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हारा है, द्रौपदी जीती है। कंस हारे हैं, कृष्ण जीते हैं। तुम साफ दिल से जो भी लोक-मंगल का अच्छा काम कर रहे हो, शान के साथ करते जाओ। मत लजाओ किसी से, मत भय खाओ किसी से। दूसरे क्या कहते हैं, यह नहीं सुनना है। आपका अपना मन क्या कहता है, बस, यही काफी है। कहा भी है कभी किसी
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दिल साफ तेरा है कि नहीं, पूछ ले जी से, फिर जो भी कुछ करना हो कर तू खुशी से | घबरा न किसी से ।।
पुराना वर्ष जीर्ण हुआ, मर गया, भूत हो गया। अब उस भूत से न तुम चिपटो, न वह तुमसे चिपटे। उस अतीत हुए भूत के पास, या भूत के उपासक किन्हीं बुजुर्गों के पास जो कुछ भी हो, उसमें से उतना ही अंश लीजिए, जितना कि आप आज की या आने वाले कल की जिन्दगी के साथ जोड़ सकें। गये कल से जल्दी से जल्दी पिण्ड छुडाइए और झटपट आगे बदिए । नये वर्ष का सादर स्वागत कीजिए। अब जो भी करने जैसा है | इसी नये वर्ष में करना है। अच्छा है, अब चर्चा कम हो, काम ज्यादा हो। बहु भाषित की महाव्याधि खत्म होनी ही चाहिए। प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिराजी के चार विकास सूत्र हैं - १ कड़ी मेहनत, २ दूर दृष्टि, ३ पक्का इरादा, ४ और स्वतः स्फूर्त आत्मानुशासन। नव वर्ष के लिए ये मंगल कर्म-सूत्र हैं। उक्त चतु:सूत्री के आधार पर कोई ऐसा विचित्र, अनूठा जन-मंगल का कार्य कीजिएगा कि सब ओर “वाह वाह! क्या कमाल है भाई" का नारा बुलंद हो उठे। सहसा चमत्कृत कर देना ही जीवन का और जीवन के कर्म का एक मात्र प्रतिफल है | आदमी की शान कर्म की शान में है। सचमुच लाजवाब आनबान। जो भी अच्छा करो, उसमें अपना सर्वोच्च कीर्तिमान स्थापित करो। “शिवास्ते पन्थान:।"
जनवरी १९७६
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