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साहस की दहकती ज्वालाओं में से गुजरिए
आशा जीवन है और निराशा मरण ! आशा रात्रि के बाद स्वर्णिम प्रभात है, और निराशा मध्य अमा का सघन अन्धकार ! आशा विजय का स्वप्न है और निराशा घोर पराजय की प्रतिध्वनि !
जीवन में उतार-चढाव आते हैं, जय-पराजय के एवं हानि-लाभ के अच्छे-बुरे प्रसंग उपस्थित होते हैं । जीवन-पथ सीधा-सपाट राजमार्ग नहीं है । यह तो पहाडों की उँची-नीची, टेढी-मेढी दुर्गम पगडंडी है । संभल कर चलना है, एक-एक कदम | सांस फूल सकता है, छाती में दर्द हो सकता है, घुटने दर्द से पीडित हो सकते हैं । कण्ठ सूख सकता है, सिर चकरा सकता है । यह सब संभव है । आखिर पहाड़ की चढाई है न? परन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि यात्रा छोड़ कर बीच में ही कहीं लमलेट हो जाओ, मुर्दे की तरह पसर जाओ, हिम्मत हार जाओ और पुकारने लगो, कि बस अब नहीं चलना है, यहीं दम तोड देना है, मर जाना है । थक गये हो, तो कुछ देर के लिए विश्राम कर सकते हो। पर यह विश्राम और अधिक दृढ़ता से पुन: आगे बढने के लिए होना चाहिए ।
सुख के साथ दु:ख लगा हुआ है । दोनों सहोदर बन्धु हैं । एक का स्वागत करते हो, तो दूसरे का तिरस्कार क्यों? कभी-कभी सुख की अपेक्षा दु:ख की चोट ही अधिक निर्माण करने वाली होती है । मिट्टी का कच्चा घड़ा आग में तपकर ही सुर्ख होता है, जल धारण करने की क्षमता प्राप्त करता है | अन्यथा कच्चा घडा तो पानी लगते ही गल कर पुन: वही पहलेसा मृत्पिण्ड हो जाता है । ताप पहले असह्य लगता है, पर बाद में वही जीवन को कार्यक्षम एवं यशस्वी बनाता है ।
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