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तरुण तरुण है : साहस की अखंड ज्योति
तरुण समाज का नवजीवन है, राष्ट्र का महाप्राण | तरुण साहस की दहकती ज्वाला है, उत्साह का उद्दाम निर्झर । तरुण धर्म की धुरा का धारक है, संस्कृति का सन्देश वाहक । तरुण मानव-प्रकृति के उपवन का बसन्त है, निर्माण का घण्टानाद | तरुण का तन मिट्टी का नहीं वज्र का है । सर्दी, गर्मी, वर्षा, धूप-छाँह की उसे क्या चिन्ता ? प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थिति भी उसके लिए मंगल है, वरदान है | कौन है उसे जो चुनौती दे ? वह स्वयं चुनौती का पांचजन्य बजाने निकल पड़ा है, धरती के एक क्षितिज से दूसरे क्षितिज तक ।
तरुण का अन्तर्मन रंगारंग इन्द्र धनुष । सघन मेघ में चमकने वाले जड़ प्रकृति के इन्द्र धनुष के रंगों की तो गणना है । परन्तु तरुण के सचेतन इन्द्र धनुषी मन के रंगों को कोई गिने तो कहाँ तक गिनेगा ? हर रंग अद्भुत ! हर रंग मोहक । अन्दर में कोई झाँक ले तो सहसा चकित हो जाए, चित्र लिखित हो जाए कि अहो हो, क्या गजब की छटा है !
तरुण का हृदयाकाश इतना विशाल एवं विराट कि प्रकृति का एक आकाश क्या, असंख्य आकाश उसके एक कोने में समा जाएँ । तरुण का तन ऊँचा है, तो उसका मन भी ऊँचा है | तरुण; सच्चा तरुण कभी बौना नहीं होता । वह किसी की किसी भी घेराबंदी में नहीं आता | वह तरुण ही क्या, जो यों ही किसी का कभी कैदी हो जाए ।
तरुण का कर्म-रथ दिग्-दिगन्त तक दौड़ता है ! कौन हैं वह बाधा, कौन है वह विघ्न, जो तरुण के कर्म-रथ की गति को रोक दे या लक्ष्य से इधर उधर कहीं मोड़ दे | शक्ति और साहस का दूसरा नाम ही तो तरुण है । बस्ती-बस्ती जंगल-जंगल गाता जाए बनजारा । कठिन से कठिन परिस्थिति में भी दृढ़ उत्साह एवं विश्वास के साथ हँसते खिलखिलाते-मुस्कराते काम करते रहना ही तो तरुणाई है ।
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