यों न लेने पड़ें ।
भावना निष्फल नहीं जाती
भावना अन्तर की सचेतन क्रिया है, वह कभी निष्फल नहीं होती । वैशाख और ज्येष्ठ की आग उगलती गरमी और जलती धूप में धरती के खुले मैदानों पर दूर दूर तक हरियाली नजर नहीं आती | जब देखो तब धूल ही उड़ती दिखाई देती है । किन्तु आषाढ़ श्रावण में वर्षा होते ही सब मैदान हरे भरे हो जाते हैं, धरती पर घास की हरी चादर बिछ जाती है । प्रश्न है यह हरियाली कहाँ से आती है? क्या आकाश के मेघों से ? मेघों से तो पानी बरसता है, हरियाली नहीं । धरती के गर्भ में पहले से पड़े हुए बीज ही वर्षा का योग पाकर अंकुरित होते हैं, हरियाली उन्हीं की है । अत: अपने अन्तर्मन में शुभ भावों के बीज डालते रहिए | कभी-न-कभी सुयोग पाकर वे सत्कर्म के रूप में अंकुरित होंगे ही, इसमें सन्देह और शंका के लिए अणुपरमाणु मात्र भी स्थान नहीं
सितम्बर १९७५
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